किसी भी देश या प्रदेश की संस्कृति के बारे में अगर जानने के लिए सबसे बेहतर अगर कोई चीज है तो वो है उसका लोक साहित्य। लोक साहित्य समाज की आत्मा का सटीक चित्रण करता है। किसी भी देश की जातीय, राष्ट्रीय साहित्यिक, सामाजिक ऐतिहासिक, धार्मिक एवं आर्थिक मापदंड के लिए यदि कोई पैमाना हमारे पास है तो वह उस देश का लोक साहित्य ही है।लोकगीत लोक के गीत हैं। जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा लोक समाज अपनाता है। सामान्यतः लोगो में प्रचलित, लोगो द्वारा रचित एवं लोगो के लिए लिखे गए गीतों को लोकगीत कहा जा सकता है। लोकगीतों का रचनाकार अपने व्यक्तित्व को लोक समर्पित कर देता है। शास्त्रीय नियमों की विशेष परवाह न करके सामान्य लोकव्यवहार के उपयोग में लाने के लिए मानव अपने आनन्द की तरंग में जो छन्दोबद्ध वाणी सहज उद्भूत करता हॅ, वही लोकगीत है।लोकगीत को सीधे लोगों के गीत भी कहते है। जो घर, नगर, गॉव के लोगों के अपने द्वारा रचित गीत होते है। इसके लिए शास्त्रीय संगीत की तरह प्रयास या अभ्यास की जरुरत नहीं है। त्योंहारों और विषेष अवसरों पर यह गीत गाये जाते है। सभी बोलि और उप-बोलियों के लोकगीत एवं संगीत अपना विषेष महत्व रखते है।
लोकगीत –
- छौपटी -छोपाटी छोपाटी वह प्रेम गीत है, जिन्हें प्रश्न एवं उत्तर के रूप में पुरुष एवं महिलाओं द्वारा गायन के द्वारा) संवाद किया जाता है। ये लोक संगीत टिहरी गढ़वाल के रावेन जोनपुर क्षेत्र में लोकप्रिय है।
- झुमैलो गीत – चीन फूला एवं झुमेला झुमेता को सामान्यतः महिलाओं द्वारा किया जाता है। परन्तु कभी वह मिश्रित रूप में भी निष्पादित किया जाता है। चौनफूल नृत्य को स्त्री एवं पुरुषों द्वारा रात्रि में समाज के सभी वर्गों द्वारा समूहों में किया जाता है। इसमें पंक्ति बनाकर बाजू से बाजू पकड़कर सामूहिक नृत्य के साथ गायन किया जाता है। चौनफूला लोक गीतों का सृजन विभिन्न अवसरों पर प्रकृति के गुणगान के लिए किया जाता है। चीनफूला झुमेला एवं दारयोता लोकगीतों का नामकरण समान नाम वाले लोकनृत्यों के नाम पर हुआ है। चौनता एवं मेला मोसमी रूप है जिन्हें वसन्त पंचमी से सक्रान्ती या बेसाखी के मध्य निष्पादित किया जाता है।
- खुदेड़ गीत – पुराने समय में लड़कियों की शादी छोटी उम्र में कर देते थे। ससुराल में उनको घर के सारे काम करने पड़ते थे अतः वो मायके की याद में खुदेड़ गीत गाते थे।
- बारहमासा गीत – विरह प्रधान लोकसंगीत है। वह पद्य या गीत जिसमें बारह महीनों की प्राकृतिक विशेषताओं का वर्णन किसी विरही या विरहनी के मुँह से कराया गया हो।
-
चांचरी –यह कुमाऊँ और गढ़वाल के मध्य क्षेत्र का एक नृत्य गीत है जिसको महिलाऐ और पुरुष दोनों गाते है। इसको उत्तरायणी मेले के समय पर गाया जाता है।
-
जागर वे लोक गाथाएँ जिनका सम्बन्ध पौराणिक व्यक्तियों और देवताओं से होता है ये किसी धार्मिक अनुष्ठान तंत्र मंत्र पूजा आदि के समय देवताओं या पौराणिक व्यक्तियों के आवाहन या सामान में गए जाते हैं। इसके गायक को जगरिया था नाचने वाले को डंगरिया कहा जाता है। पांडव, कौरव, नरसिंह भैरवनाथ, गोलू गंगनाथ, गड़देव, बूढ़ा केदार आदि उत्तराखंड के प्रमुख जागर गीत हैं।
- बसन्ती- बसन्त ऋतु के आगमन के अवसर पर जब गढ़वाल पर्वतों की घाटियों में नवीन पुष्प खिलते है बसन्ती लोकनृत्यों को गाया जाता है। इन सोको काग असे या समूहों में किया जाता है।
- मंगल– मंगल गीतों को विवाह समारोहों के अवसर पर गाया जाता है ये गीत अवसर पर गाया जाता है। ये
- गीत मूलत – पूजा गीत (Hymns) है। विवाह समारोह के अवसर पर शास्त्रों के अनुसार पुरोहित के साथ 2 इन गीतों को संस्कृत के श्लोकों में गाया जाता है। 5: पूजा लोक गीत:- ये लोकगीत परिवारिक देवताओं की पूजा से सम्बद्ध है। इस क्षेत्र में तंत्र-मंत्र से सम्बद्ध
- कुरा– कुरा लोक गीतों को चरवाहों द्वारा गाया जाता है। इन लोगों में वृद्ध व्यक्ति भेड़ो एवं बकरियों को चराने के अपने अनुभव का ज्ञान अपने बच्चों को देते हैं।
उत्तराखंड हमेशा से ही लोक संगीत का धनी रहा है। फिर चाहे उसकी बोली गढ़वाली हो, कुमाउँनी हो या फिर जौनसारी। प्राचीन समय से ही लोकगीतों का मेलो, त्यौहारो, शादी विवाहों जैसे कार्यकर्मों में अपनी अलग भूमिका रही है। जैसे की शादी के समय मंगल गीत का गाना या फिर खेतो में काम करते हुए विशेषकर धान की रुपाई करते हुए ।
उत्तराखंड संगीत एवं फिल्म जगत की सभी ख़बरों को विस्तार से देखने के लिए हिलीवुड न्यूज़ को यूट्यूब पर सब्सक्राइब करें।