जानिए उत्तराखंड के प्रसिद्ध मेले, जहां करोड़ों में रहती है श्रद्धालुओं की भीड़

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गढ़वाल कुमाऊँ की संस्कृति यहाँ के मेलों में समाहित है। रंगीले गढ़वाल और कुमाऊँ के मेलों में ही यहाँ का सांस्कृतिक स्वरुप निखरता है। धर्म, संस्कृति और कला के व्यापक सामंजस्य के कारण इस अंचल में मनाये जाने वाले उत्सवों का स्वरुप बेहद कलात्मक होता है। छोटे-बड़े सभी पर्वों, आयोजनों और मेलों पर शिल्प की किसी न किसी विद्या का दर्शन अवश्य होता है। कुछ मेले देवताओं के सम्मान में आयोजित होते हैं तो कुछ व्यापारिक दृष्टि से अपना महत्व रखते हुए भी धार्मिक पक्ष को पुष्ट अवश्य करते है। पूरे अंचल में स्थान-स्थान पर कई मेले आयोजित होते हैं जिनमें यहाँ का लोक जीवन, लोक नृत्य, गीत एवं परम्पराओं की भागीदारी सुनिश्चित होती है। सुदूर अंचलों में तो बरसों का बिछोह लिये लोग मिलन का अवसर मेलों में ही तलाशते हैं। आज की पोस्ट में हम आपको उत्तराखंड के प्रसिद्ध मेलों के बारे में बताएंगे –

उत्तराखण्ड के गढ़वाल अंचल में श्रीनगर में बैकुंठ चतुर्दशी का मेला प्रतिवर्ष लगा करता है। विभिन्न पर्वों की भांति वैकुण्ठ चतुर्दशी वर्षभर में पडने वाला हिन्दू समाज का महत्वपूर्ण पर्व है। सामान्यतः दीपावली तिथि से 14 वे दिन बाद आने वाले साल का यह पर्व धार्मिक महत्व का है।ऐसा माना जाता है कि बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और शिव एक ही रूप में होते हैं. मान्यता है कि जो भी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत करता है. उनके लिए स्वर्ग के द्वार खोल दिए जाते हैं. इस दिन जो भी भक्त विष्णु की पूजा करता है उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है l

जौनपुर क्षेत्र में बिस्सू मेले का आयोजन प्रति वर्ष अप्रैल माह में होता है। इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इस मेले का उद्देश्य अपनी लोक संस्कृति का संरक्षण करना है

 

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