संघर्षों से तपकर सफलता के शिखर पर पहुंची लोकगायिका हेमा नेगी करासी !! जानिए कैसा रहा उनका सफर !!

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HEMA NEGI KARASI
hema negi karasi

Hema Negi Karasi

लोकगायिका हेमा नेगी करासी उपलब्धिया एंव संक्षित परिचय :

“Hema Negi Karasi is an Indian folk singer who has sung Garhwali Kumaoni Jagars. She belongs to Rudraprayag district of Uttarakhand and currently lives in Dehradun”


हेमा नेगी करासी गढवाल की प्रसिद्ध लोकगायिका हैं यूं तो वे लोकगीतों अेोर गाथाओं को स्वर देती आ रही हैं लेकिन खास पहचान उनकी गढवाली जागरों अर्थात गाथाओं के गायन में हैं। वे संघर्षो से उपजी एक आवाज है। अनेक झंझावतों अेोर बाधाओं सामना करते हुए हेमा नेगी ने यह मुकाम हासिल किया है। हेमा एक दशक से अधिक समय से भी लोकगीत अेोर गढवाली जागर गा आ रही हैं जितनी प्रभावोत्पादकता उनके जागरों में हैं ,उतने ही आकर्षण उनके लोकगीत भी करते हैं। स्टेज ,सीडी अेोर एलबमों में धार्मिक गाथाओं को गाने को वाली वे उत्तराखण्ड की पहली माहिला हैं ,जिनके जागरों में मेोलिकता के कारण उन्हें बहुत पसंद किया जाता हैं वे दूरदंर्शन आकाशवाणी से अेोर स्टेज प्रोग्रामों में आवाज दे चुकी हैं।

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Hema Negi Karasi

परिवार में गायन की पृष्ठभूमि न होने के बावजूद हेमा में गायन की खास प्रतिभा है ।पहली बार उन्होंने तब गाया ,जब वे तीसरी कक्षा में थी इसके बाद यह यात्रा अनवरत चल पडी। छठी कक्षा में पढाई के दौरान अच्छे गायन के लिए उन्हें पुरस्कार मिला तो हेमा अेोर उनकी मां की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।इस पुरस्कार ने हेमा अेोर उनकी मां को बडी उर्जा दी अेोर हेमा की मां ने उन्हें गायन के लिए कुछ सीमा तक प्रोत्साहित करना आरभं कर दिया। फिर ग्यारहवीं की छात्रा के रूप में कांडई ,रूद्रप्रयाग में एक कार्यकम्र में हेमा ने धरती हमारा गढवालै की कथगा रौंतेलि स्वाणी चा गाया तो वहाॅ मेोजूद कोई भी श्रोता प्रभावित हुए बिना नही रह पाया।

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वहाॅ मेोजूद आकाशवाणी गोपेश्वर के लोग भी इससे खासे प्रभावित हुए। उन्होंने कुछ दिन बाद हेमा के घर एक फार्म भेज उन्हें स्टूडियो में गाीत गाने के लिए बुलाया, लेकिन यहाॅ पर हेमा का रास्ता पहाड की कई सामाजिक विवशताओं ने अवरूद्ध कर दिया।मां ने फाॅर्म न भरने को कहा हेमा के मन में एक तरफ अपने हुनर को विकसित करने की त्रीव तमन्ना थी तो दूसरी ओर मां के गहन चितंन -मंथन करने के बाद मां के आदेश को सर्वोपरि मानते हुए फार्म नहीं भरा। बाद में आकाशवाणी से कुछ लोग स्वंय ही लेने उनके गांव गए, लेकिन हेमा की माँ ने नहीं भेजा। एक बार उन्होंने स्कूल में ही एक कार्यक्रम में मांगल गीत दे देवा मांजी देदेवा बुबा जी गौ कन्यादान गाया तो हर किसी के आंसू निकल गए थे।

Hema Negi Karasi

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कभी कमजोर आर्थिक स्थिति अेोर सामाजिक कारणों से हेमा की प्रतिभा या़त्रा में रोडे आते रहे,लेकिन उन्हे जहां मेोका मिलता, पूरे मनोयोग से गा लेती ,परिणाम स्वरूप उन्हें खूब वाहवाही मिलती। उन्होेंने गढवाल के प्रसिद्ध गायक नरेन्द्र सिंह नेगी के साथ सबसे पहले 2007 में गायन किया तो उनकी पहचान कांडई क्षेत्र से बाहर होने लगी।नेगी के साथ पहली बार हेमा ने कार्तिक स्वाामी का भजन गाया तो उनके गेोरव,आत्माविश्वास अेोर प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। नेगी जी को हेमा की आवाज अेोर गायन शैली ने मुग्ध किया कि इसके बाद से वे हेमा को अपने कार्यक्रमों में गायन के लिए यदा कदा बुलाते रहते है उन्होंने वीरेन्द्र नेगी गिरीश शर्मा के साथ पहला गायन ‘क्य ब्वन तब’ किया। गढवाली फिल्मों में भी गायकी का योगदान देते हुए हेमा ने आस अेोलाद अेोर लाडौ कु ब्यो के लिए गीत गाए, मगर हेमा की पहचान वर्तमान में ठेठ पांरपरिक गढवाली शैली में जागर गायन की बन चुकी है नंदा से लेकर नागराजा अेोर पंडों लेकर अन्य कई देवी देवताओं के जागर को हेमा ने स्वर दिए है। वे गढवाल की पहली गायिका महिला हैं ,जिन्होंने नंदा के जागरों की सीडी निकाली है।

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जागरों का कुछ संग्रह उन्होंने अपनी मां से किया अेोर कुछ जागर अपनी मेोसी से सुने। इसके अतिरिक्त हेमा अपने ससुराल अेोर मायके के क्षेत्र मे अनुष्ठानों आदि के समय में जाकर जागरों का संग्रह करती
हैं । अेोर फिर उनका गायन करती हैं हेमा के गायकी के करियर में कई बाधाएं आई पर उन्हें दूर करने के लिए अपनों ने ही मदद की। विद्यार्थी जीवन में मां ने सहयोग दिया, इसके बाद बडी बहन अनीता कंडारी ने अेोर शादी के बाद पति अनिल करासी ने भरपूर योगदान दिया। अब गृहस्थी का कुशल संचालन करने के बाद भी न केवल गायन की बरकारी के लिए ,बल्कि इस क्षेत्र में अेोर कुछ करने के लिए जी तोड परिश्रम कर रही हेमा किसी तरह घर में समय मिलने पर सरस्वती साधना में लग जाती हैं।जागर की प्राचीन शैली में गायन का उन्हें कभी भी प्रशिक्षण नहीं मिला अेोर न ही यह विधा उन्होंने कहीं से सीखा है।हेमा के अनुसार जागरों के कथानक बोल अेोर कुछ धुनें उन्हें अपने क्षेत्र के जागर अनुष्ठानों के साथ ही अपनी मां मेोसी आदि बुजुर्गो से मिलते है कुछ की धुनें वे स्वंय बना लेती हैं हेमा की विशेषता है। कि वे जागर या गीत रचनाओं को लिखने में किसी की सहायता नहीं लेती।वे इन रचनाओं को स्ंवय ही गाती हैं उनके गायन की एक विशेषता यह भी है कि वे किसी रचनाकार की लिखी रचनाएं नहीं गाती हैं अेोर न ही किसी गायक गायक के गाए गीत गीती है। हेमा इस समय संस्कृति विभाग में ए अेोर दूरदर्शन तथा आकाशवाणी में बी ग्रेड की कलाकार है।केदारनाथ आपदा के बाद उन्होंने प्रभावितों के लिए आयोजित कार्यक्रमों में नि शुल्क प्रस्तुतियां दी। हेमा नेगी ने एक बार ऐसे ही कार्यक्रम में नगर निगम हाॅल में जब आपदा से हुए विनाश पर एक बच्चे की दशा पर करूण रस से पूर्ण गीत -क्या खाई तेरू हमुन केदार बाबा,दरसन कनुक आंया छां तेरा द्धार,कुलदेवी समझी तू थाती क्षेत्रपाल गाया तो वहां दर्शकों की आखे नम हो गई थी यहीं नही,हेमा ढोल वादन में सिद्धहस्त हैं।कई अवसरों पर वे ढोल भी बजा लेती हैं।

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संतोषजनक नहीं सरकार के प्रयास:
गढवाली संस्कृति को अगाध श्रद्धा रखने वाली हेमा यहाॅ की गायन संस्कृति के लिए सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयासों से संतुष्ट नहीं हैं। उनके अनुसार उत्तराखण्ड में प्रस्तुति देने आने वाले कलाकारों को तो लाखों रूपये खुले हाथ से दिए जाते है,जबकि यहाॅ के बडें से बडें कलाकार को दो लाख से अधिक नहीं दिए जाते है जब हमारी सरकार ही यह भेदभाव करे अेोरों से क्या उम्मीद की जा सकती है।
जीवन परिचय -हेमा का जन्म तुखिडा,दशज्यूला कांडई रूद्रप्रयाग में 23 अप्रैल 1986 को हुआ था।हेमा जब बहुत ही कम उम्र की थी तो उनके पिता जी का निधन हो गया था। उनके पिता जी प्रतिष्ठित सामाजिक व्यक्ति थे। पिताजी के निधन के बाद हेमा समेत छह भाई बहनों को पालने पढाने का उत्तरदायित्व मां बच्ची देवी पर आन पडा। बडी हिम्मत कर मां ने हाड तोड मेहनत कर बच्चों को किसी तरह पढाया हेमा के मन में पढ लिखकर खेल,गायकी थी लेकिन कमजोर अर्थिक स्थिति के कारण वे मन मसोसकर रह जाती। किसी तरह इंटर करने के बाद वे घर से निकली तो कोटद्धार में एक अखबार में चार सेो रूपये से नेोकरी आंरभ कर मां के खर्चे में हाथ बंटना शुरू किया। इसके बाद एक वकील के यहां नेोकरी की फिर जलनिगम के एक प्रोजेक्ट में काम अर्थिकी जुटाने में का सहयोग दिया। पढाई भी जारी रखते हुए डीएवी पीजी काॅलेज देहरादून से राजनीति शास्त्र से एमए किया, लेकिन गायन जारी रखा, उनका विवाह मलाउं,चोपता रूद्रप्रयाग में अनिल करासी से हुआ।हेमा नेगी करासी के पति अनिल करासी के सहयोग और समर्थन के चलते ही आज हेमा नेगी करासी इतना बड़ा मुकाम हासिल कर पाई हैं ,वह इसका श्रेय अनिल करासी को ही देती हैं।

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हेमा की गायन उपलब्धियां:
अभी तक हेमा नेगी करासी करीब 50 रचनाओं को स्वर दे चुकी है। इनमें जागर गीत ,भजन आदि शामिल हैं। उनकी रचनाओं के 12 एलबमों बाजार में आ चुके है। इसमें गिर गेंदुआ ,माँ मठियाणा माई,मिठु-मिठु बोलि,मैणा बेोजी,कथा कार्तिक स्वामी आदि शामिल हैं।लोकगायन को जारी रखते हुए हेमा ने अब जागर गायन पर फोकस किया है। उनका संकल्प हैं। कि वे अब इस विधा के गायन को प्राथमिकता देगीं।हेमा के संगीत जगत के क्षेत्र में सबसे अधिक योगदान मेरी बामणी गीत का रहा जो काफी सुपरहिट रहा जिसमें उनके साथ गीतकार एवं गायक की भूमिका में नवीन सेमवाल रहे दोनों की जुगलबंदी में ये गीत पूरे उत्तराखण्ड ही नहीं बल्कि दुनिया में भी गूंजा। और उसके बाद मखमली घाघरी ,राजुला, और अपने गीतों का एक नॉनस्टॉप भी अपने यूट्यूब चैनल हेमा नेगी करासी ऑफिसियल पर रिलीज़ कर चुकी हैं जो कि काफी हिट रहे।

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Hillywood News

Rakesh Dhirwan

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