लोकगायक वीरेंद्र राजपूत का पलायन जैसे गंभीर विषय पर फुर उडीजा घेनडुडी गीत रिलीज़ हुआ है,जो कि एक शानदार रचना सिद्ध होगी गायन,संगीत एवं लेखन के अनुसार ऐसे गीत वर्षों में कभी कभार ही बनते हैं।
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लोकगायक वीरेंद्र राजपूत द्वारा रचित एवं स्वरबद्ध ये गीत पलायन की सटीक परिभाषा दिखलाता है,जैसी स्थति पलायन के कारण उत्तराखंड के गाँवों की है उसका सही मायनों में व्याख्यान इस गीत के माध्यम से किया गया है,हजारों गाँव खाली हो चुके हैं तो इसी विषय पर लिखा गया ये गीत एक ऐसे पक्षी को विषय केंद्रित करते हुए लिखा गया है जो गाँवों में बसती है और इंसानी बस्ती में अपना बसेरा बनाती है।
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छोटी सी ये चिड़िया गाँवों की जान होती है और इसकी चहचाहट से पूरा गाँव आनंदित होता है,लेकिन लोकगायक वीरेंद्र राजपूत घेनडुडी से कह रहे हैं कि हे घेनडुडी अब क्या करेगी यहाँ रह कर जब कोई है ही नहीं गाँव में,क्या खाएगी यहाँ भूख से मर जाएगी यहाँ तो पानी के श्रोत भी सूख गए है अब तू भी उत्तराखंड वासियों की तरह प्रवासी हो जा और शहरों की तरफ रूख कर।
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घेनडुडी गढ़वाली में बोला जाता है वैसे इस चिड़िया को गौरैया नाम से जाना जाता है और इसकी सुंदरता को देखते हुए आँगन को चहकाने वाली इसके लिए विशेष विश्व गौरैया दिवस 20 मार्च को मनाया जाता है।लेकिन इंसानों से प्रेम करने वाली इस नन्ही सी चिड़िया ने अब कहीं दूर बसेरा बना लिया है इसका दुःख इन चंद लाइनों में साफ़ झलक रहा है।
“आज भी न आई गौरैया ,मुंडेर पर फैला बाजरा धो दिया था
गुनहगार हम थे,
देश निकाला नसीब में उसके बो दिया था”‘
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इसलिए जहाँ भी आपको ये नन्हीं सी घेनडुडी दिखे इस पर अपनी स्नेह वर्षा जरूर करना और इसका संरक्षण जरूर करें। लीजिए आप भी सुनिए वीरेंद्र राजपूत की ये अद्भुत रचना जिसे रणजीत सिंह ने अपने संगीत से सजाया है।