बिनसर अभयारण्य में वनाग्नि की भीषण घटना के बाद शासन से लेकर जिला स्तर पर अधिकारी और जनप्रतिनिधि सभी प्रभावितों के साथ खड़े रहने की बात करते रहे। दिल्ली एम्स में घायलों के बेहतर उपचार के दावे भी खूब हुए। फिर भी पीआरडी जवान कुंदन की जान नहीं बचाई जा सकी। चिकित्सक उसका जीवन बचाने के लिए दिन-रात मेहनत करते रहे लेकिन 18 दिन के संघर्ष के बाद वह जीवन की जंग हार गया। उसकी मौत से उसके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूटा है तो एक के बाद एक हो रही घायल वन कर्मियों की मौत से सिस्टम पर भी सवाल उठ रहे हैं।
बिनसर अभयारण्य में 13 जून को भीषण आग लग गई और वन बीट अधिकारी सहित आठ वन कर्मियों को बगैर संसाधनों के मौके पर भेज दिया गया। सभी वन कर्मी अपनी जिम्मेदारी निभाने मौके पर पहुंचे लेकिन चार वन कर्मी भीषण आग में जिंदा जलकर काल के गाल में समा गए। गंभीर रूप से झुलसे चार वन कर्मियों को उपचार के लिए दिल्ली एम्स पहुंचाया गया। घटना के बाद अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने मृतकों के साथ ही घायलों के घर पहुंचकर परिजनों को साथ होने का हौसला दिया। घायलों के बेहतर उपचार के दावे किए गए लेकिन चिकित्सकों की भरपूर कोशिशों के बाद भी फायर वॉचर और पीआरडी जवान की जान नहीं बचाई जा सकी।
पीआरडी जवान कुंदन अपनी पत्नी गंगा(37), बेटे सुमित(13), प्रियांशु(15) और बेटी प्रीति(13) के साथ हंसी-खुशी दिन बिता रहा था। फायर सीजन में उसकी ड्यूटी जंगलों की सुरक्षा के लिए वन विभाग में लगाई गई थी। हैरानी है कि संसाधनों के अभाव में वनाग्नि ने उसका जीवन छीन लिया। उसकी मौत से हंसते-खेलते एक परिवार की खुशियों पर हमेशा के लिए ग्रहण लग गया। कुंदन, उसके साथी वन कर्मियों की मौत और घायलों के साथ ही प्रभावित परिवारों की इस हालत का जिम्मेदार वनाग्नि रही या सिस्टम लोगों के मन में यह सवाल बार-बार उठ रहा है।