जैव विविधता का इकलौता उदाहरण है रुद्रप्रयाग के ‘जंगली’ का ये जंगल।पढ़ें रिपोर्ट

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आए दिन हम पर्यावरण को लेकर लोगों की राय सुनते हैं,कोई कहता है ग्लेशियर पिघल रहे हैं,बरसात में बारिश नहीं हो रही समय से पहले गर्मी आ गई है ऐसे ही कई और बातें पर्यावरण में हो रहे बदलावों को लेकर कही जाती हैं,लेकिन सोचने वाली बात तो ये है जब हम अपने घरों के गमलों में पानी डालना भूल जाते हैं तो पूरे विश्व के पर्यावरण पर चिंता करना उचित नहीं,लेकिन उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में एक इंसान ऐसा है जिसने प्रकृति को चुनौती देकर बदलने पर मजबूर कर दिया और आज पूरी दुनिया उन्हें जगत सिंह जंगली के नाम से जानती है।

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कहते हैं जिसे कुछ करना होता है उसे दुनिया के लोगों की राय लेने की जरुरत नहीं पड़ती ऐसी ही कहानी है रुद्रप्रयाग जिले के कोटमल्ला के रहने वाले बीएसएफ से रिटायर जगत सिंह चौधरी की।लोग उन्हें पागल कहते रहे लेकिन जंगली अपने इरादों के पक्के थे और आज उनका खुद का एक जंगल है जिसे बद्रिका मिश्रित वन की संज्ञा दी गई है।इनकी कहानी जितनी दिलचस्प है उतनी ही कठिन भी,इन्होंने एक 3 हेक्टैयर बंजर जंगल को इतना हरा भरा कर दिया कि वहां पर बाँज और चीड़ अब एक ही जंगल में उग रहा है।

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आज पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में जंगली जी के नाम कई पुरस्कार शामिल हैं,इनमें राज्य स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के पुरस्कार शामिल हैं,वर्ष 2001 में जगत सिंह चौधरी इंदिरा गाँधी वृक्ष मित्र पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं,आर्यभट्ट अवार्ड के साथ ही पर्यावरणविद चौधरी उत्तराखंड वन विभाग के ब्रांड एम्बेसडर भी हैं।

क्यों बने जंगली:

हर सफर की एक कहानी होती है जितनी खूबसूरत कहानी होगी सफर में रोमांच भी उतना ही होगा,लेकिन जब सफर में एक बंजर वीरान जंगल मिले तो कहानीकार मजबूत खिलाडी होना चाहिए,जगत सिंह चौधरी ने हालातों से लड़ने की ट्रेनिंग सेना में पहले ही कर दी थी लेकिन ये कहानी वो सेना में कार्यरत होने के दौरान से लिखते आ रहे थे,जब चौधरो एक बार अपनी छुट्टी पर अपने गाँव कोटमल्ला पहुंचे तो यहाँ उनका दिल ये देखकर पसीज किया कि गाँव की महिलाएं चारे एवं पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं,7 8 किमी की दूरी पर जंगल है और पहाड़ का रास्ता इतना सुगम भी नहीं होता कई बार महिलाओं के जंगल में गिरने से वो आहत हो चुके थे कई महिलाएं अपने मवेशियों के चारे के चक्कर में अपनी जान भी गँवा चुकी थी फिर तभी से जगत सिंह चौधरी ‘जंगली’ बन गए और उन्होंने मन में ठान लिया कि अपने गाँव वालों को यहीं पर जंगल उपलबध करवाऊंगा जिससे भविष्य में जानमाल का नुकसान ना हो।

 

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कैसे बनाया बद्रिका मिश्रित वन:

एक विचार को क्रांति में कैसा बदला जा सकता है ये सीख जगत सिंह चौधरी ने पूरे दुनिया को सिखाया,बंजर पड़ी जमीन पर उन्होंने पेड़ लगाना शुरू किया लेकिन पहाड़ तो ढलान वाले थे जिस कारण उपजाऊ मिट्टी पानी के साथ बह जाती थी,अब इस जमीन पर पेड़ लगाकर सुरक्षित रखना अलग चुनौती थी लेकिन वो पेड़ लगाते रहे इसी बीच 1980 में वो बीएसएफ से सेवानिवृत हो गए वो आराम से अपनी बाकी की जिंदगी गुजार सकते थे लेकिन खुद से किया गया वादा नहीं भूले और रिटायर होने के बाद पूरी तरह से जंगल को समर्पित हो गए।अपनी पूंजी से उन्होंने पानी के रुकाव की व्यवस्था की और देखते ही देखते 8 10 सालों में पूरा बंजर जंगल हरा भरा हो गया।जो लोग उन्हें पागल कहते थे वो आज उनका साथ देने लगे और जंगल को संवारने में लग गए,आज जंगली के जंगल में 70 से अधिक प्रजातियों के पांच लाख से भी अधिक पौधे हैं,जैव विविधिता का ऐसा उदाहरण शायद ही दुनिया में कही और देखने को मिले।

क्यों ख़ास है जंगली का बद्रिका वन:

जगत सिंह जंगली का जंगल हर उस व्यक्ति को देखना चाहिए जो पर्यावरण को लेकर सोशल मीडिया या अन्य जगहों पर अपनी चिंता व्यक्त करता हो,एक ही जंगल में कैसे कोई अलग अलग क्लाइमेट में होने वाले पेड़ पौधों को एक जंगल में उगा सकता है ये वहां जाकर अनुभव किया जा सकता है,जिस चीड़ के पेड़ को पानी का दुश्मन माना जाता है वहीँ पर बाँज का पेड़ पानी दे रहा है,रिंगाल वहां हो रहा है,दुनिया भर की औषधियां वहां मिल रही हैं,पेड़ों की छालों पर फल उग रहे हैं।आज भले ही जगत सिंह चौधरी “जंगली” को पूरी दुनिया में सम्मान मिल रहा हो लेकिन जब एक अकेला पर्यावरण संरक्षण में इतना बेहतरीन काम कर रहा था तब वो अपनी पूंजी एक बंजर जंगल को नया जीवन देने में खर्च कर रहा था।

रोजगार के दिए अवसर:

आज जगत सिंह जंगली का मिश्रित वन कोटमल्ला के ग्रामीणों के लिए चारे पानी के साथ ही रोजगार का साधन भी बन गया है,हस्तशिल्प कला का यहाँ पर संरक्षण हो रहा है,ग्रामीण रिंगाल से निर्मित टोकरियां,कंडी,बनाकर अपना रोजगार अर्जित कर रहे हैं।

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