जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण ने गाया “रथ हंत्या जागर “प्रसंग! जागर सुनकर दर्शक हुए भावुक !!

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PREETAM BHARTWAN RATH

जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण ने उत्तराखण्ड संगीत जगत एवं संगीत प्रेमियों को सौगात स्वरुप अनेक गीत,जागर एवं पंवाड़े दिए हैं। प्रीतम भरतवाण ने रथ हंत्या जागर प्रसंग गाया है जिसे सुनकर दर्शक इस सच्ची घटना से अवगत होंगे।

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एक सच्ची घटना पर आधारित बहुत ही मार्मिक गीत जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण ने रथ हंत्या जागर प्रसंग गाया है जिसे सुनकर दर्शक अंतर्मन तक इस करुणा पूर्ण कहानी को सुनकर भावुक हो उठे।
19वी 20 वी शताब्दी के मध्य उत्तराखण्ड में पट्टी झुवा के अलेरू गांव के एक आम इंसान थे धन सिंह निरंकारी,जो अपना जीवन यापन करने के लिए पशुपालन करते थे जिससे किसी तरह अन्य लोगों की तरह ही उनका भी जीवन यापन चल रहा था,लेकिन करनी को कुछ और ही मंजूर था।

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लेकिन एक समय ऐसा आया जब उनके क्षेत्र में हैजा जैसी लाइलाज बीमारी फैली जिसका उस दौर में कोई इलाज संभव नहीं था,और गाँव के कई लोगों की हैजा की चपेट में आने से मौत हो चुकी थी और धन सिंह अधिकारी भी हैजाग्रस्त हो गए और उनकी भी मृत्यु हो गई। उस समय हैजा से मृत्य होने पर इंसान को जलाया नहीं जाता था जबकि हिन्दू धर्म में मृत शरीर को जलाया जाता है।

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समय बीतता गया और मृत्यु के बाद धन सिंह अधिकारी की पवित्र आत्मा भटकती रही और जिससे गांव के लोग परेशान से होने लगे,उनकी आत्मा अन्य लोगों को परेशान करने लगी जैसे तैसे गांववासियों ने उनकी आत्मा को वश में करने की कोशिश की। इसके बाद धन सिंह कई गांववासियों के शरीर में आत्मा स्वरुप में प्रवेश करते रहे और इंसानी शरीर में जाग्रत होकर उनकी समस्याएं दूर करने लगे ,और उस समय ये चमत्कार जिसने भी देखा सभी हैरान हो गए और सोचने लगे जरूर ये कुछ खास आत्मा है ये आम नहीं है ,भगवान ने उनको हमारी मदद के लिए भेजा है।
फिर लोगों के मन की शंका को दूर करने के लिए उन्होंने बताया जब उनकी मृत्यु हुई थी उनका सर और शरीर सही स्थिति में था जिस कारण देव रूप प्राप्त हुआ और भगवान् के रथ में विराजमान हुए,तबसे सब उन्हें रथ पर सवार होने वाले रथी देवता का नाम मिला।

रथी देवता पूरे उत्तराखण्ड में प्रसिद्ध हैं और जो भी उनका नाम कहीं भी लेता है वो उनकी समस्याएं जरूर दूर करते हैं। सात गते बैशाख (अप्रैल ) माह में उनके मंदिर में मेले का आयोजन होता है।
धन सिंह रथी देवता के इसी प्रसंग को जाग्रत किया है एक बार पुनः जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण ने। “रथ हॅंत्या जागर” – प्रसंग(रथ हॅंत्या जागर में रथ का अर्थ आत्मा से होता है)

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