गीतों में फिर गूँजा गैरसैंण ‘धावड़ी लगीगेन राजधानी गैरसैंण ‘गीत चर्चाओं में !

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उत्तराखंड अब 20 वर्ष का हो चुका है लेकिन अभी भी इसका विकास रुका हुआ है न इसका कद बढ़ा न पद,अब आम जनता तो इसकी जिम्मेदार है नहीं, जिन्होंने उत्तराखंड की स्थापना के लिए अपनी कुर्बानी तक दे दी वो कैसे इस पीड़ा को सहन कर रहे हैं ये तो उनका दिल ही जानता है लेकिन प्रदेश में कई सरकार आई और गई गैरसैंण पर सिर्फ राजनीति ही हुई लेकिन किसी ने इसका महत्व नहीं जाना। 

उत्तराखंड के जनगायक रज्जु बिष्ट और राकेश काला ने ‘धावड़ी लगीगेन राजधानी गैरसैंण’ बनाने की एक बार पुनः मांग गीत के माध्यम से कर दी है हालाँकि इस वर्ष प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर गैरसैंण पहुंचकर तिरंगा लहराकर अपनी मंशा साफ़ कर दी है।

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गैरसैंण पहाड़ की ग्रीष्मकालीन राजधानी हो इसकी घोषणा सूबे की त्रिवेंद्र सरकार पहले ही कर चुकी है लेकिन मात्र कहने से कुछ नहीं होगा पहाड़ी राजधानी से ऐसा सौंतेला व्यवहार करना जनता को कतई गंवारा नहीं है इसलिए जनता सरकार तक अपनी मांग रखती रहती है और जब भी लगता है सरकार सो रही है तो उसे जगाने के लिए विद्रोह का बिगुल बजाया जाता है।

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इस बार भी रज्जु बिष्ट द्वारा रचित ‘धावड़ी लगीगेन राजधानी गैरसैंण’ गीत फिर से जनआन्दोलनों की आवाज बन रहा है और सरकार को चेताने का काम भी कर रहा है और उन शहीदों की आत्मा का दर्द भी झलका रहा है जिन्होंने स्थाई राजधानी गैरसैंण बनने के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए,इसके लिए आंदोलनकारियों का बलिदान व्यर्थ जाता नजर आ रहा है ,लेकिन उत्तराखंड वासियों के मन मे गैरसैंण को ही स्थाई राजधानी बनाने का विचार है और ये हक़ लेकर रहेंगे ऐसा आंदोलनों में नारे लगते रहे हैं।

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13  जनपदों का छोटा सा प्रदेश कभी भी दो राजधानियों का खर्चा नहीं उठा सकता और ये मॉडल कभी भी सफल नहीं हो सकता इसलिए जन-जन की यही पुकार है उत्तराखंड की एक ही राजधानी बने प्रदेश को दो हिस्सों में न बांटा जाए यही गैरसैंण के पक्षधरों का मानना है।

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उत्तराखंड राज्य आंदोलन की ही तर्ज पर एक बार फिर गैरसैंण का मुद्दा खुलकर सामने आ रहा है और उत्तराखंड के  पर्यटन की रीढ़ असल में पहाड़ ही हैं,इसलिए रोजगार और पलायन जैसे गंभीर मुद्दा भी स्थाई राजधानी मिलने से समाप्त हो जाएगा।