Kumod Hillyatra
वैसे तो उत्तराखंड में अनेक त्यौहार मनाये जाते है | ये त्यौहार सभी को आपस में जोड़े रखते है,साथ ही इन त्योहारों में कुछ न कुछ लोककहानिया छुपी होती है | ऐसी ही लोक कहानियों से भरा एक त्यौहार जो की कुछ समय पहले पिथौरागढ़ के कुमौड़ (कुमाऊं) में मनाया गया जिसे हिलजात्रा कहा जाता है | यह कुमौड़ गांव में प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाला कृषि उत्सव है | इस उत्स्व में एक प्रकार का कृषि मंचन किया जाता है , जिसमे कोई बैल की जोड़ी बनता है तो कोई हलिया कोई रोपाई करने वाला पुतरिया कोई मेड बांधने वाला तो कोई बकरी, गाय, बन रोपाई करने का अभिनय करता है साथ ही कोई शिकार करने वाला बन मछली पकड़ने का अभिनय करता है |
Kumod Hillyatra
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पशुओ का अभिनय करने वाले अभिनेता लोग अपने चेहरों पर लगाने वाले मुखोटे लकड़ी के बनाते है | ये नीचे शरीर में एक कच्छा पहनते है, ऊपरी शरीर में सफेद मिटटी लगाते है | हिलजात्रा के अंत में ढोल नगाड़ो की उच्च ध्वनि के साथ लखियादेव या लखिया भूत का आगमन होता है | जब लखिया देव का आगमन होता है तब रोपाई करने वाली महिलाऐ ही मैदान में रहती है बाकि सब बहार चले जाते है| लखियादेव महिलाओ का कार्य अस्त व्यस्त करने की कोशिश करता है | उसके बाद मैदान में पहले गांव के मुखिया व उसके बाद सब एक एक कर आते है व आशीर्वाद पाकर इस अभिनय की समाप्ति करते है |