उत्तराखण्ड की लोक कला एवं संस्कृति के सच्चे संवाहक लोकगायक प्रीतम भरतवाण का योगदान अतुलनीय है,लगन मेहनत,और कला की निपुणता,ढोल सागर की विद्या,जागर,पंवाडों,के गायन में निपुण,देश के सर्वोच्च सम्मान पदमश्री से नवाजे गए। कलम,कंठ और अनेक वाद्य यंत्र बजाने में महारत प्राप्त प्रीतम भरतवाण हिमालय पुत्र ने इस विलुप्त होती कला को देश-दुनिया में पहुँचाने में अपनी भूमिका निभाई।
जागर सम्राट से पदमश्री तक का सफर!
लोककला के संरक्षण में प्रीतम भरतवाण का योगदान:
प्रीतम भरतवाण को पदमश्री जागर सम्राट के रूप में जाना जाता है इन्हें पदमश्री से सम्मानित किया गया है ये जागरों के प्रसिद्ध गायक है उत्तराखण्ड जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण को ना सिर्फ उत्तराखण्ड विदेशों में भी जागर सम्राट के नाम से जाने जाते है अेोर प्रीतम भरतवाण एक गरीब परिवार से थे प्रीतम भरतवाण को उनके परिवार वाले प्रीति नाम से बुलाया जाता है प्रीतम भरतवाण 6 साल से थाली बजाकर गाने की कोशिश करते थे वह न केवल जागर ! बल्कि लोकगीत, पंवाड़ा अेोर घुयाल गाते है। अपितु ढोल,दमाऊॅ,हुडका अेोर डोर थकुली,उत्तराखण्डी वाद्य यन्त्र बजाने में भी महारत हासिल है।
प्रीतम भरतवाण का बचपन:
प्रीतम भरतवाण देहरादून के रायपुर ब्लााॅक में सिला गाॅव में पैदा हुए प्रीतम भरतवाण खुद अपने बारे में बताते में है कि यह एक अेोजी परिवार में पैदा होने से उन्हें गीत संगीत विरासत में मिली है क्योंकि उनके घर में ढोल से लेकर धेोंसी अेोर थाली सब रहती थी जिससे उनके पापा अेोर दादाजी घर में गाया करते थे। प्रीतम जी सुयंक्त परिवार में पले बढे अेोर प्रीतम भरतवाण अपने पापा अेोर चाचा के साथ खास पर्व,खास दिन पर गाॅवों में जागर गाने जाया करते थे। पापा अेोर चाचा के साथ उनकी ट्रैनिंग हुई।
प्रीतम भरतवाण की संगीतमय शिक्षा :
प्रीतम को रामी बेोराणी के नाटक में स्कूल में अपनी आवाज देने का मौका मिला प्रीतम भरतवाण ने फिर मसूरी में नृत्य नाटक में डांस किया उसके बाद प्रीतम भरतवाण प्रधानाचार्य की दृष्टि में आ गए, प्रीतम ने कुछ बच्चों के साथ जाकर प्रिंसिपल के ऑफिस में सिंगिग आडीशन दिया,जिसमें प्रीतम पास हो गये। फिर स्कूल के हर प्रोग्राम में गाने का मेोका मिलता रहा फिर 12 साल की उम्र में जागर यानी पंवाडा गाया जिसे गाने की प्रेरणा उनके जीजाजी अेोर चाचा जी से मिली। आज ये दिन भी है अमेरिका की सिनसिनाटा यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफ़ेसर के रूप में अपनी कला का प्रसार किया है ,उनकी वीडियोज में स्टीफन फियोल फ्योंली दास भी उनके साथ सुर मिलाते एवं ढोल के साथ दमाऊ की थाप देते दिखाई देते हैं।
ऐसे हुई जागरों की शुरूआत:
प्रीतम जी बताते है कि मैं चाचाजी अेोर घर के बडों के साथ शादी बारातों में जाया करते थे जहाॅ पर मेरे चाचाजी अेोर पिताजी रात भर जागर गाये करते थे एक दिन रात को 3 बजे के बाद चाचाजी ने बोला कि मै थक गया हॅू अेोर अब आगे का जागर प्रीतम सुनाएगे, बस उस दिन से मेरी पाब्लिक परफाँर्मेस की शुरूआत हुई।
प्रीतम भरतवाण को पहली सफलता 1995 में पहली बार तेोंसा बेो से मिली। सन 1995 में इनकी पहली कैसेट रामा कैसेट ने रिकार्ड की थी सबसे ज्यादा पाॅपुलैरिटी उन्हें सुरूली मैरू जिया लगीगो से मिली। पैछि माया ,सुबेर ,रौंस, तुम्हारी खुद,बाॅद अमरावती जैसी सुपरहिट एलबम देने वाले प्रीतम अब तक 50 से अधिक एलबम व 350 से अधिक गीत गा चुके है अब पूरे उत्तराखण्ड में उनके गानों से बिना संगीत अधूरा रहता है। 1988 में प्रीतम ने आंल इडिया रेडियो के जरिए लोगों तक अपना टैलेेंट दिखाया प्रीतम भरतवाण को उनकी आवाज के लिए कई अवार्ड भी मिल चुके हैं। अेोर विदेशों मे भी अपनी प्रतिभा को दिखाया है।अमेरिका,इंग्लैंड,कनाडा,जर्मनी,मस्कट,ओमान,दुबई समेत कई अन्य स्थान में मंचों पर लाइव प्रस्तुति दे चुके है पूरे उत्तराखण्ड को प्रीतम भरतवाण पर गर्व है।
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सम्मान:
प्रीतम भरतवाण को उत्तराखण्ड विभूषण ,भागीरथी पु़त्र,जागर शिरोमणि, सुर सम्राट, हिमालय रत्न जैसे कई सम्मान अेोर उपाधियों से विभूषित किया जा चुका है जागर को दुनिया भर में पहचान दिलाने वाले प्रीतम भरतवाण को लोक कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में योगदान देने के लिए भारत सरकार द्वारा पदमश्री सम्मान से नवाजा गया है। जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण ने सम्मान को अपने श्रोताओं को समर्पित किया है।
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HILLYWOOD NEWS
MANISHA RAWAT
देखिये प्रीतम भरतवाण कैसे अपने दर्शकों को लाइव शो में मंत्रमुग्ध कर कर देते हैं :
राष्ट्र-पति रामनाथ कोविंद द्वारा जागर सम्राट पदमश्री सम्मान से विभूषित होते हुए :