गुप्तकाशी के निकट ग्राम पंचायत नाला में त्रिपुरा सुंदरी ललिता माई मंदिर में संक्रान्ति पर्व पर ललिता कौथीग का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें ललिता माई की डोली तथा प्रतिमाओं को झूले में झुलाकर श्रद्धालुओं को वृद्धि, रिद्धि का आशीर्वाद दिया। दंत कथाओं के अनुसार नाला गांव में राजा नल की साम्राज्य हुआ करता था। राजा प्रत्येक दिन स्नान के लिये त्रिवेणी घाट पर जाता था, तो मधु और काली गंगा के संगम स्थल पर नदी के दूसरे छोर पर एक सुंदर सी बालिका राजा को उस पार आने के लिये प्रार्थना करती थी, यह दौर कई दिनों तक चलता रहा, एक दिन राजा नल ने नदी की उफनती लहरों को पार करके उस सुदर सी कन्या को अपने साथ अपने साम्राज्य में ले आये।
लड़की ने सम्पूर्ण राज्य का भ्रमण किया, और लोगां को आशीष दिया। गांव में तब विभिन्न बीमारियां थी, पशु और मानव विभिन्न बीमारियों से ग्रसित होकर काल कलवित हो रहे थे, ऐसे में सुंदर सी कन्या ने ग्रामीणों को कहा कि मेरा मन झूले में झूलने का हो रहा है, झूलने के बाद मैं सम्पूर्ण साम्राज्य की समस्त बीमारियों को समाप्त कर दुंगी, झूलने के बाद वो सुंदर सी कन्या वहीं गर्भगृह में समाधिस्त हो गयी, उसके बाद से लेकर अब तक इस गांव में कभी भी बीमारियों उत्पन्न नहीं होती हैं। वो कन्या तीनों लोकों में सबसे सुंदर थी, इसलिये उसका नाम त्रिपुरा सुंदरी मां ललिता माई का नाम रखा गया । कहा जाता है कि यह मां काली के बाल रूप के दिव्य दर्शन हैं ।
प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह के शुरू होते ही संक्रान्ति को नाला गांव में ग्रामीणों द्वारा मां ललिता माई की डोली निकालकर उसपर विभिन्न मूर्तियों सुसज्जित करते हैं, , ब्राम्हणों द्वारा विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है, पुनः दो नर पश्वाओं द्वारा डोली को हाथ में नचाकर निकट स्थित विशाल हिंडोले अर्थात झूले में झुलाया जाता है, पुनः डोली सभी श्रद्धालुओं का आशीर्वाद देती है। मान्यता है, कि इस तरह गांव में कभी भी बीमारियों के प्रकोप से बचा जा सकता है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार बीरेन्द्र सिंह , भरत भंडारी, धीरेन्द्र भंडारी ने कहा कि वर्षों की परंपराओं तथा संस्कृति को अक्षुण्ण रखने की दिशा में यह बेहतरीन प्रयास है। आस्था , आध्यात्म और श्रद्धा का केन्द्र नल राजा के नाला गांव में इस कौथीग के दौरान धियाणियों भी शिरकत करके ललिता माई से मनौतियां मांगते हैं।
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report – vipin semwal