कुमाउनी गायिका मेघना चन्द्रा ने गाया लोकप्रिय शिव शक्ति उत्सव ‘गमरा’ पर गीत! लोकगीत गमरा को जानने के लिए पढ़ें रिपोर्ट !

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क्या आप जानते हैं गमरा उत्सव क्या होता है,अगर जानते हैं तो आपको अपनी सभ्यता संस्कृति से ख़ास लगाव है,जो नहीं जानते उन्हें हम बता देते हैं,कुमाउनी गायिका मेघना चन्द्रा ने इस लोकप्रिय उत्सव गमरा को गीत से परिभाषित किया है। 

उत्तराखंड सच में अद्भुत है यहाँ के निवासियों के देवों से नाता होता है शायद इसीलिए इस भूमि को देवभूमि की संज्ञा दी गई है, कुमाऊं क्षेत्र और पश्चिमी नेपाल में सदियों से मनाया जाने वाला सर्वाधिक लोकप्रिय उत्सव ‘गमरा’ अत्यधिक श्रद्धा भाव से मनाया जाने वाला शिव-शक्ति उपासना का पर्व है।

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गमरा शब्द दीदी के लिए उपयुक्त में लाया जाता है,माता पार्वती उत्तराखंड की बेटी मानी जाती हैं तो वहीँ किशोरी उन्हें गमरा यानि दीदी भी कहती हैं,और महादेव को भीना यानि जीजा जी,देवों के देव से जब ऐसा नाता हो तो उत्तराखंड की महत्ता और भी बढ़ जाती है,देवों से ही नहीं यहाँ के पशु पक्षियों,प्रकृति,हल,बैल से आत्मीयता जुडी होती है ऐसा देवभूमि में ही संभव है। उत्तराखंड में जब एक लड़की किशोरावस्था में प्रवेश करती है तो उसके लिए घुंघरूयुक्त दरांती(घुंघराली दांतुली) भी यहीं पर बन सकती है।

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अब जानते हैं आखिर क्यों खास है ये लोकपर्व गमरा,माँ पार्वती ने धरती पर जन्म लिया तो हिमालय का आँचल प्रकाशमय हो गया,गंगा किनारे चमक उठे,खेत खलियान सज बैठे,जब शिव शक्ति स्वयं अवतार ले ले तो जग में प्रकाश तो फैलेगा ही।

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गमरा लोकपर्व माता पार्वती के जन्म एवं विदाई तक को दर्शाता है,बिरुड़ पंचमी को बिरुड़े (पांच प्रकार के अनाज) भिगाये जाते हैं, उसके बाद एक-एक दिन के अंतराल में खेतों से मौसमी फसलों के पौधों (पांच प्रकार के) से माँ गौरा व महेश्वर की प्रतिमा बनाई जाती है और उनको कपड़ों व आभूषणों से सजाकर टोकरी में रखकर घर लाया जाता है, जहाँ पर उनकी फलों व अनाज से नियमित पूजा की जाती है और लोकगीत गाये जाते हैं, जिनमें रामायण- महाभारत के अंशों व झोड़ा- चांचरी का गायन प्रमुख है।

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उसके बाद विधिवत टोकरी में रखकर उनकी विदाई की जाती है।विदाई के ये पल मायके से बेटी को विदा करने जैसे होते हैं जिसमें लोग नम आँखों से अगले वर्ष फिर मिलने की आस रखते हैं।

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इस लोकगीत को मेघना चन्द्रा ने गाया है,तथा श्रीमती सावित्री देवी सिरोला ने इसे पारम्परिक शैली में गाया है,गमरा लोकगीत को रोहित भंडारी ने संगीतबद्ध किया है,सुनील नाथ गोस्वामी ने इसकी रचना की है,वीडियो का निर्देशन मनोज सिंह रावत ने किया है,हरदा कुमाउनी इसके डीओपी रहे,गणेश पोखरिया,अर्जुन चंद,नवीन खंका ने इस लोकपर्व की छटा को कैमरे से फिल्माया है,इसके महत्व को और अधिक समझने के लिए हिमांशु पोखरिया एवं अन्नू बिष्ट ने अंग्रेजी सबटाइटल किया है।

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अतुल्य देवभूमि से ये लोकगीत रिलीज़ किया गया है,ऐसे गीतों का निर्माण होना चाहिए जिससे आज की पीढ़ी अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को जान सके और उत्तराखंड के गौरव को दुनिया जाने।

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