जानिए उत्तराखंड के खास मंदिर माता अनुसूया का इतिहास

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उत्तराखंड राज्य देवभूमि होने के साथ-साथ चमत्कारों का भी गृह राज्य हैं। यहाँ के हर एक स्थल, मंदिर व पहाड़ी से कोई ना कोई प्राचीन कथा जुड़ी हुई हैं। उसी में एक हैं चमोली जिले में स्थित माता अनुसूया देवी का भव्य मंदिर । माता अनुसूया की कथा त्रिदेव व दत्तात्रेय से जुड़ी हुई हैं। मान्यता हैं कि श्रद्धालु अपनी मनोकामनांए लेकर माता के मंदिर में मत्था टेकने आते हैं।

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उत्तराखंड के चमोली (Chamoli) की मंडल घाटी (Mandal Valley) के घने जंगलों के बीच माता अनसूया (Mata Anasuya) का भव्य मंदिर है, जो कि अपनी खूबसूरती के साथ निसंतान दंपतियों की मनोकामना पूरी करने के लिए देशभर में पहचान रखता है. यही नहीं, संतानदायिनी के रूप में प्रसिद्ध माता अनसूया के दरबार में सालभर निसंतान दंपति संतान कामना के लिए पहुंचते हैं. माना जाता है कि शक्ति सिरोमणि माता अनसूया के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है. वहीं, नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में लोगों की आमद खासतौर पर बढ़ जाती है l

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प्राचीन समय में यहाँ ऋषि अत्रि का आश्रम था जिनकी पत्नी का नाम अनुसूया था। माता अनुसूया अपने पतिव्रता धर्म के लिए प्रसिद्ध थी और उनकी महिमा तीनो लोको में होने लगी जिस कारण माँ पार्वती, लक्ष्मी व सरस्वती को उनसे ईर्ष्या हुई। इसके लिए उन्होंने माता अनुसूया की परीक्षा लेने के लिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश को पृथ्वीलोक भेजा। जिसके बाद साधु भेष में तीनों ने अनसूया के सामने निर्वस्त्र होकर भोजन कराने की शर्त रखी थी. दुविधा की इस घड़ी में जब माता ने अपने पति अत्रि मुनि का स्मरण किया तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखाई दिए. इसके बाद उन्‍होंने अपने कमंडल से जल निकालकर तीनों साधुओं पर छिड़का तो वह छह महीने के शिशु बन गए थे. इसके बाद माता ने शर्त के मताबिक, न सिर्फ उन्‍हें भोजन कराया बल्कि स्‍तनपान भी कराया था l वहीं, पति के वियोग में तीनों देवियां दुखी होने के बाद पृथ्वीलोक पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना की. फिर तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया. यही नहीं, माता को दो वरदान दिए. इससे उन्‍हें दत्‍तात्रेय, दुर्वासा ऋषि और चंद्रमा का जन्‍म हुआ, तो दूसरा वरदान माता को किसी भी युग में निसंतान दंपित की कोख भरने का दिया l

 

माता के मंदिर से जुडी खास मान्यता 

माता के मंदिर से जुडी खास मान्यता है जिसकी वजह यहां बारामास श्रदालुओं की भीड़ लगी रहती हैल l मदिर से जुड़ी प्राचीन कथा के कारण, यहाँ पर हर वर्ष हजारों-लाखों की संख्या में दंपत्ति व नव-विवाहित जोड़े संतान प्राप्ति की इच्छा से मत्था टेकने आते हैं। जिन लोगों को कई वर्षों से संतान नही हो रही हैं या जो स्वस्थ संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं, उनका यहाँ मुख्य रूप से आना होता हैं। मान्यता है कि जो दंपत्ति यहाँ आकर माता अनुसूया का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं उन्हें जल्द ही एक सुंदर व स्वस्थ संतान की प्राप्ति हो जाती हैं। और मनोकामनां पूरी होने के बाद एक बार फिर माता को भेट चढ़ाने के लिए आया जाता है lसाथ ही आपको बात दें कि अनुसूया मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर आगे अत्रि मुनि का आश्रम है जो कि एक गुफा में स्थित है। इसे अत्रि मुनि की गुफाभी कह देते है। इस गुफा में अत्रि मुनि की पत्थर से बनी मूर्ति स्थापित है।

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वही आपको यह भी बताए कि हर वर्ष मार्गशीर्ष माह की चतुर्दशी व पूर्णिमा के दिन दत्तात्रेय भगवान की जयंती बनाई जाती है।जिस खास अवसर पर अनुसूया देवी मंदिर में भी भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, इस मेले में आसपास के गावों के लोग भी अपने-अपने देवता को डोली में बिठाकर अनुसूया मंदिर पहुँचते हैं और माता अनुसूया की परिक्रमा करके अपनी इच्छाओं की कामना करते है l

अनुसूया देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में गोपेश्वर से 13 किलोमीटर दूर मंडल गाँव के पास स्थित हैं। मंदिर की समुंद्र तट से ऊंचाई लगभग दो हज़ार मीटर के आसपास है। इसके लिए आपको सबसे पहले उत्तराखंड के किसी भी शहर से गोपेश्वर पहुंचना होगा। उसके बाद आगे की यात्रा शुरू होगी lफिर गोपेश्वर से आसानी से मंडल गाँव के लिए बस, टैक्सी या जीप मिल जाएगी जो 30 से 45 मिनट में वहां पहुंचा देगी। यहाँ से आगे का रास्ता पैदल पार करना होता हैं क्योंकि आगे केवल पहाड़ों पर चढ़ाई हैं। मंडल गाँव से अनुसूया मंदिर की दूरी 5 से 6 किलोमीटर के आसपास हैं जिसे पूरा करने में 1 से 2 घंटों का समय लगता है।

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