उत्तराखंड सांस्कृतिक धरोहरों का प्रदेश है,यहाँ के लोगों में अत्याधिक आस्था देखने को मिलती है,जो उत्तराखंड को देवभूमि बनाते हैं,उसी आस्था के बीच पांडव यहां की प्राचीन कथा है जिस पर कई जागर रिलीज होते है जो कि यहां के लोगों के बीच खूब लोकप्रियता भी हासिल करते है,और अब इसी आस्था को बढ़ावा देता नया पांडव जागर “खेला पांशो” रिलीज हुआ है जो कि रिलीजिंग के बाद से ही दर्शकों के बीच अपना रंग जमा रहा है l
बता दें आप में से कई लोग इस कथा से विदित होंगे लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जिन्हें इसके बारे में ज्ञान तक नहीं, महाभारत जैसा महायुद्ध उस युग में हुआ जब साक्षात् श्री कृष्ण इस धरती पर उपस्थित थे ऐसा नहीं है श्री हरि ने युद्ध रोकने का प्रयास न किया हो लेकिन कहते हैं न विनाश काले विपरीत बुद्धि ,दुराचारी दुर्योधन श्री कृष्ण को ही बंधी बनाने चला था,अंततः युद्ध हुआ और कौरव वंश का विनाश हो गया l
बता दें आप में से कई लोग इस कथा से विदित होंगे लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जिन्हें इसके बारे में ज्ञान तक नहीं,महाभारत जैसा महायुद्ध उस युग में हुआ जब साक्षात् श्री कृष्ण इस धरती पर उपस्थित थे ऐसा नहीं है श्री हरि ने युद्ध रोकने का प्रयास न किया हो लेकिन कहते हैं न विनाश काले विपरीत बुद्धि ,दुराचारी दुर्योधन श्री कृष्ण को ही बंधी बनाने चला था,अंततः युद्ध हुआ और कौरव वंश का विनाश हो गया l वहीं इसी कथा पर आधारित नया जागर रिलीज “खेला पांशो” हुआ है जिसमें कथा का विस्तार से वर्णन किया गया है। बता दें इस जगार को गीत गंगा प्रोडक्शन के बैनर तले दर्शकों के बीच जारी किया गया है, जिसको Rameswari Bhatt की बेहतरीन आवाज में गाया है l साथ ही शानदार संगीत की धुन ज्योति प्रकाश पंत के द्वारा दिया गया है l
साथ ही आपको हिमालय की केदारघाटी क्षेत्र में इन दिनों पांडव नृत्य की धूम है। ग्रामीण बड़ी आस्था एवं श्रद्धा के साथ इस नृत्य का आयोजन करते हैं। इसका मुख्य कारण पांडवों के गढ़वाल के प्राचीन इतिहास से जुड़ा होना है। अपने पापों का पश्चाताप करने के लिए स्वर्ग जाते समय पांडव मंदाकिनी नदी के किनारे से होकर केदारनाथ पहुंचे थे। जिन स्थानों से पांडव गुजरे व विश्राम किया वहां विशेष रूप से पांडव लीला आयोजन की परंपरा सदियों से जारी है। जिन स्थानों से पांडव गुजरे व विश्राम किया वहां विशेष रूप से पांडव लीला आयोजन की परंपरा सदियों से जारी है। गढ़वाल में पांडवों का इतिहास स्कंद पुराण के केदारखंड में भी मिलता है। इस पौराणिक एवं धार्मिक संस्कृति को संजोए रखने के लिए ग्रामीण आज भी पांडव लीला का आयोजन भव्य रूप से करते हैं। साथ ही आने वाली पीढ़ी को भी इससे रूबरू कर रहे हैं।
यहां सुने जागर =
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