उत्तराखंड की पारंपरिक फसल कौंणी: एक स्वास्थ्यवर्धक और पौष्टिक विकल्प

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उत्तराखंड की पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीदार खेतों की मेड़ों पर लहराती कौंणी की फसल बला की खूबसूरत लगती है। यह फसल न केवल सुंदर दिखती है, बल्कि यह एक स्वास्थ्यवर्धक और पौष्टिक विकल्प भी है। कौंणी वनस्पति जगत के परिवार पोएसी posceae का पौधा है, जिसका वैज्ञानिक नाम सेतिरिया इटालिका (setaria italica) है। यह बाजरा की ही एक प्रजाति है और विश्व की प्राचीनतम फसलों में से एक है। आइए जानते हैं कौंणी की कहानी और इसके स्वास्थ्य लाभों के बारे में।

 

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कौंणी की उत्पत्ति और इतिहास

उत्तराखंड की पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीदार खेतों की मेड़ों पर लहराती कौंणी की फसल बला की खूबसूरत लगती है। यह फसल न केवल सुंदर दिखती है, बल्कि यह एक स्वास्थ्यवर्धक और पौष्टिक विकल्प भी है। कौंणी विश्व की प्राचीनतम फसलों में से एक है। इसका उपयोग नवपाषाण काल से ही किया जा रहा है। चीन में इसके उपयोग के अवशेष मिले हैं।

कौंणी के पोषक तत्व

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की सन् 1970 की रिपोर्ट और अन्य वैज्ञानिक अध्ययनों ने कौंणी की पौष्टिकता को उजागर किया है। इन अध्ययनों के अनुसार, कौंणी में क्रूड फाइबर, वसा, फाइवर, कार्बोहाईड्रेड और अमीनो अम्ल जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। यही कारण है कि आज विश्वभर में कई खाद्य उद्योगों में कौंणी की मांग बढ़ रही है।

 

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कौंणी के स्वास्थ्य लाभ

कौंणी खून में ग्लूकोज की मात्रा 70 प्रतिशत तक कम कर देता है। इससे तमाम बीमारियों में होने वाली थकान से मुक्ति मिलती है। यह एक वरदान जैसा है सुगर के मरीजों के लिए।

 

कौंणी की उपयोगिता

कौंणी का उपयोग खीर, भात और अन्य व्यंजनों में किया जा सकता है। इसका खाजा कटाई के दौरान ही भूनकर तैयार किया जाता है।

कौंणी की महत्ता

संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन ने सन 2023 को मिलेट इयर मनाने की घोषणा की थी। यह एक सकारात्मक कदम था जो कौंणी की उपयोगिता, औषधीय गुणों और पौष्टिकता को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया था।

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