देवभूमि उत्तराखण्ड के वीर सपूत, महावीर चक्र विजेता राईफलमैन जसवंत सिंह रावत जी की पुण्यतिथि पर उन्हें शत-शत नमन। उनकी अद्वितीय बहादुरी और बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा।जसवंत सिंह रावत ने 1962 में भारत-चीन युद्ध में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया, जिसके लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। वह 4th गार्हवाल राइफल्स रेजिमेंट के जवान थे और नुरानंग की लड़ाई में अपनी बहादुरी का परिचय दिया ।
उनकी कहानी पीढ़ियों तक प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी। जसवंत सिंह रावत की वीरता को याद करते हुए हमें उनके बलिदान को कभी नहीं भूलना चाहिए। वह सच्चे देशभक्त और वीर योद्धा थे जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। आज भी उनकी याद में जसवंत गढ़ मेमोरियल बनाया गया है, जहां उनकी वीरता को याद किया जाता है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि देश की रक्षा के लिए हमें अपने जीवन को समर्पित करने से नहीं हिचकिचाना चाहिए। जसवंत सिंह रावत अमर रहें!
जसंवत सिंह की बहादुरी के किस्से:
1= नूरारंग की इस लड़ाई में चीनी सेना मीडियम मशीन गन (MMG) से ज़ोरदार फायरिंग कर रही थी, जिससे गढ़वाल राइफल्स के जवान मुश्किल में थे. ऐसे वक़्त में गढ़वाल राइफल्स के तीन जवानों ने युद्ध की दिशा बदलकर रख दी. ये थे राइफलमैन जसवंत सिंह, लांस नायक त्रिलोक सिंह और राइफलमैन गोपाल सिंह. ये तीनों भारी गोलीबारी से बचते हुए चीनी सेना के बंकर के करीब जा पहुंचे और दुश्मन सेना के कई सैनिकों को मारते हुए उनसे उनकी MMG छीन ली।
2 = 17 नवंबर 1962 को हुए चीन के हमले में गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन के ज्यादातर जवान शहीद हो गए थे, लेकिन जसवंत सिंह अकेले ही 10 हज़ार फीट ऊंची अपनी पोस्ट पर डटे रहे। उनकी मदद दो स्थानीय लड़कियों सेला और नूरा ने की, जो मिट्टी के बर्तन बनाती थीं। इनकी मदद से जसवंत सिंह ने अलग-अलग जगहों पर हथियार छिपाए और चीनी सेना पर जोरदार हमला बोल दिया। वह चीनी सेना की एक पूरी टुकड़ी से अकेले लड़ रहे थे, लगातार। इस लड़ाई में जसवंत सिंह ने अकेले ही 300 से ज्यादा चीनी सैनिकों को मार गिराया था।
3 = चीनी सैनिकों को मारते-मारते जसवंत खुद भी बुरी तरह से घायल हो चुके थे, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।चीनी सैनिकों ने उन्हें बंदी बनाकर मार डाला, लेकिन तब तक भारतीय सेना की और टुकड़ियां युद्धस्थल पर पहुंच गईं और चीनी सेना को रोक लिया। इस बहादुरी के लिए जसवंत सिंह को महावीर चक्र और उनके साथियों त्रिलोक सिंह और गोपाल सिंह को वीर चक्र दिया गया। जसवंत सिंह रावत की याद में अरुणाचल प्रदेश के नुरानंग में एक झोपड़ी बनाई गई है, जिसे जसवंत गढ़ कहा जाता है। इसमें उनके लिए एक बेड लगा हुआ है और उस पोस्ट पर तैनात जवान हर रोज़ बेड की चादर बदलते हैं और बेड के पास पॉलिश किए हुए जूते रखते हैं।