उत्तराखण्ड अद्भुत प्रदेश है यहाँ की लोककथाएं बहुत ही प्रचलित हैं। काफल जो कि एक पहाड़ी फल है जिसके पीछे दिल को छू लेने वाली कहानी है और उसी लोककथा को गीत के माध्यम से पम्मी नवल एवं अमीशा ठाकुर ने प्रस्तुत किया है।काफल की एक कथा जो गढ़वाल में प्रचलित है जो आपने पढ़ी और सुनी जरूर होगी लेकिन जब आप वीडियो देखेंगे तो आपका दिल भी सहम सा जाएगा कुछ देर के लिए।
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चलिए आपको आपको एक बार हम भी ये लोककथा फिर से याद कराते हैं जिसकी इतनी चर्चा होती है।
एक गांव में एक औरत और उसकी 6-7 साल की बेटी रहते थे। किसी प्रकार गरीबी में वो दोनों अपना गुजर बसर करते थे। एक बार माँ सुबह सवेरे घास के लिए गयी और घास के साथ काफल भी तोड़ के लायी। बेटी ने काफल देखे तो बड़ी खुश हुई। माँ ने कहा कि मैं खेत में काम करने जा रही हूँ, दिन में जब लौटूंगी तब काफल खाएंगे। और माँ ने काफ टोकरी में रख दिए। बेटी दिन भर काफल खाने का इंतज़ार करती रही। बार बार टोकरी के ऊपर रखे कपड़े को उठा कर देखती और काफल के खट्टे-मीठे रसीले स्वाद की कल्पना करती! लेकिन उस आज्ञाकारी बच्ची ने एक भी काफल उठा कर नहीं चखा कि जब माँ आएगी तब खाएंगे।आखिरकार माँ आई !बच्ची दौड़ के माँ के पास गयी”माँ माँ अब काफल खाएं?””थोडा साँस तो लेने दे छोरी”माँ बोली।फिर माँ ने काफल की टोकरी निकाली, उसका कपड़ा उठा कर देखा, अरे ! ये क्या?काफल कम कैसे हुए ?”तूने खाये क्या””नहीं माँ, मैंने तो चखे भी नहीं !”जेठ की तपती दुपहरी में दिमाग गरम पहले ही हो रखा था,भूख और तड़के उठ कर लगातार काम करने की थकान !माँ को बच्ची के झूठ बोलने से गुस्सा आ गया।माँ ने ज़ोर से एक झाँपड़ बच्ची के सर पे दे मारा।
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बच्ची उस अप्रत्याशित वार से तड़प के नीचे गिर गयी और,”मैंने नहीं चखे माँ” कहते हुए उसके प्राण पखेरू उड़ गए !अब माँ का क्षणिक आवेग उतरा तो उसे होश आया !
वह बच्ची को गोद में ले प्रलाप करने लगी ! ये क्या हो गया ! दुखियारी का एक मात्र सहारा थावो भी अपने ही हाथ से खत्म कर दिया !! वो भी तुच्छ काफल की खातिर ! आखिर लायी किस के लिए थी !उसी बेटी के लिये ही तो ! तो क्या हुआ था जो उसने थोड़े खा लिए थे ! माँ ने उठा कर काफल की टोकरी बाहर फेंक दी। रात भर वह रोती बिलखती रही।दरअसल जेठ की गर्म हवा से काफल कुम्हला कर थोड़े कम हो गए थे। रात भर बाहर ठंडी व् नाम हवा में पड़े रहने से वे सुबहफिर से खिल गए और टोकरी पूरी हो गयी !!!अब माँ की समझ में आया, और रोती पीटती वह भी मर गयी ! कहते हैं कि वे दोनों मर के पक्षी बन गए। और जब काफल पकते हैं तो एक पक्षी बड़े करुण भाव से गाता है ” काफल पाको !मैं नी चाखो !” (काफल पके हैं, पर मैंने नहीं चखे हैं) और तभी दूसरा पक्षी चीत्कार कर उठता है “पुर पुतई पूरपूर !” (पूरे हैं बेटी पूरे हैं) !!!
पंचकेदार म्यूजिक स्टूडियो के बैनर तले रिलीज़ हुआ काफल पाको लोककथा का मार्मिक वीडियो रिलीज़ हुआ है इस लोककथा को गीत का रूप के.एल.टम्टा ने दिया है और जितनी मार्मिक ये कथा है उतनी ही दिल को छू जाने वाली आवाज दी है इसे पम्मी नवल और अमीशा ठाकुर ने दोनों ही गायिकाओं ने करूण रस के इस गीत को अमर बना दिया।संगीत आशीष नवल ने दिया है वीडियो में अभिनय की भूमिका में ईजा और चैली की भूमिका में संगीता और काजल रड़वाल ने दर्शकों को रोने पर मजबूर कर दिया और इस लोककथा को फिर से जीवंत कर दिया। छायांकन की भूमिका सौरभ ने निभाई। पम्मी नवल इससे पहले भी कई धार्मिक गीतों जैसी पंडों की पंचकेदार जात्रा/स्वर्गारोहिणी यात्रा गंगा स्नान जैसे गीत भी गा चुकी हैं उनका हुरेणी को दिन जागर काफी सुपरहिट हुआ था। और इस वीडियो को भी अब तक 7 लाख से अधिक लोग देख चुके हैं।
अब आप देखिए काफल पाको लोककथा का वीडियो :
HILLYWOOD NEWS
RAKESH DHIRWAN