उत्तराखंड की प्रसिद्ध ‘बाल मिठाई’ जिसका नाम सुनकर मुंह में आ जाता है पानी

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उत्तराखंड में खानपान के बाद अगर मिठाई की बात होती है तो उसमें पहले नंबर पर आती है ‘बाल मिठाई’ यहां तक कि प्रवासी पर्वतीय लोग जब भी पहाड़ आते हैं तो बाल मिठाई ले जाना नहीं भूलते, यही नहीं जिसने भी एक बार बाल मिठाई खा ली तो वह उसका दीवाना बन जाता है कुमाऊ के अल्मोड़ा में इजाद हुई बाल मिठाई पूरे देश भर में पहाड़ी ‘बाल मिठाई’ के नाम से फेमस है।
दरअसल, बाल मिठाई के इतिहास को लेकर कहा जाता है कि 19वीं सदी में 1840 के आसपास अल्मोड़ा में एक हलवाई लाला ‘जोगा शाह’ का जन्म हुआ और उन्होंने अल्मोड़ा की बाजार में हलवाई का काम करते-करते इस बाल मिठाई का इजाद किया। कहा जाता है कि सन 1865 से 1872 के बीच बाल मिठाई का इजात हुआ है और इसे ईजाद करने वाले लाला ‘जोगा शाह’ लाला बाजार अल्मोड़ा में हलवाई का काम करते थे। तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत में इजाद हुई इस मिठाई को अंग्रेजों ने भी काफी पसंद कियाब। कहा जाता है कि अंग्रेज अफसर क्रिसमस के मौके पर अल्मोड़ा की बाल मिठाई को भेंट स्वरूप अपने साथी अफसरों को भेजते थे।‌ 19वीं शताब्दी में अल्मोड़ा की इस ‘बाल मिठाई’ को ब्रिटिश अफसरों ने अपने देश ब्रिटेन तक भिजवाई है।
बाल मिठाई भूरे रंग की आयताकार चॉकलेट की तरह होती है।  जिसमें चारों ओर सफेद चीनी के छोटी-छोटी गोलियां लिपटी रहती हैं। यहां तक कहा जाता है कि पहाड़ी खोए से निर्मित बाल मिठाई सूपाच्य और सरल सम्मिश्रण की होती है। इसे पौष्टिक मिठाई का नाम भी दिया जाता है।इसमें प्रयुक्त पोस्ता सूपाच्य कार्बोहाइड्रेट ऊर्जा स्रोत और शक्ति प्रदायक होते हैं जिसमें लेक्टोज भी रहता है जो विटामिन सी से युक्त है।धीरे-धीरे बाल मिठाई का कारोबार बढ़ा कई लोगों का यह भी कहना है कि खीमसिंह, मोहन सिंह रौतेला द्वारा जब बाल मिठाई के कारोबार बढ़ाया गया तो इनके द्वारा इस बाल मिठाई को पूरे उत्तराखंड और देश में पहचान मिली। एक वक्त ऐसा आया कि अल्मोड़ा की बाल मिठाई के साथ सिंगोड़ी और चॉकलेट काफी मशहूर होने लगीलगी। आज देश-विदेश से आने वाले पर्यटक और प्रवासी उत्तराखण्डी अल्मोड़ा से इन मिठाई को खरीदकर ले जाना नहीं भूलते।

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