संगीता ढौंडियाल का सुपरहिट गीत – ढोल दमों बाजी गेना पहुंचा 1.1 करोड़ के पार बना डीजे में पहली पसंद

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Dhol damau baji gena

उत्तराखंड की अपनी एक समृद्ध एवं गौरवशाली सांस्कृतिक परंपरा रही है किसी भी सभ्यता एवं संस्कृति में सांस्कृतिक गतिविधियां अहम् भूमिका निभाते हैं।यहाँ के वाद्य यंत्रों की भी अपनी विशेषता है। ढोल और दमाऊ उत्तराखंड के पारम्परिक वाद्य यंत्र हैं जो हर मांगलिक कार्य पर बजाए जाते हैं. शादी विवाह हो या देवी देवताओं के धार्मिक कार्यकर्म ढोल दमाऊ की थाप जरूर सुनने को मिलेगी। कहा जाता है कि ढोल सागर में प्रकृति, देवताओं, मानव जाति, को समर्पित 300 से अधिक ताल हैं. इस लोककला को संजोने में लोकगायिका संगीता ढौंडियाल ने अपने गीत ढोल दमों बजी गेना गाकर अहम् भूमिका निभाई है। जोकि आजकल हर शादी व्याह में डीजे पर लोगों की पहली पसंद बना हुआ है

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उत्तराखंड के इतिहास में संगीत ने सदैव अपनी भूमिका निभाई है चाहे राज्य आंदोलन हो या टिहरी विरासत का विलय यहाँ के लोक गायकों ने अपने गीतों के जरिए जनमानस को मनोरंजन करने के साथ ही सन्देश पहुँचाने का भी काम किया है। संगीता ढौंडियाल ने भी अपने गीत के माध्यम से इस अनमोल धरोहर की महत्ता को दर्शकों तक समझाया है और दर्शकों ने भी उनके इस प्रयास की सराहना की है और अब तक ये गीत 80 लाख श्रोताओं के दिल में बस चुका है संगीता ने इस गीत में पहाड़ के कई रीती रिवाजों को शामिल किया है।

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ढोल दमाऊ बजी गेना दगड़्या की बाराती मा कनि रंगत ऐगे गीत से उन्होंने पहाड़ में होने वाले विवाह का वर्णन किया है। विवाह में निभाई जाने वाली रस्मों मेहंदी से लेकर शादी में बनने वाले पहाड़ी व्यंजन अरसा और पकोड़ी का जिक्र भी किया है। गीत का वीडियो संगीता ढौंडियाल के यूट्यूब चैनल पर रिलीज़ हुआ है जिसमे संगीतकार रणजीत सिंह पहाड़ी वाद्ययंत्र मशकबाज बजाते हुए नजर आ रहे हैं जबकि अन्य साथी ढोल दमाऊ, हारमोनियम, हुड़का के साथ अपनी लोककला का प्रचार- प्रसार कर रहे हैं। गोविन्द नेगी ने भी गीत के महत्व को देख कर शानदार कैमरा वर्क किया है। कुछ दशकों पहले पहाड़ के विवाह समारोह में होने वाले मांगल गीतों का भी संगीता ने जिक्र किया है। जो कि आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा का कार्य है।

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क्योंकि अब इनकी जगह मॉडर्न ज़माने के बैंड- बाजे और डीजे ले चुके हैं, दर्शकों ने गीत पर सकारात्मक टिप्पणियां की हैं और संगीता ढौंडियाल को इस गीत के लिए बधाइयाँ दी हैं।
इस तरह के प्रयास अगर संस्कृति के संरक्षक समय रहते कर लें तो पूर्वजों की धरोहर को संजो पाएंगे और आने वाली पीढ़ी को सौगात स्वरुप दे पाएंगे।

देवभूमि उत्तराखण्ड अपनी लोक संस्कृति एवं यहाँ की लोक परम्पराओं के लिए जग जाहिर है। उत्तराखण्ड की लोक कला की धरोहर ढोल और दमाऊं ही एक ऐसा माध्यम है जिसकी थाप सुनकर देवता इंसानी देह में अवतरित हो जाते हैं। ढोल सागर के जानकारों को औजी या ढोली कहा जाता है।

उत्तराखंड की धरोहर अब आपके हाथों में लीजिये सुनिए ये बेहतरीन गीत

HILLYWOOD NEWS
RAKESH DHIRWAN

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