अब भूला बिसरा सा हो गया है उत्तराखंड का यह प्रमुख अनाज

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अब भूला बिसरा सा हो गया है उत्तराखंड का यह प्रमुख अनाज

भारत का मिलेट्स जिसे अतंराष्ट्रीय स्थर तक पहुंचाने का प्रयास जारी है, जिसको लेकर सराकार निरंतर कार्यरथ है, उसके बावजूद भी यहां के लोग मोटे अनाज से दूरी बनाए हुए हैं, यही हाल उत्तराखंड में भी देखा जाता है जहां के लोग एक समय मोटे अनाज पे ही निर्भर थे, लेकिन बदलते वक्त ने इनके इस टेस्ट को भी बदल दिया है.

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जैसा की आप सभी लोग जानते हैं कि 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स या मोटा अनाज वर्ष के तौर पर घोषित किया गया है, जिसके बाद से ही केन्द्र और राज्य सरकार की मोटे अनाजों को बढ़ावा देने की नीति बनाने में लगी है, लोगों तक प्रचार कर रही है, खासकर उत्तराखंड की बात की जाए तो यहां सवाल यह पैदा होता है कि जहां पहले लोग मोटे अनाज पर ही पूरी तरह निर्भर रहते थे फिर ऐसा क्या हुआ जो आज यह उत्तराखंड में अलूप होता जा रहा है, वो उत्तराखंड जिसके गठन के समय हर किसी की जुंबा पे बस यही रहता था कि मडुवा-झुंगरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे.

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मोटे अनाज को बढ़ावा देने से पहले आपका यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर मोटा अनाद होता क्या है, इसके क्या लाभ है, और क्यों सरकार द्वारा इसका बढ़ चढ़कर प्रचार किया जा रहा है, बता दे मोटे अनाज अत्यधिक पोषक, अम्ल-रहित, ग्लूटेन मुक्त और आहार गुणों से युक्त होते हैं, इसके अलावा, बच्चों और किशोरों में कुपोषण खत्म करने में मोटे अनाज का सेवन काफी मददगार होता है क्योंकि इससे प्रतिरक्षा और स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है.

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बता दें इस वर्ष मनाए जा रहे अंतरराष्ट्रीय मोटे अनाज वर्ष में आठ अनाजों को शामिल किया है जिसमें, बाजरा, ज्वार, रागी (मंडुआ), सांवा, कंगनी, कोदो, कुटकी और चेना शामिल हैं. इन सभी अनाजों के पौष्टिक गुणों और इससे होने वाले फायदे को लेकर सभी राज्य सरकार और केंद्र सरकार जागरूकता अभियान चला रहे हैं जिससे किसान इसकी खेती कर सकें और लोग अपने आहार में इन मोटे अनाजों को शामिल कर सकें.

उत्तराखंड की बात की जाए तो यहां गहथ, रैंस, भट्ट, उड़द जैसी दालों के साथ ही, मण्डुवा, झंगोरा, जौ जैसे मोटे अनाजों की खेती होती है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इनका उत्पादन घटा है, अब यहां भी किसान बाजार से गेहूं, चावल जैसे अनाज खरीदते हैं, उत्तराखंड के जो पारपंरिक अनाज है उसमें झंगोरा यानि सावां और मड़ुआ यानि रागी यही दो अनाज हैं, जिन्हें मोटा अनाज कहा जाता है, ये हेल्थ फ्रेंडली भी हैं, सावां को प्रोसेस  उसका चावल बनता है, जबकि मड़ुआ का आटा बनाते हैं, पहाड़ की दालें भी मोटे अनाज में गिनी जाती हैं, जितनी भी दालें होती हैं पहाड़ की राजमा, गहथ, भट्ट, रयांस, उड़द आदि

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अध्ययन में तथ्य सामने आया कि ग्रामीण परंपरागत अनाज की महत्ता, पोषकीय महत्व व औषधीय लाभ बखूबी जानते हैं, ग्रामीणों ने माना कि पहाड़ी गहत पथरी व झुंगरा मधुमेह के इलाज में कारगर है, मगर नई पीढ़ी परंपरागत अनाजों को कम पसंद करने लगी है, इससे पीढ़ी दर पीढ़ी मोटे अनाज के पकवान व उनसे जुड़ा ज्ञान खोते जा रहे, जिसे जीवित रखना हमारा आपका कर्तव्य है.

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