Ghee Sakranti
उत्तराखण्ड देवभूमि जहां देवताओं का वास होता है साथ ही जो कृषि उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। वैसे तो उत्तराखण्ड अपनी संस्कृति और वार त्यौहारों के लिए देश विदेशों में जाना जाता है और हो भी क्यों न यहां पर आये दिन कोई न कोई त्यौहार बड़ी ही धूमधाम से मनाये जाते हैं। सारे त्यौहार यहां की एकता, आस्था और खुशी के प्रति एक होते हैं साथ ही हर त्यौहार के साथ कुछ न कुछ लोक कहानियां भी जुड़ी होती हैं। ऐसे ही खुशी और एकता से जुड़ा एक त्यौहार जिसे ‘घी सक्रांन्ति’ (घ्यू सक्रांन्त) जिसे औलगिया उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
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यह त्यौहार उत्तराखण्ड में भादो (अगस्त) महीने के पहले दिन मनाया जाता है। राज्य के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से यह भी एक है, जिसे पुरातन समय से ही बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। सौर मासीय पंचाग के अनुसार सूर्य जब एक राशि में संचरण करते हुए जब दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो उसे सक्रांन्ति कहते हैं। संक्रान्ति वाले दिन को शुभ मानकर कई त्यौहार मनाये जाते हैं इन त्यौहारों में से एक है घी संक्रान्ति। भादो के महीने राज्य में खेती लहलहाने लगती है, और दूध देने वाले पशु भी स्वस्थ होते हैं। यहां तक कि पेड़ भी फलों से लदे होते हैं। यह मूलरूप से एक वो त्यौहार है जो स्थानीय लोगों व खेती के व्यवसाय में लिप्त परिवारों की कृतज्ञा को दर्शता है। इस त्यौहार के उत्सव का कारण फसल कटाई के मौसम को चिन्हित करना और समृद्धि के लिए आभार प्रकट करना है।
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इस दिन कुछ सामान्य उपहारों का आदान प्रदान किया जाता है, जिसमें कुल्हाड़ी, घी, वनस्पति, बिनई (ओरल वीणा), धातु कैलिपर, दांतोकोचा (मैटापिक टूथपिक) और जलाउ लकड़ियां शामिल होती हैं। इस त्यौहार की एक महत्वपूर्ण रश्म भी होती है, माथे पर घी डालना और उढ़द दाल के साथ घी और रोटियां (भूरी दाल की रोटी) को खाना विशेष माना जाता है।
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इस त्यौहार के समय पूर्व में बोई गयी फसलों पर बालियां लहलहाना शुरू कर देती हैं, साथ ही स्थानीय फलों यथा अखरोट जैसे फल भी तैयार होने शुरू हो जाते हैं। पूर्वजों के अनुसार यह मान्यता भी है कि अखरोट फल इस त्यौहार के बाद ही खाया जाता है। इस दिन गढ़वाली, कुमांउनी सभ्यता के लोग घी को खाना जरूरी मानते हैं, क्योंकि इसके पीछे एक डर भी छुपा होता है वो है घनेल (घोंगा) पहाड़ों में यह बात मानी जाती है कि जो घी संक्रान्ति के दिन घी का सेवन नहीं करता वो अगले जनम में घोंगा बनता है।
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पहले बच्चों को यह ओहलाना देकर घी खलाया जाता था। इस दिन का मुख्य व्यंजन बेडू की रोटी (जो उड़द की दाल को भिगो कर, पीस कर बनायी जाती है) घी में डूबोकर खाई जाती है। साथ ही अरबी के बिना खिले पत्ते जिन्हें गाबा भी कहते हैं उसकी सब्जी बनायी जाती है तथा बड़े ही हर्ष उल्लास से यह त्यौहार मनाया जाता है।
‘‘घी संक्रान्ति’’ (घ्यू संक्रान्ति) त्यौहार की समस्त उत्तराखण्डी वासियों को शुभकामनाऐं
सीमा रावत की रिपोर्ट