देश भर में डॉक्टरों की नाराजगी और कहीं-कहीं चिकित्सा सेवा का बाधित होना न केवल दुखद, बल्कि चिंताजनक भी है। पश्चिम बंगाल के एनआरएस मेडिकल कॉलेज में दो डॉक्टरों के साथ जिस तरह से एक मरीज के परिजनों ने मारपीट की थी, सरकार को तत्काल सक्रिय हो जाना चाहिए था। अफसोस, दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करने और डॉक्टरों को समझाने की बजाय पश्चिम बंगाल की सरकार ने उन्हें धमकाने का रास्ता अख्तियार कर लिया।
पाकिस्तानी एक्ट्रेस मावरा होकेन ऋषि कपूर से मिलने पहुंची न्यूयोर्क
राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साफ कह दिया कि चार घंटे में ड्यूटी पर लौट आओ, वरना कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इससे बात और बिगड़ गई। जिस मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों के साथ हिंसा हुई थी, वहां के प्रिंसिपल समेत अनेक वरिष्ठ डॉक्टरों ने इस्तीफे सौंप दिए हैं। डॉक्टरों की निराशा और मामले की गंभीरता को एक आम आदमी भी समझ सकता है, लेकिन इसे पश्चिम बंगाल की सरकार समझने में चूक गई। नतीजा, केरल से दिल्ली और छत्तीसगढ़ से महाराष्ट्र तक डॉक्टर विरोध प्रदर्शन करते दिख रहे हैं। स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत असर पड़ा है। खबर है कि अकेले पश्चिम बंगाल में चिकित्सा के अभाव में 20 के करीब मरीज जान गंवा चुके हैं।
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हड़ताल का कथित राजनीतिक पहलू तो और भी अफसोसजनक व शर्मनाक है। लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत से आहत ममता बनर्जी इस हड़ताल के लिए भाजपा और माकपा को न जाने किस आधार पर जिम्मेदार ठहरा रही हैं? विपक्षी पार्टी से हिंसक परिजन जुड़े थे या फिर हिंसा के शिकार डॉक्टर? क्या यह कहना उचित है कि हड़ताली डॉक्टर बाहरी हैं? क्या यह कहना सही है कि सबने भाजपा को वोट दिए हैं, तो अब भुगतो? डॉक्टरों से हिंसा और उनकी हड़ताल का सिलसिला पुराना है, लेकिन इसे राजनीतिक चश्मे से देखना थोड़ी नई, और निंदनीय बात है। कोलकाता हाईकोर्ट ने हड़ताल में हस्तक्षेप से इनकार करते हुए राज्य सरकार को विवाद सुलझाने के लिए कहा है, तो कोई आश्चर्य नहीं। जब डॉक्टरों को समझाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री समय निकाल सकते हैं, तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को भी समय निकालना चाहिए और हड़ताल को जल्द से जल्द खत्म करके अपनी योग्यता का पुन: परिचय देना चाहिए।