क्या महिला नागा साधू भी रहती है निर्वस्त्र ?

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उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ है, जो 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा। इस महाकुंभ का सबसे बड़ा आकर्षण नागा साधू हैं, जिनमें पुरुष और महिलाएं दोनों ही शामिल हैं। पुरुष नागा साधुओं की निर्वस्त्रता के बारे में तो हम सभी जानते हैं, लेकिन महिला नागा साधुओं के बारे में एक सवाल हमेशा उठता है – क्या वे निर्वस्त्र रह सकती हैं? इस सवाल का जवाब आज भी एक रहस्य बना हुआ है। महिला नागा साधुओं के जीवन और परंपराओं के बारे में जानने के लिए, आइए इस लेख के माध्यम से उनके रहस्यमय जीवन को उजागर करें।

 

 

नागा साधुओं की दुनिया में एक अनोखा नियम है, जो पुरुष और महिला साधुओं के लिए अलग-अलग है। जबकि पुरुष नागा साधु निर्वस्त्र रहते हैं, महिला नागा साधुओं के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है। महिला नागा साधु दिगंबर नहीं रहतीं, बल्कि वे केसरिया रंग के वस्त्र पहनती हैं, जो उनकी धार्मिक आस्था का प्रतीक है। यह वस्त्र सिला हुआ नहीं होता, बल्कि एक लंबा और ढीला वस्त्र होता है, जिसे वे अपने शरीर पर इस तरह से धारण करती हैं कि उनका पूरा शरीर ढक जाए।यह केसरिया रंग उनकी आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक है, और वे इसे अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानती हैं।

 

 

नागा साधु की दिनचर्या

एक नागा साधु की दिनचर्या आध्यात्मिक साधना की एक अनोखी यात्रा है। वे सुबह के प्रहर में उठकर शिवजी के मंत्रों का जाप करती हैं, जिससे उनका दिन आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है। दोपहर में भोजन के बाद, वे फिर से शिवजी के मंत्रों का जाप करती हैं, जिससे उनकी आत्मा को शांति और सुकून मिलता है। शाम को दत्तात्रेय भगवान की आराधना करती हैं, जिससे उनके जीवन में आध्यात्मिक ज्ञान और समझ बढ़ती है।

 

 

नागा साधु का भोजन

महिला नागा साधु का भोजन पूरी तरह से प्राकृतिक और स्वस्थ होता है, जिसमें कंदमूल, फल, जड़ी-बूटी और विभिन्न प्रकार की पत्तियां शामिल होती हैं। वे बिना पका हुआ भोजन करती हैं, जिससे उनका शरीर और आत्मा दोनों स्वस्थ और मजबूत रहते हैं।

नागा साधु बनना

महिलाओं के लिए नागा साधु बनने का मार्ग एक कठिन और चुनौतीपूर्ण यात्रा है। इसमें 10 से 15 साल तक कठोर ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ता है, जो उनकी आत्म-नियंत्रण और धैर्य की परीक्षा लेता है। इस प्रक्रिया में, महिलाओं को अपने गुरु के समक्ष अपनी योग्यता और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रमाण देना होता है।महिला नागा साधुओं को जीवित रहते हुए अपना पिंडदान और मुंडन भी अनिवार्य है।