एक दम्पती की प्रेमकथा — विरह, समर्पण और पहाड़ी संवेदना की सोंधी महक के साथ

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गढ़वाल की शांत वादियों, कोहरे से ढके रास्तों और लोकबोलियों की मिठास से लिपटा एक गीत — “काँच की चूड़ी” — आज की तारीख में सिर्फ एक संगीत रचना नहीं, बल्कि एक भाव है, एक प्रतीक है उन रिश्तों का, जो दूरी में भी जुड़ाव ढूंढ लेते हैं।

गीत का भावनात्मक कॉन्सेप्ट

इस गीत की आत्मा बस प्रेम नहीं, प्रतीक्षा है। कहानी है एक ऐसे पति-पत्नी की, जिनकी शादी तो हुई है, पर जीवन की चुनौतियों ने उन्हें अलग कर दिया है। पति रोज़गार की तलाश में शहर की भीड़ में गुम है, और पत्नी — पहाड़ की गोद में, हर सुबह एक नई आस के साथ उसका इंतज़ार करती है।
काँच की चूड़ी, इस गीत में एक प्रतीक है — उस नाजुक रिश्ते का, जो जितना कोमल है, उतना ही मजबूत भी। हर टनकती चूड़ी में एक आवाज़ है — विरह की, समर्पण की, और उस अधूरे मिलन की, जो हर पहाड़ी घर की कहानी हो सकती है।

पहाड़ी संस्कृति का सजीव प्रतिबिंब

इस गीत की हर पंक्ति गढ़वाली लोकभाषा में रची गई है — जो इसे सिर्फ सुनने भर का नहीं, महसूस करने लायक बना देती है। पहाड़ की सादगी, बोली की मिठास, और लोककथाओं की झलक — सब कुछ इसमें घुला-मिला है। बता दें, यह गाना हाल ही में रिलीज हुआ है लेकिन हर किसी को मोहित कर गया है।

मुख्य टीम और क्रेडिट्स

गायक: केशर पंवार & प्रतिक्षा बमराडा
गीतकार: केशर पंवार
संगीत: राकेश भट्ट
रिकॉर्डिंग: पवन गुसाईं
स्टूडियो: केदार स्टूडियो
रिदम: सुभाष पांडे
कलाकार: अजय एच. सोलंकी एवं पूजा नौड़ियाल (नौड़ी)
DOP व एडिट: देवेंद्र नेगी
निर्देशन: अरुण फरासी


“काँच की चूड़ी” सिर्फ एक गाना नहीं है, यह पहाड़ की उस स्त्री की आवाज़ है, जो इंतज़ार में भी मुस्कराती है। यह उस प्रेमी की पुकार है, जो दूर रहकर भी हर धड़कन में जुड़ा रहता है। अगर आपने अब तक नहीं सुना — तो इस गाने को ज़रूर देखिए, और खुद को बहा दीजिए गढ़वाल की संस्कृति, विरह, और प्रेम के उस दरिया में — जहाँ हर बूंद एक कहानी है।