गढ़वाली फिल्म ‘खोली का गणेश’ की धूम, देहरादून में पहले दिन हाउसफुल

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देहरादून। उत्तराखंड की लोकभाषाओं में सिनेमा का विस्तार 2025 में एक नए युग की ओर अग्रसर हो रहा है। इसी कड़ी में अविनाश ध्यानी निर्देशित गढ़वाली फिल्म खोली का गणेश ने राजधानी देहरादून के सिनेमाघरों में दस्तक दी और पहले ही दिन दर्शकों की भीड़ उमड़ पड़ी। सामाजिक मुद्दों पर आधारित इस भावनात्मक प्रेम कहानी ने न सिर्फ लोगों के दिलों को छुआ, बल्कि स्थानीय सिनेमा के प्रति एक नई जागरूकता भी पैदा की।

जातिवाद की बेड़ियों में बंधा प्रेम और समाज को आईना दिखाती कहानी

फिल्म एक सच्ची प्रेम कहानी पर आधारित है, जो आज भी समाज में जड़ें जमाए बैठी जातिगत मानसिकता पर करारा प्रहार करती है। दो प्रेमियों की मार्मिक गाथा, जो सामाजिक कुरीतियों की वजह से अपने प्रेम और जीवन दोनों की आहुति देते हैं — इस पीड़ा को निर्देशक ने संवेदनशीलता और गहराई से प्रस्तुत किया है।

फिल्म ‘खोली का गणेश’ में सिर्फ प्यार नहीं है — इसमें वो आहें हैं जो कभी शब्दों में नहीं ढलतीं, वो आँसू हैं जो समाज की कठोरता के आगे बह जाते हैं। एक ओर है प्रेम, जो बिना किसी भेदभाव के पनपता है, और दूसरी ओर है समाज, जो अब भी जात-पात की जंजीरों से बंधा हुआ है।

नशे की गिरफ्त में डूबता एक समाज

फिल्म का एक और मार्मिक पहलू है नशे की लत। पहाड़ों में फैलता यह धीमा ज़हर सिर्फ युवाओं का नहीं, परिवारों का भविष्य भी निगल रहा है। ‘खोली का गणेश’ यह भी दिखाती है कि किस तरह सामाजिक विघटन और मानसिक तनाव के बीच नशा एक “भागने का रास्ता” बन गया है — लेकिन इस रास्ते का अंत सिर्फ अंधकार में होता है। साथ ही इस फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह पूर्वजों के झगड़े आज की पीढ़ी पर बोझ बनकर टूटते हैं — जहां प्यार, भरोसा और इंसानियत को मारकर सिर्फ नफरत बचाई जाती है।

सशक्त अभिनय और प्रभावशाली निर्देशन

मुख्य भूमिकाओं में शुभम सेमवाल और सुरुचि सकलानी ने अपने संजीदा अभिनय से फिल्म की भावनात्मक परतों को जीवंत कर दिया। इनके अलावा विनय जोशी, दीपक रावत, रश्मि नौटियाल, राजेश नौगाईं, गोकुल पंवार, श्वेता थपलियाल, सुशील रणकोटी और अरविंद पंवार जैसे कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं में जान डाल दी।

निर्देशक अविनाश ध्यानी, जो खुद फिल्म के निर्माता भी हैं, ने बताया कि यह फिल्म सिर्फ एक प्रेम कथा नहीं, बल्कि समाज के सामने एक सवाल है — क्या हम वाकई आधुनिक हो चुके हैं?

संगीत और छायांकन ने बढ़ाई प्रभावशीलता

फिल्म का संगीत अमित वी कपूर ने तैयार किया है, जो कथा की संवेदनशीलता को और गहराई देता है। वहीं रमेश सामंत की सिनेमैटोग्राफी ने पहाड़ों की खूबसूरती और फिल्म के हर भावनात्मक दृश्य को दृश्यात्मक समृद्धि दी है। दर्शकों ने खास तौर पर उन दृश्यों की तारीफ की, जिनमें पहाड़ की सादगी और जीवन की जटिलता एक साथ उभर कर सामने आती है।

देहरादून में मिली ज़बरदस्त प्रतिक्रिया

शुक्रवार को फिल्म दोपहर 2:20 बजे मॉल ऑफ देहरादून स्थित पीवीआर में और शाम 5:40 बजे सेंट्रियो मॉल के पीवीआर में प्रदर्शित हुई। दोनों शो में सीटें कम पड़ गईं, दर्शकों की भारी भीड़ से सिनेमाघरों में उत्सव सा माहौल था। कई दर्शकों ने बताया कि फिल्म देखते हुए वे अपने गांव-घर और पहाड़ों की यादों में खो गए, वहीं भावनात्मक दृश्यों ने आंखें नम कर दीं।

स्थानीय सिनेमा के लिए सुनहरा दौर

‘खोली का गणेश’ जैसी फिल्मों की सफलता इस ओर संकेत करती है कि उत्तराखंडी भाषाओं में बनी फिल्मों के लिए दर्शक न सिर्फ तैयार हैं, बल्कि इनकी मांग भी बढ़ रही है। यह फिल्म स्थानीय सिनेमा को नई दिशा देने वाली साबित हो सकती है।