रामेश्वर गैरोला ने सावन मास में की वृद्धकेदार(बूढ़ाकेदार) की स्तुति ! जानें कहाँ है ये पांचवा धाम !

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उत्तराखंड के प्रसिद्ध गायक एवं गीतकार रामेश्वर गैरोला ने पावन सावन मास में आराध्य देव वृद्धकेदार (बूढ़ाकेदार)की स्तुति भजन रूप में की है,यह भजन रामेश्वर गैरोला के यूट्यूब चैनल से ही रिलीज़ किया गया। 

भगवान् शिव देवों के देव हैं वही महादेव हैं ,उनका न आदि है न अंत जितने भक्त इस धरती पर भोलेनाथ के हैं शायद ही दुनिया में किसी और देव के होंगे,शिव ही योगियों के योगी आदियोगी हैं अर्ताथ शिव स्वयं में पूर्ण हैं,भगवान् शिव को सावन मास अति प्रिय है और कहा जाता है अगर सच्ची श्रद्धा से कैलाशपति को जल भी अर्पण करें तो भक्त के हर कष्ट दूर हो जाते हैं और हर मनोकामना की पूर्ति होती है।

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ऐसी ही शिव स्तुति की है उत्तराखंड के प्रसिद्ध गायक रामेश्वर गैरोला ने,भजन में रामेश्वर ने वृद्धकेदार(बूढ़ाकेदार) की स्तुति की है,भजन को गीत संगीत रामेश्वर गैरोला ने ही दिया है साथ ही संस्कृत मंत्रो का उध्घोषण एवं उसका अर्थ भी भक्त गणों को बतलाया है।

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इस स्तुति में उन्होंने बूढ़ाकेदार भगवन की स्तुति की है,जब पांडव गोत्र हत्या के पाप से लिप्त हो चुके थे तो श्रीकृष्ण ने सुझाव दिया था कि इस पाप से मुक्ति केवल भोलेनाथ ही दे सकते हैं ,और पांडव निकल पड़े थे शिव की खोज में लेकिन भोलेनाथ इतनी आसानी से कैसे दर्शन दे सकते थे नहीं तो जग को क्या सन्देश जाता कि भोले भंडारी जल्दी दर्शन दे देते हैं इसीलिए भगवान् शिव ने पांडवों को अपने पंचकेदारों के दर्शन करा दिए।

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जानिए क्या है बूढ़ाकेदार की विशेषता: बूढ़ाकेदार टिहरी जनपद का प्रसिद्ध धाम है पूर्व में केदारनाथ यात्रा के पैदल मार्ग में पड़ने वाले बूढ़ाकेदार में भगवान् शिव ने वृद्ध व्यक्ति के रूप में पांडवों को दर्शन दिए और तबसे बाबा केदार की यात्रा वृद्धकेदार की यात्रा के बिना अधूरे माने जाते हैं,बूढ़ाकेदार उत्तराखंड का पांचवा धाम है एवं बाल गंगा और धर्म गंगा दो नदियों के संगम में यह पवित्र धाम स्थित है,इस पावन धाम की नींव आदिगुरु शंकराचार्य ने रखी मंदिर के अंदर विराजमान शिवलिंग में पांडवों की आकृतियां उभरी है।ऐसा कहा जाता है कि पांडवों को दर्शन देने के बाद शिव शंकर शिला रूप में यही विराजमान हो गए बूढ़ा केदारनाथ मन्दिर के गर्भगृह में विशाकाय लिंगाकार फैलाव वाले पाषाण पर भगवान शंकर की मूर्ति और लिंग विराजमान है। कहा जाता है इतना बड़ा शिवलिंग शायद देश के किसी भी मंदिर में नहीं दिखाई देता। मंदिर में श्रीगणेश जी एवं पांचो पांडवों सहित द्रौपदी के प्राचीन चित्र उकेरे हुए हैं। मंदिर में ही बगल में भू शक्ति, आकाश शक्ति और पाताल शक्ति के रूप में विशाल त्रिशूल विराजमान है।

और इस मंदिर के पुजारी नाथ जाति के लोग होते हैं। इसी स्थान से प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थल सहस्रताल पहुंचा जाता है।

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श्रावण मास में पैदल कांवड़ यात्रा के दौरान शिव भक्त बूढ़ाकेदार के दर्शन करते हैं। बूढ़ाकेदार के दर्शन के लिए दूर-दराज क्षेत्रों से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। यह काफी प्राचीन केदार में एक माना जाता है। वर्तमान में केदारनाथ की पैदल कांवड़ यात्रा यहीं से होकर निकलती है। यहां पर बूढ़ाकेदार का प्राचीन मंदिर था, जिसे अब भव्य रूप दिया है। क्षेत्र ही नहीं दूर-दराज क्षेत्र के लोगों की इस धाम के प्रति अटूट आस्था है।

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लेकिन कोरोना महामारी के चलते ये पावन धाम आज वीरान पड़ा है ,बूढ़ाकेदार बाबा से यही विनती है कि अपनी धरा को संवारें आप ही इस धरती के मुखिया हो आज सब अस्त व्यस्त पड़ा है आपको ही इसे सजाना संवारना है सब ठीक रहा तो जल्द ही बाबा बूढ़ाकेदार के दर्शनों को भक्तगण पहुंचेंगे।

कैसे पहुंचेंगे उत्तराखंड में नई टिहरी शहर से बूढ़ा केदार की दूरी 60 किलोमीटर है।पहले ऋषिकेश पहुंचे फिर नई टिहरी और यहां से बस से यहां पहुंचा जा सकता है। हालांकि टिहरी से बूढ़ा केदार पहुंचने के लिए बहुत अच्छी सड़क नहीं है। घनसाली से नई टिहरी से यहां के लिए जीप भी मिल जाती है। समुद्रतल से 5100 फीट या 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बूढ़ा केदार में सालों भर हल्की सर्दी रहती है इसलिए गर्म कपड़े लेकर जरूर आएं।

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आप भी कीजिए वृद्धकेदार की स्तुति और सुनिए रामेश्वर गैरोला की मधुर आवाज में ये भजन :

 

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