उत्तराखण्ड की पृष्ठभूमि पर केंद्रित धारावाहिक “गंगा की गोद में”दूरदर्शन की फ़ाइलों में गुमनाम।

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उत्तराखण्ड की पृष्ठभूमि पर केंद्रित धारावाहिक

उत्तराखण्ड की पृष्ठभूमि पर केंद्रित धारावाहिक “गंगा की गोद में”दूरदर्शन की फ़ाइलों में गुमनाम।

बात 2015 की है, मूल रूप से टिहरी की रहने वाली वंदिनी रावत ने उत्तराखण्ड की पृष्ठभूमि पर केंद्रित पर एक धारावाहिक दूरदर्शन के लिए बनाया, नाम था “गंगा की गोद में”, जी बिल्कुल वही गंगा जिसके लिये हजारों-करोड़ों के बजट से नमामि गंगे जैसी परियोजना हमारे देश को गौरवान्वित कर रही है।

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धारावाहिक की कहानी उत्तराखंड के परिवेश पर आधारित है। यह एक व्यक्ति और उसकी पाँच बेटियों की कहानी है जो उत्तराखंड के पर्यावरण और गंगा को बचाने के लिए संघर्ष करती हैं। पूरा धारावाहिक पलायन सहित उत्तराखंड की कई छोटी-छोटी समस्याओं के साथ जीवन के पहाड़ को ढोती यहां की नारी शक्ति के संघर्ष की कहानी है। टीम की बात करें तो इस धारावाहिक में फ़िल्म जगत के जाने माने बड़े कलाकार जैसे टीनू आनंद, अंजन श्रीवास्तव, कुनाल पंत जैसे कई कलाकार थे। इनके अलावा स्थानीय कलाकारों में भावना बड़्थवाल, निवेदिता बौंठियाल, खुशी ध्यानी, प्रशांत गगोड़िया, मदन डुकलान, गांववासी सहित कई स्थानीय कलाकार शामिल थे, धारावाहिक में संगीत स्थानीय संगीतकार अमित सागर ने किया था। लगभग 100 लोगों की टीम ने पौड़ी और देवप्रयाग में इस धारावाहिक की शूटिंग की ।

केदार आपदा के बाद यह पहली टीम थी जिसने लोगों के मन मे उत्तराखंड को लेकर डर को खत्म करने के उद्देश्य से उत्तराखण्ड की पृष्ठभूमि पर धारावाहिक बनाने का जोखिम लिया । जिससे लोग उत्तराखंड को एक अलग दृष्टिकोण से देख सके साथ ही और यंहा के चारधाम, लोक कथाओं, लोक परंपराओं को एक नए रूप में दुनिया के सामने रखा जाए । पौड़ी, कण्डोलिया, देवप्रयाग में शूटिंग के दौरान इस धारावाहिक ने अखबारों में खूब सुर्खियां बटोरीं… इस धारावाहिक के बाद से लगातार फ़िल्म इंडस्ट्री की कई फिल्मों ने यंहा शूटिंग करना शरू किया, लेकिन यही धारावाहिक दूरदर्शन की फ़ाइलों के बीच गुमनामी की भीड़ में कहीं खो गया ।

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उत्तराखंड के कलाकारों सहित वर्ष 2015 से ये धारावाहिक दूरदर्शन पर धक्के खा रहा है । धारावाहिक के एक दृश्य में एक लड़की सर पर पानी की घघरी लेकर घर जा रही है, दूरदर्शन की टीम ने धारावाहिक को ये कह कर ख़ारिज कर दिया कि “….आज की तारीख में सर पर कौन पानी लेकर जाता है ? हम इस धारावाहिक को प्राइम टाइम नही दे सकते हैं । आप इसे दोपहर के समय मे डालें । ”

उसके बाद वर्ष 2016 में उस निर्माता ने दोपहर के समय के लिए उस सीरियल को दूरदर्शन में वापस फ़िर से जमा किया । 2016 से आज तक वो निर्माता लगातार धक्के खा रही है लेकिन दूरदर्शन की तरफ से आज तक कोई सकारात्मक जवाब नही आया । इस सिलसिले में उत्तराखंड के लगभग हर नेता, विधायक, समाजसेवी से बात की गई लेकिन आज तक किसी की ओर से कोई प्रयास नही किया गया। नतीजा सब ढक्कन…. गजब की बात यह भी कि 2015 में जिन अखबारों और समाचार चैनलों ने इस धारावाहिक को टीआरपी का जरिया बनाया था उन्होने कभी दुबारा लौटकर इसकी सुध तक लेना सही नहीं समझी। सरकार के उदासीन रवये के कारण आज तक उस सीरियल का क्या हुआ ये किसी को नही पता।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा मुंबई में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के दौरान 200 फ़िल्मों वाले बयान और टीवी क्वीन एकता कपूर से मिलकर उन्हें उत्तराखंड आकर धारावाहिक बनाने हेतु आमंत्रित करने पर इस धारावाहिक की आज अनायास ही याद आ गई। बेशक कुछ तो देखा होगा उत्तराखंड की इन हसीन वादियों में जो आज से लगभग 35 साल पहले शो मैन राजकपूर साहब संसाधनों और सुविधाओं के अभाव में भी हर्षिल घाटी की सुंदरता को “राम तेरी गंगा मैली” फ़िल्म के जरिये पूरी दुनिया के सामने पेश करने में कामयाब रहे। सत्तर-अस्सी के दशक के शोमैन राजकपूर साहब की “राम तेरी गंगा मैली ” से 2019 के हमारे ख्यातिलब्ध शोमैन के “मैन वर्सेज वाइल्ड” तक उत्तराखण्ड को कई लोगों ने अपने कैमरे, अपने नजरिये से देश दुनिया तक पहुंचाने का प्रयास किया।

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सरकार की उपलब्धियों की मानें तो फ़िल्म निर्माण हेतु सिंगल विंडो सिस्टम, शासनिक-प्रशासनिक स्तर पर सहयोग जैसे भारी भरकम शब्दों से सरकार अपनी पीठ थपथपाती रहती है।लेकिन बड़े बड़े बैनरों और निर्माताओं को हाथ जोड़कर आमंत्रित करने वाली सरकार क्या कभी उत्तराखंड के छोटे बैनरों, छोटे निर्माताओं और स्थानीय कलाकारों के साथ पूरी तरह से न्याय कर पाई यह सवाल हमेशा जिंदा रहेगा ।

अशोक नेगी की रिपोर्ट

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