दिवाली के दिन से सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को निकालने के लिए बचाव अभियान आज 10वें दिन भी जारी है। सिलक्यारा सुरंग हादसे को जहां मानवीय भूल का नतीजा बताया जा रहा है, तो वहीं स्थानीय ग्रामीणों का मानना है कि ऐसा बौखनाग देवता के कोप के कारण हुआ।
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टनल के भीतर सिर्फ जीने लायक हवा है। 10 दिनों का वक्त गुजर गया है, लेकिन सुरंग में फंसे मजदूर अब तक नहीं निकाले गए। सिलक्यारा सुरंग हादसे को जहां मानवीय भूल का नतीजा बताया जा रहा है, तो वहीं स्थानीय ग्रामीणों का मानना है कि ऐसा बौखनाग देवता के कोप के कारण हुआ, जिनका मंदिर टनल बना रही कंपनी ने हटा दिया था। अब जबकि 41 मजदूरों को बचाने के लिए इस्तेमाल हो रही हर तकनीक फेल रही है तो तकनीक के साथ आस्था का भी सहारा लिया जा रहा है, ताकि 41 मजदूरों को सुरंग से बाहर निकाला जा सके। क्षेत्र के ग्रामीणों के दबाव पर अब कंपनी प्रबंधन ने सुरंग के बाहर बौखनाग देवता का मंदिर स्थापित किया है।
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पहले इस मंदिर को हटाकर सुरंग के अंदर कोने में स्थापित किया गया था और पुजारी को बुलाकर विशेष पूजा-पाठ भी करवाया गया। बौखनाग देवता को सिलक्यारा क्षेत्र का रक्षक माना जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब सुरंग का निर्माण शुरू किया गया तो सुरंग के पास बाबा बौखनाग का मंदिर स्थापित करने की बात कही गई थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। ग्रामीणों का मानना है कि बौखनाग देवता की नाराजगी ही हादसे के रूप में सामने आई है। अब ग्रामीणों की मांग पर यहां बौखनाग देवता का मंदिर स्थापित किया गया है। कुल मिलाकर सुरंग में फंसे लोगों की जान बचाने के लिए हर जतन किए जा रहे हैं। मजदूरों के परिजन सुरंग के पास पहुंचे हुए हैं और अपनों के बाहर आने की बाट जोह रहे हैं।