पंचमुखी डोली में होता है, पंचाक्षरों का वास । पंचमुखी उत्सव डोली में निवास है शिव के पांव स्वरूप। पढ़ें रिपोर्ट !!

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गुप्तकाशी। विश्व प्रसिद्ध बाबा केदार की पंचमुखी चल विग्रह उत्सव डोली विभिन्न पड़ावों से होते हुये प्रथम प्रवास के लिये फाटा पहुंच गयी है। विभिन्न कस्बों तथा गांवों में भक्तों ने बाबा की उत्सव डोली का फूल, अक्षत तथा बाबा के गगनभेदी जयकारों से स्वागत किया। केदारनाथ धाम की यात्रा में पंचमुखी उत्सव डोली में शिव स्वयंम् विराजित है। शिव के कई अवतरण हैं, लेकिन पंचमुखी शिव की अपनी महत्ता है। मानव जीवन के सभी कार्यों में पांच कार्य पंचमुखी शिव के भी समाहित हैं। पंचमुखी डोली शिव के पांच दिशाओं में निवास कर रहे वर्णों, मूर्तियों तथा पंचाक्षरो को इंगित करता है। इसके साथ ही पंच मुखी डोली ईशान, तत्पुरूश, अघोर, वामदेव तथा सद्योजात शिव के पांच साक्षात स्वरूप हैं।

चाँदी की प्रभा ले जाते भक्त :

चाँदी की प्रभा

शिव के सिर की दिशा स्वेत वर्ण, पूर्व में सुवर्ण, दक्षिण में नीलवर्ण पश्चिम में स्फटिक शुभ उज्ज्वल वर्ण तथा उत्तर में जपापुष्प या प्रवाल के स्वरूप को दर्शाता है। अर्थात संसार में सभी रंगों तथा वर्णों की अपनी खास महत्ता के बारे में पंचमुखी शिव मूर्ति दिखाती है। सभी वर्णों को एकरूप दिखाना पंचमुखी डोली का कार्य है। इसके साथ ही पांच दिशा क्रमशः शिव की क्रीड़ा, तपस्या, लोकसंहार, अहंकार तथा ज्ञान को दर्शाता है। मानव जीवन में इन पांच क्रियाओं का अपना ही महत्व है। शिव की सृश्टि भूतल, स्थिति जल, संहार में अग्नि , वायु में तिरोभाव तथा आकाष में अनुग्रह भाव दिखाता है। शिव की पंचमुखी डोली दिखाती है, कि शिव अग्नि, जल, आकाश , भूतल और वायु में विराजित हैं। मृत्यु के बाद मानव शरीर इन्हीं पांच चीजों में विलय हो जाती है।

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इन चार दिषाओं के आठ हाथ हैं, जिनके आठ हाथों में त्रिशूल, टंक, तलवार, वज्र, अग्नि, घंटा, अंकुश, तथा अभयमुद्रा शस्त्र हैं। मानव जीवन में पंचाक्षर का अपना अस्तित्व व महत्व है। ऊं नमः शिवाय के आधार पर पंचमुखी उत्सव डोली के उत्तर में अकार, पश्चिम में उकार, दक्षिण में मकार, पूर्व में बिन्दु तथा मध्य में नाद का वर्चस्व है। त्रिपदा गायत्री का प्रकाट्य भी पंचमुखी मूर्तियों से ही हुआ है। मनोरथों की सिद्धि के लिये पंचाक्षर का अपना महत्व है।

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पंचमुखी उत्सव डोली के औंकारेष्वर मंदिर से केदारनाथ धाम में प्रस्थान से पूर्व मुख्य रावल स्वर्ण मुकुट भी पंचमुखी डोली को अर्पित करते हैं, छः माह के लिये स्वर्ण मुकुट रावल तथा छः माह के लिये पंचमुखी डोली के पास सुरक्षित रहता है। डोली के साथ ही चांदी की प्रभा भी केदारनाथ धाम तक पहुंचती है, जिसे वैदिक मंत्राच्चार के साथ ही केदारनाथ के त्रिकोणीय लिंग के ऊपर स्थापित किया जाता है। जिसकी मुख्य पुजारी तथा वेदपाठी परंपरागत रूप से पूजा अर्चना करते हैं। मान्यता है, जो भक्त बाबा के पंचमुखी डोली के साक्षात दर्शन करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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गुप्तकाशी। बाबा केदारनाथ की चल विग्रह उत्सव डोली के गुप्तकाशी पहुंचते ही केदारसभा तथा स्थानीय लोगों द्वारा जमकर स्वागत किया गया। विश्वनाथ मंदिर में पहुंचते ही उत्सव डोली ने तीन परिक्रमायें पूर्ण की, पुनः नाला, मस्ता, नारायणकोटी, खुमेरा होते हुये फाटा में रात्रि प्रवास के लिये डोली पहुंच गयी। कल आज बाबा की डोली रात्रि प्रवास के लिये गौरीकुंड गौरी माई मंदिर में पहुंचेगी, 8 मई को गौरी माई मंदिर से डोली रात्रि प्रवास के लिये केदारनाथ धाम पहुंचेगी। आगामी 9 मई को ब्रम्ह मुहूर्त में बाबा केदारनाथ के कपाट तीर्थयात्रियों तथा स्थानीय लोगों के लिये खोल दिये जायेंगे। इस अवसर पर केदारसभा के अध्यक्ष विनोद शुक्ला, महामंत्री कुबेरनाथ पोस्ती, श्रीनिवास पोस्ती, संतोश, ममता , प्रेमसिंह शिव सिंह समेत हजारों भक्त तथा तीर्थयात्री मौजूद रहे।

गुप्तकाशी में पंचमुखी डोली का स्वागत करते तीर्थयात्री तथा स्थानीय लोग :

Hillywood News
Vipin Semwal

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