दीवान सिंह पंवार ने गाया बद्री विशाल के रक्षक घंडियाल देव का जागर!

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घंडियाल देवता अभिमन्यु का रूप हैं और श्री बद्री नारायण के क्षेत्रपाल हैं ,भगवान् घंडियाल देवता की एक प्रतिमा बद्रीनाथ में भी सुशोभित है।श्री घंटाकर्ण घंडियाल देव उत्तराखंड के कई स्थानों पर विराजमान हैं और बुरी शक्तियों से देवभूमि को बचाते हैं। 

अभिमन्यु सुभद्रा एवं अर्जुन पुत्र थे जो अत्यंत वीर एवं बिलक्षण बुद्धि के थे और माता सुभद्रा के गर्भ में ही अपने पिता से चक्रव्यूह भेदने की कला सीख गए थे ऐसे वीर का कौरवों ने छल से महाभारत युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र में वध कर दिया अभिमन्यु की वीरता आज भी अमर है और जब तक मानव जाती रहेगी तब तक ऐसे वीरों का नाम याद किया जाता रहेगा।

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एक बार जब इंद्रप्रस्थ पर मुगलों का शासन हो गया था और गौ हत्या करने लगा था उसके बाद सभी देवगण उत्तराखंड देवभूमि की तरफ प्रस्थान करते हैं और हरिद्धार,ऋषिकेश में गंगा स्नान करके पहला पड़ाव क्वीली पालकोट नरेंद्रनगर टिहरी बना और यहीं घंडियाल(अभिमन्यु) देव का मन रम गया और यहीं अपना वास ले लिया।एक दिन यहाँ गौ माता देवलिंग को अपने दूध से सिंचित कर रही थी तो चमोला नाम के ब्रह्मा ने इस पवित्र लिंग के दो हिस्से कर दिए।

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लिंग का एक हिस्सा वहीँ रहा और दूसरा हिस्सा लोस्तु बढियारगढ़ रिगोली गिरा और यहाँ धति घंडियाल के नाम से विख्यात हुए घंडियाल देव की 06 वर्षों के अंतराल में अर्धकुम्भ जात होती है और 12 वर्षों में पूर्ण कुम्भ राजजात यात्रा होती है राजजात में घंडियाल देवता के पश्वा श्री मदन सिंह असवाल जी हैं और मंदिर के पुजारी दिनेश प्रसाद जोशी जी हैं घंडियाल देवता के साथ दुसरे देवता भी (घंडियाल देवता के भाई) राठी घंडियाल, नगेला (नाग-नागेन्द्र), बिनसर, हीत, हूणीया, माँ दक्षिण काली देवी, कैलापीर, माँ मठियांणा(मेठाणा) देवी भी साथ चलते हैं |

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वीर घंडियाल देवता की स्तुति जागर रूप में उत्तराखंड के गायक दीवान सिंह पंवार ने की है आप भी सुनिए देवभूमि के रक्षपाल देव घंटाकर्ण घंडियाल का ये जागर।