हिन्दू कैलेंडर का चैत्र माह आज से शुरू हो गया है,उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई आज पूरे धूमधाम से मनाया जा रहा है,सुबह सूर्योदय के साथ ही पहाड़ों में नौनिहाल घरों की देहरियों में फूल डालकर इस लोकपर्व को बड़े स्नेह भाव से मना रहे हैं,बाल देव घोगा की डोली बच्चों के कन्धों पर मानो ऐसी प्रतीत हो रही है जैसे स्वयं ईश्वर भी इस लोकपर्व को मनाने धरती पर उतर आए हों,चैत का महीना खुदेड़ महीना माना जाता है तो आइए आज देखते हैं कौनसे वो गीत हैं जिन्हें सुनकर विवाहित महिलाएं भावुक हो जाती हैं।
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उत्तराखंड संगीत जगत में चैत के महीने पर कई गीत बने हैं लेकिन जो गीत सबके मन के भावों को एकसाथ उजागर कर सके वो गीत स्वरकोकिला मीना राणा ने गाया है गीत के बोल नरेंद्र सिंह नेगी ने लिखे हैं।गीत के बोल ऐसे लिखे गए थे कि सदियां बीत जाएँगी पर गीत का भाव तब भी वही रहेगा।
“घुघुती घूरोण लगी मेरा मैत की बौडी-बौडी ऐगे ऋतु चैत की डांडयों खिलणा होला बुरांशी का फूल पाखों हैंसणी होली फ्योंली मुल-मुल”
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गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी की कलम से जो भी गीत निकला वो अपने आप में उत्तराखंड को समेटे हुए थे,आज की पीढ़ी को हिन्दू माह के महीने तक याद नहीं होते तो चैत बैशाख का अंतर उन्हें क्या ही समझ में आएगा,अब जिनके लिए ये गीत लिखा गया था जब भी ये गीत सुनती होंगी यकीकन उनकी आँखें नम हो जाती होंगी,पहाड़ का जीवन पहाड़ जैसा ही मुश्किल है,घर जंगल के कामों में महिलाएं इतनी व्यस्त रहती हैं कि उन्हें दिन वार तक का ख्याल नहीं रहता,जब सुबह घुघूती अपने कंठ से घुर घुर की आवाज निकालती है तो वो ख्यालों में ही मायके का चित्र अपने मन में उबार लेती हैं।जिनका जीवन ही जंगलों से घास लकड़ी लाकर बीता हो वही अपने मायके के जंगल को याद कर सकता है,कभी उसने भी देहरियों पर फूलदेई के दिन फूल डाले होंगे तभी तो गीतकार ने ये लिखा “फुलारी फूलपाती लेकि डेली डेली जाला दगड़्या भग्यान थड्या चौंफला लगाला।
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कल्पना चौहान की आवाज में रिकॉर्ड गीत “ना बास घुघूती चैत की खुद लगीं चा माँ मैत की” भी कुछ ऐसी ही कहानी दर्शाता है।चैत का महीना खत्म होते ही बैसाख का महीना लग जाएगा पूरे पहाड़ में कौथिग शुरू हो जाएंगे।जाते जाते ये गीत सुनकर जाइये।
लोकपर्व फूलदेई और हिन्दू नववर्ष चैत की आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं।