जनगायक पवन सेमवाल उत्तराखंड की आम जनता की आवाज बनकर उभर रहे हैं और समय-समय पर अपने गीतों से सरकार पर तंज कसते रहते हैं.इनका विवादों से पुराना नाता रहा है लेकिन सच्चे जनगायक की भांति अपने गीतों से सत्ता के रसूखदारों की कुर्सी हिलाने का दम रखते हैं।
पिछले वर्ष मोदी दीदा झाँपू थें भगोंदी छै की ना गीत से गायक पवन सेमवाल ने वर्तमान सरकार के मुखिया पर तंज कस दिया जिससे प्रदेश सरकार आहत हुई लेकिन एक जनगायक की आवाज को दबाने में असफल हुई ,गीत में पवन सेमवाल ने प्रधानमंत्री से उत्तराखंड राज्य की कमान किसी और के हाथों में सौंपने की बात कही थी,जिससे सरकारी तंत्र में तिलमिलाहट मच गई और इस गीत को बैन करने की मांग होने लगी,लेकिन एक जनगायक की आवाज को सत्ता का बल न कभी रोक पाया है न भविष्य में कभी ऐसा हो सकता है।
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जब जनता सरकार की नीतियों से संतुष्ट न हो तो राजा बदलने की मांग उठने लगती है और योग्य मुखिया की मांग होने लगती है जो कहीं न कहीं राज्य हित में उचित है ,
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पवन सेमवाल ने पुनः अपने गीत कनु के होलु विकास से उत्तराखंड के रुके विकास रथ को हिलाने का प्रयास किया है और एक बार फिर जनता के बीच लोकप्रिय हो गए हैं,उत्तराखंड आज भी विकासशील राज्यों की श्रेणी में शामिल है और ऐसी अनगिनत समस्याओं का सामना कर रहा है जिसका निवारण पहाड़ जितना बड़ा भी नहीं है लेकिन इस पहाड़ को उठाने के लिए 20 वर्षों से कोई योग्य कन्धा नहीं मिल पाया है जिससे प्रदेश की जनता भी परेशान है।
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रोजगार, पलायन शिक्षा,एवं स्वास्थ्य जो मूलभूत आवश्यकताएं हैं उनसे आम जनता आज भी वंचित है जिससे सरकार से नाराजगी होना जाहिर है, पहाड़ी भौगोलिक स्थति होने के कारण सड़क का हाल तो मान भी लें लेकिन जो जरुरी है वही नहीं मिला है तो राज्यवासी विद्रोही तो बनेंगे ही।
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जनगायक पवन सेमवाल ने पुनः एक बार सुर छेड़ें हैं देखना होगा सरकार के कानों तक ये स्वर कब पहुँचते हैं और शायद गीत से ही स्थति का हाल जान लें।