रुद्रप्रयाग के फाटा में लगने वाले- पांगरी मेला और माँ दुर्गा के महिषमर्दिनी अवतार का क्या है नाता? पढ़ें रिपोर्ट !!

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MAHISMARDANI 1

जनपद रुद्रप्रयाग बाबा केदारनाथ का स्थल होने के साथ ही कई पौराणिक धरोहरों को संजोने वाला जिला है,माता महिषमर्दनी और महिषासुर वध से जुड़े कुछ तथ्य यहाँ आज भी देखने को मिलते हैं। आपने हाल ही में नवीन सेमवाल और मास्टर मोहित सेमवाल का गीत पांगरी का मेला तो सुना ही होगा और आपके मन में भी कई सवाल इस मेले से जुड़े रहस्य के बारे में और कहाँ लगता है ये मेला जरूर होंगे महिषमर्दिनी मंदिर के मठाधीश नवीन सेमवाल से हमने कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां जानने की कोशिश की और आप तक भी इन पौरणिक धरोहरों को पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं।

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पढ़िए पांगरी का मेला और माता महिषमर्दिनी का इस मेले से क्या जुड़ाव है !!

जनपद रुद्रप्रयाग के खड़िया गांव में 6 7 गते बैशाख यानि 19 20 अप्रैल को मेले का आयोजन होता है,यह स्थल गुप्तकाशी फाटा से मात्र 500 मीटर की दूरी पर है। यहाँ पर माता महिषमर्दनी का मंदिर है और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब माँ दुर्गा ने महिषासुर दानव का वध किया और महिषमर्दिनी कहलाई ,ऐसा माना जाता है कि महिषासुर वध के बाद जब माता लौटी थी तो इन्होने इस जगह पर विश्राम किया था और यहीं पर आज महिषमर्दिनी माता का मंदिर है,नौ दिन तक चले इस युद्ध में दसवे दिन माता दुर्गा विजयी हुई थी और तभी से नौ दिनों के नवरात्रे और दसवें दिन विजयादशमी मनाई जाती है।

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जिस स्थान पर माता ने विश्राम के लिए स्थान लिया था वहां पर माता का मंदिर है और वहीँ कुछ दूरी पर पांगरी जो स्थान है वहीँ पर मेले का अब आयोजन होता है ,माता महिषमर्दिनी सम्पूर्ण केदार घाटी की कुलदेवी हैं ,धार गांव के सेमवाल माँ महिषमर्दिनी के मुख्य पुजारी हैं और वर्तमान में लोकगायक नवीन सेमवाल मंदिर मठपति हैं ,
माता दुर्गा का रूप होने के कारण केदारनाथ भगवान की यात्रा का भी इस मंदिर से खास नाता है,कहा जाता है कि सड़क निर्माण से पहले केदारनाथ जाने का मुख्य रास्ता यही था किन्तु अब सड़क मार्ग बनने के बाद भी बाबा केदार की डोली केदारनाथ आते और वापस ओम्कारेश्वर मंदिर जाते हुए माता महिषमर्दिनी के मंदिर में जरुर विश्राम करती है,और स्थानीय मान्यताओं के अनुसार बाबा केदारनाथ की डोली को मंदिर में प्रवेश करने नहीं दिया जाता है और उनको देहरि से अंदर आने से रोकने के लिए बिच्छू घास (स्थानीय भाषा में कंडाली) को देहरी पर रखा जाता है।
वहीँ माता महिषमर्दिनी अपने पश्वा पर साल भर में 2 ही बार अवतरित होती है एक विजयदशमी के दिन और एक मेले के दिन। अवसर प्राप्त हो तो जरूर माता महिषमर्दिनी के दर्शन करने जरूर जाएं और पांगरी के मेले भी घूम आएं!

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जानिए क्यों बनी माँ दुर्गा महिषमर्दिनी और कैसे रक्षा की थी सम्पूर्ण सृष्टि की !!

तीनों लोकों में आतंक मचाने वाले महिषासुर नाम के दैत्य का जन्म असुरराज रम्भ और एक महिष (भैंस) त्रिहायिणी के संग से हुआ था। रम्भ को जल में रहने वाली महिष से प्रेम हो गया। उनके संयोग से उत्पन्न होने के कारण महिषासुर अपनी इच्छा के अनुसार कभी मनुष्य तो कभी भैंस का रूप ले सकता था ।महिषासुर राजा बना तो उसने घोर तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न कर उनसे अमर होने का वरदान मांगा, जिसे देना संभव न बताते हुए ब्रह्माजी ने उससे कोई अन्य वर मांगने के लिए कहा। तब उसने वर मांगा कि देव, दानव व मानव- इन तीनों में से किसी भी पुरुष द्वारा मेरी मृत्यु न हो सके। स्त्री तो मुझे वैसे भी मार नहीं सकती। वर पा लेने के बाद उसने पृथ्वी को जीत लिया और स्वर्ग पर आक्रमण करके देवताओं से वहां का आधिपत्य छीन लिया।

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डरे हुए देवतागण ब्रह्माजी के पास व शिवजी के पास गए। और फिर वहां से सब मिल कर भगवान विष्णु के पास गए व अपनी रक्षा एवं सहायता की प्रार्थना की। यहीं से देवी के प्रकट होने की कथा आरम्भ होती है । देवताओं ने भगवान विष्णु से पूछा कि ऐसी कौन स्त्री होगी जो दुराचारी महिषासुर को मार सके, तब भगवान विष्णु ने कहा कि यदि सभी देवताओं के तेज से, सबकी शक्ति के अंश से कोई सुंदरी उत्पन्न की जाये, तो वही स्त्री दुष्ट महिषासुर का वध करने में समर्थ होगी। सभी देवतोओं के तेज से ए सुन्दर तथा महतेजस्विनी नारी प्रकट हो गई ।
स देवी के बारे में और उनकी सुंदरता के बारे में सुन महिषासुर उन पर मोहित हो गया और अपने भेजे हुए दूतों से गर्जन करती हुई सुंदर, लेकिन भयभीत करने वाली सुंदरी को साम आदि (साम, दाम ) उपायों से किसी भी प्रकार भी वहां लिवा लाने के लिए भेजा । देवी ने मंत्रीगणों को कहा की अब तुम उस पापी से जाकर कह दो कि यदि तुम जीवित रहना चाहते हो तो तुरंत पाताल लोक चले जाओ, अन्यथा मैं बाणों से तुम्हारा शरीर नष्ट -भ्रष्ट करके तुम्हें यमपुरी पहुंचा दूंगी ।

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सिंह पर सवार, सर्वाभूषणों से सुसज्जित देवी शोभामयी लग रही थी। अब सब देवों ने उन्हें विविध शस्त्र प्रदान किये। इस प्रकार सब आभूषणों से, शस्त्राशस्त्र से सुसज्जित भगवती को देख कर उनकी स्तुति करने लगे एवं उन्हें महिषासुर द्वारा किये गए उपद्रवों के बारे में बता कर उनसे रक्षा की प्रार्थना की । इस पर भगवती ने कहा कि हे देवगण ! भय का त्याग करो, उस मंदमति महिषासुर को मैं नष्ट कर दूंगी
इसके बाद देवी और महिषासुर के दैत्यों में घोर युद्द हुआ और देवी ने सभी का वध कर दिया। अंत में महिषासुर स्वयं संग्राम के लिये चला। तब माता नो कहा अब तू मुझसे युद्ध कर या पाताल लोक में जा कर रह, अन्यथा मैं तेरा वध कर दूंगी । देवी द्वारा ऐसा कहने पर वह क्रोधित हो गया और महिष (भैंस) का रूप धारण किया व सींगों से देवी पर प्रहार करने लगा। तब भगवती चण्डिका ने अपने त्रिशूल से उस पर आक्रमण किया। इसके बाद देवी ने सहस्र धार वाला चक्र हाथ में ले कर उस पर छोड़ दिया और महिषासुर का मस्तक काट कर उसे युद्ध भूमि में गिरा दिया।इस प्रकार दैत्यराज महिषासुर का अंत हुआ व भगवती महिषासुरमर्दिनी कहलायीं। देवताओं ने आनंदसूचक जयघोष किया। राजा की मृत्यु से बचे हुए भयभीत दानव अपने प्राण बचा कर पाताल लोक भाग गए। देवी और महिषासुर तथा उसकी सेना के बिच पूरे नौ दिन युद्द चला इसलिए नवरात्रे बनाए जाते है और दशवें दिन महिषासुर का वध कर दिया इसलिए उस दिन विजयादशमी।

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Hillywood News
Rakesh Dhirwan

देखिए पांगरी के मेले में जाने के लिए कैसे जिद्द कर रहे हैं मास्टर मोहित सेमवाल !!

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