यहां गिरे थे देवी सती के कुंज, अब स्थापित है मंदिर,जानिए रोचक इतिहास

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उत्तराखंड हमेशा अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व के लिए जाना जाता है। पौराणिक कल से ही हिमालय के इस भू-भाग को देवताओं का निवास स्थल कहते हैं। यहाँ स्थित देवी देवताओं के शक्तिपीठों की बहुत मान्यता है। इन शक्तिपीठों के दर्शन के लिए भारत के कोने-कोने से श्रद्धालु यहाँ पहुंचते हैं। कहते हैं जो इन शक्तिपीठों के एक बार दर्शन कर ले उसकी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

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सिद्धपीठ मां कुंजापुरी का मंदिर टिहरी जिले में ऋषिकेश-गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग नरेंद्रनगर के पास स्थित है l हिन्दुओं का यह प्राचीन मंदिर देवी के 51 शक्ति पीठों में से एक है ऋषिकेश से 25 km दूर और समुद्र तल से 1,676 मीटर की उंचाई पर स्थित यह मदिर कुंजापुरी देवी, सुरकंडा देवी, और चंद्रभद्दी देवी इन तीन सिद्ध पिठों के त्रिकोण को भी पूरा करता है। मान्यता है कि यहां देवी सती के बाल (कुंज) गिरे थे। अब यहां हर वर्ष नवरात्रि पर कुंजापुरी पर्यटन विकास मेले के नाम से मेला आयोजित होता है। सिद्धपीठ कुंजापुरी मंदिर में वर्ष 1974 से मेला आरंभ हुआ था। यहां से बंदर पूंछ, चौखंबा, नीलकंठ, सुंरकंडा आदि विहंगम व धार्मक स्थलों के दर्शन होते हैं। कुंजापुरी मंदिर के पुजारी राजेंद्र भंडारी ने बताया कि मंदिर में सुबह शाम विधिवत पूजा की जाती है,सुबह को देवी को स्नान करवाने के बाद पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्र पर्व के अवसर पर मंदिर में बाहर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। यहां नवरात्र पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।

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इतिहास –

मान्यता है कि यहां देवी सती के बाल (कुंज) गिरे थे जिस कारण इस स्थान का नाम कुंजापुरी पड़ा। स्कंध पुराण के केदारखंड के अनुसार पौराणिक काल में कनखल हरिद्वार में दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया था। इसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन उसमें शंकर व अपनी पुत्री सती को निमंत्रण नहीं दिया गया।

जब सती को यज्ञ का पता चला तो वह उसमें शामिल होने कनखल चली गई। यज्ञ में शिव का अपमान देख सती ने यज्ञ कुंड में आहुति दे दी। शिव को जब यह पता चला तो वह हरिद्वार पहुंचे और यहां से सती का शरीर लेकर कैलाश की ओर चल पड़े। सती का शव रास्ते में टूट कर जगह-जगह गिरता रहा कुंजापुरी में सती के कुंज गिरे जिस कारण इसका नाम कुंजापुरी पड़ा।

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मंदिर के मुख्य पुजारी होशियार सिंह भंडारी ने बताया कि इस स्थान पर माता सती देवी का हाथ (कुंज) गिरा था इसीलिए यह मंदिर को कुंजापुरी के नाम से जाना जाता है. चौकाने वाली बात तो यह है की इस मंदिर के गर्भगृह में देवी की कोई मूर्ति स्थापित नहीं है। बल्कि अन्दर एक शिलारूप पिण्डी स्थापित है। उस पिंडी के निचे एक अखंड ज्योति जलती रहती है। मंदिर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ हाथियों के मस्तक की दो-दो मूर्तियां बनी हुई हैं। इस मंदिर के गर्भ गृह में ही एक शिवलिंग तथा गणेश जी की मूर्ति स्थापित है। वैसे तो गढ़वाल के सभी मंदिरो में ब्राह्मण पुजारी होते हैं | लेकिन इस देवी के मंदिर में राजपूत जाती के ब्राह्मण है।

 

कुंजापुरी मन्दिर परिसर में सिरोही का एक पेड़ है जिस पर श्रद्धालु अपने सच्चे मन और श्रद्धा के साथ धागा या चुनरी बांधकर अपनी मनोकामना मांगते है और माँ कुंजापुरी उनकी सभी मनोकामना पूर्ण करती हैं। श्रद्धालुयो की मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु यहां पर दोबारा आते है और मां को नारियल चुनरी का प्रशाद चढ़ाकर और धागा खोलकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। मन्दिर परिसर में मुख्य मन्दिर से अलग एक और मन्दिर है जिसमें भगवान शिव, महाकाली, भैरवबाबा और नरसिंह भगवान की मूर्तियां स्थापित हैं। हिन्दुओं का विशेष पर्व जैसे नवरात्रो में यहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

मान्यता –

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माँ कुंजापुरी देवी के मंदिर में विशेष रूप से चैत्र और शारदीय नवरात्र पर यहां विशेष पूजा एवं मेला आयोजित होता है। इस दिन मंदिर को फूलों व लाइट से सजाया जाता है। वर्ष 1974 से यहाँ मेला आरंभ हुआ था, वैसे तो हर दिन भक्त पूजा-अर्चना के लिए आते है लेकिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर नवरात्र में यहां पहुंचते है। यहीं कारण है कि नवरात्रों के दिनों में यहाँ मेला लगता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है। वर्ष भर में यहाँ आस-पास के क्षेत्रों से नवविवाहित युगल मंदिर में आकर सुखी दाम्पत्य जीवन की अभिलाषा हेतु देवी माँ का आशीर्वाद लेने आते रहते है।

कैसे पहुंचे मंदिर –

मंदिर तक पहुंचने के लिये आपको ऋषिकेश के नाराज चौक से 23 km की दूरी पर स्थित हिन्डोलाखाल नामक एक छोटे से पहाड़ी बाजार तक का सफर तय करना पड़ेगा, जो की टिहरी राजमार्ग पर स्थित है। मन्दिर हिन्डोलाखाल से लगभग 4 km दूर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है जहा पहुंचने के लिये सड़क और पैदलमार्ग दोनों हैं। और मंदिर के निचे वाले द्वार से 308 सीढ़ियां चढ़कर मंदिर के मुख्य द्वार तक पंहुचा जाता है।

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