ऋषिकेश। गढ़वाली फिल्म उद्योग में हाल के वर्षों में जबरदस्त तेजी देखी जा रही है। बड़ी संख्या में फिल्में बन रही हैं और कलाकारों को इस क्षेत्र में बेहतर भविष्य की आस है। कुछ बेहतरीन फिल्मों को दर्शकों की सराहना भी मिली है, जिससे उद्योग से जुड़े लोग उत्साहित हैं और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
गढ़वाली फिल्म उद्योग का सफर वर्ष 1983 से शुरू हुआ था, जिसमें अब तक 70 से अधिक फिल्मों का निर्माण हो चुका है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र को अभी तक वह मान्यता नहीं मिली जो मिलनी चाहिए थी। लेकिन हाल के वर्षों में लगातार बन रही फिल्में और दर्शकों की प्रतिक्रिया सकारात्मक संकेत दे रही है।
इस उद्योग में कुछ बेहतरीन फिल्में भी बनी हैं जो न केवल मनोरंजन तक सीमित रही बल्कि युवाओं को उनकी परंपराओं, संस्कृति और मूल्यों से जोड़ने में भी सफल रही हैं। यह फिल्में गढ़वाली संस्कृति को विश्वभर में प्रस्तुत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
1983 में बनी थी पहली गढ़वाली फिल्म : पहली गढ़वाली फिल्म जग्वाल थी। जो साल 1983 में बनी थी। फिल्म का निर्देशन पारासर गौड़ ने किया था। गढ़वाली भाषा के “जग्वाल” शब्द का अर्थ लंबा इंतजार होता है। गढ़वाली सिनेमा की दुनिया में एक समय ऐसा था जब फिल्मों के लिए लोगों में बेसब्री का इंतजार होता था। यहां तक कि पांच रुपये का टिकट हॉल के बाहर 100 रुपये तक में मिल रहा था। गढ़वाली फिल्म उद्योग ने कई बेहतरीन फिल्में दीं, जिनमें घरजवें, सुबेरो घाम, कौथीग, चक्रचाल, हत्या, प्यारो रुमाल, मेजर निराला, पितृकूड़ा आदि शामिल हैं। इन फिल्मों ने दर्शकों का दिल जीता और उन्हें खूब सराहा गया.
उत्तराखंड के पहाड़ी शहरों में सिनेमा हॉल की कमी
उत्तराखंड के पहाड़ी शहरों में सिनेमा हॉल की कमी एक बड़ा मुद्दा है। पहले जहां तीन-तीन सिनेमा हॉल होते थे, वहां अब एक भी नहीं है। इससे स्थानीय लोगों को मनोरंजन की कमी होती है और गढ़वाली फिल्मों को पहुंचाने में भी मुश्किल आती है। श्रीनगर, पौड़ी, कोटद्वार, गोपेश्वर, टिहरी इन सभी छोटे शहरों में एक-एक सिनेमाघर था, लेकिन आज एक भी नहीं है। वहीं उत्तरकाशी शहर में तीन-तीन सिनेमा घर थे। प्रसिद्ध गीतकार व निर्देशक गणेश वीरान कहते हैं कि गढ़वाल के शहरों में सिनेमाघर न होना भी गढ़वाली फिल्म उद्योग के विकास में एक बड़ी बाधा है।
इंटरमीडिएट पास करने के बाद वर्ष 20216 में पहली बार गढ़वाली फिल्म में काम किया था। मेरी फिल्म बौड़िगी गंगा थी। अब तक नौ फिल्मों में काम कर चुकी हूँ – शिवानी भंडारी
कर चुकी है। कई एल्बम में भी काम किया है। बेहतर मेहनताना मिलता है। मुझे इसमें अच्छे भविष्य की उम्मीद हैं।
कुछ बेहतरीन फिल्मों का निर्माण हुआ है। हमें तकनीकी स्तर में और अधिक सुधार करना होगा। बॉलीवुड की नकल
से बचना होगा। हमारे गढ़वाल में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। इस क्षेत्र में युवाओं का बेहतर भविष्य बन सकता है।- गणेश वीरान, प्रसिद्ध गीतकार व फिल्म निर्देशक