बूढ़ा केदार मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के टिहरी जिला में टिहरी शहर से लगभग 60 किलोमीटर की की दूरी पर समुद्र तल से तकरीबन 4400 फुट की ऊंचाई के साथ स्थित हिंदुओं का एक पवित्र धार्मिक स्थल है।यह पवित्र बूढ़ा केदार मंदिर भगवान शिव को समर्पित हिंदू धर्म से जुड़ी एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। इस मंदिर का महत्व भी उत्तराखंड के चार धामों जैसा है, इसे लोग पाँचवा केदार के लिए भी जानते हैं। यह पवित्र मंदिर बूढ़ा केदार बाल गंगा और धर्म गंगा नदियों के संगम के पास स्थित हैं। विशेष महत्व वाला इस बूढ़ा केदार मंदिर में स्थापित शिवलिंग एक स्वयं निर्मित शिवलिंग हैं। बताया जाता है कि यह शिवलिंग अंदर से कितना बड़ा है किसी को नहीं मालूम।
बूढ़ा केदार मंदिर का पौराणिक कथा –
पांडवों पर अपने कुलवंशियों की हत्या का पाप लगा था इस पाप से मुक्ति पाने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने का सुझाव दिया। पांडवों द्वारा भगवान शिव की कई उपासना करने के बाद भी भगवान शिव पांडवों के समक्ष नहीं जाना चाहते थे क्योंकि वह पांडवों से नाराज थे, इसलिए भगवान शिव ने वृद्ध भैसे का रूप धारण कर लिया और हिमालय की घाटियों में अन्य जानवरों के बीच छुप गए लेकिन भीम भगवान शिव के इस रूप को पहचान चुका था। जैसे ही भीम ने भगवान शिव के रूप को पकड़ना चाहा तो भगवान शिव का यह रूप कई भागों में विभाजित हो गया और आखिर में भगवान शिव ने इस स्थान पर वृद्ध रूप में दर्शन दिए और यहाँ पर लिंग का स्वरूप धारण कर लिया।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार पांचों पांडव और द्रोपति जब स्वर्गारोहण के लिए निकले तो उन्होंने बालखिलये ऋषि का आशीर्वाद लिया। बालखिलये ऋषि ने पांडवों को बताया कि एक वृद्ध पांच नदियों के संगम पर ध्यान मग्न है वह वृद्ध कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव थे, जब पांडव वहाँ पहुंचे तो वह वृद्ध उन्हें दर्शन देने के बाद शिवलिंग के पीछे छुपकर अंतर्ध्यान हो गए बाद में इस शिवलिंग के चारों तरफ मंदिर का निर्माण किया गया।
बूढ़ा केदार मंदिर का नाम बूढ़ा केदार क्यों पड़ा ?
बूढ़ा केदार मंदिर के नाम को लेकर कुछ लोगों के मन में ये सवाल आता है कि अखिर इस मंदिर का नाम बुढ़ा केदार क्यों पडा ? तो आपको मालूम होगा कि बुढ़ा का मतलब वृद्ध होता है जिस रूप में भगवान शिव पांडवों को दर्शन दिए थे, वह एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप था। इसी तरह वृद्ध के रूप में पांडवों को दर्शन देने के कारण वृद्ध केदारेश्वर या केदारनाथ का नाम पड़ गया।
बूढा केदार मंदिर की संरचना |
मंदिर का प्रवेश द्वार लकड़ी और पत्थर पर की गई नकाशी का एक शानदार नमूना है। शिवलिंग पर भगवान शिव के अलावा माता पार्वती, भगवान गणेश, भगवान गणेश के वाहन मूषक, पांचों पांडव, द्रोपदी, हनुमान जी की आकृतियां बनी है। इस लिंग को उत्तरी भारत में सबसे बड़ा लिंग माना जाता है। मंदिर के बगल में ही भू- शक्ति, आकाश शक्ति और पाताल शक्ति के रूप में विशाल त्रिशूल विराजमान है। बूढ़ा केदार मंदिर के पुजारी नाथ संप्रदाय के होते है, पुजारी ब्राह्मण नहीं होते बल्कि नाथ जाति के राजपूत होते है। नाथ जाति के भी केवल वही लोग यहां पूजा करते है जिनके कान छिदे हो। बूढा केदार में हर साल मार्गशीर्ष माह में मेला लगता है।
बूढ़ा केदार तीर्थ मे आज भी लगभग 18 फुट गहरा कुआं मौजूद है, जिसके तल में संचित जल से गोमय की गंध आती है। माना जाता है जो चारधाम तीर्थयात्रा करते है, उनके लिए अंत में इस तीर्थ की यात्रा करना अनिवार्य माना जाता है अन्यथा उनकी यात्रा अधूरी मानी जाती है। यहां शिव व काली के उपासक साधना करके अपने ईष्ट की सिद्धि सरलता से प्राप्त कर लेते है। टिहरी जिले का सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध स्थल होने के बावजूद बूढा केदार धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में अभी तक अपनी विशिष्ट पहचान नहीं बना पाया है।
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