Culture department
उत्तराखंड संस्कृति विभाग आजकल चर्चाओ में बना हुआ है। लगातार कलाकारों द्वारा संस्कृति विभाग पर सवाल उठ रहे है। कहीं न कहीं कलाकारो के मुताबिक गलती संस्कृति विभाग की है उनके मुताबिक संस्कृति विभाग अपनी कही बातो पर अटल नही रहती । अगर हाल यही रहा तो शायद कलाकार अपना हुनर दिखाना ही बंद न कर दे। संस्कृति विभाग का एक उदाहरण नीचे दिया है कि उन्होंने क्या वादे किए थे और आज उन वादों को वो कितना सच कर पायी है।
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उपेक्षा का दंश झेल रहे लोक कलाकारों की संस्कृति विभाग ने सुध ली है। विभाग ने कलाकारों को आर्थिक लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से लोक गायक-कलाकर कल्याण कोष (कारपास फंड) की स्थापना कर दी है। प्रथम चरण में कोष दो करोड़ रुपये से शुरू किया गया है, लेकिन इसमें तीन करोड़ रुपये और जमा होने हैं। इससे संस्कृति विभाग में सूचीबद्ध लोक कलाकारों और संस्कृति दलों को लाभान्वित किया जाएगा। इस योजना के तहत आकस्मिक मृत्यु होने पर कलाकार के परिवार को आर्थिक सहायता व दुर्घटना में गंभीर घायल होने पर उपचार के लिए आर्थिक सहायता दी जाएगी। आपदा में मकान ध्वस्त होने पर भी एक लाख की सहायता मिलेगी।
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संस्कृति विभाग में सूचीबद्ध नहीं हुए कलाकारों को भी वेशभूषा और वाद्य यंत्र के लिए धनराशि दी जाएगी। इसके अलावा जीविकोपार्जन में कठिनाई का सामना कर रहे कलाकारों की मदद को भी प्रावधान किया गया है। संस्कृति विभाग की निदेशक बीना भट्ट ने बताया कि प्रदेश की पारंपरिक एवं पौराणिक लोक सांस्कृतिक विरासत के संवर्द्धन और सरंक्षण को काम कर रहे लोक कलाकारों की आर्थिकी को बेहतर करने के लिए कोष की स्थापना की गई है।
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अगर यह वादे सच हुए होते तो आज कलाकारों की यह दशा नही होती। आज कलाकर अपनी कला को छोड़ने पर मजबुर है जिसका कारण कहीं न कहीं संस्कृति विभाग है। कलाकारों का कहना है कि अगर हाल यही रहा तो वो वक़्त दूर नही जब सब कलाकार संस्कृति विभाग के लिए काम करना बन्द कर देंगे। कलाकारों के मुताबिक संस्कृति विभाग को बदलने की जरुरत है। जिससे कलाकार भी खुश रहे और जनता भी। आपको बता दे कि अभी हाल ही में संस्कृति विभाग की एक बैठक हुई है जिसमे उन्होंने कलाकारों के हितो की बात की है. अब देखना यह होगा कि संस्कृति विभाग कलाकारों के हित के लिए क्या नियम बनाती है तथा उन नियमों पर टिक पाती है या नहीं।
हिल्लीवूड न्यूज़ की रिपोर्ट