उत्तराखंड में बेरोजगारी एवं पलायन की हकीकत को दर्शाती ‘बाटुली’ शार्ट फिल्म !

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उत्तराखंड लगातार पलायन का दंश झेल रहा है,जबसे कोरोना महामारी इस दुनिया में आई है तबसे जरूर पहाड़ों में प्रवासियों के लौटने से रौनक जरूर लौट आई है,लेकिन कब तक युवा घरों में बैठे रहेंगे इसकी चिंता जरूर सता रही है,वर्तमान हालातों का जिक्र करती हुई ऐसी ही एक लघु फिल्म बाटुली की दर्शक सराहना कर रहे हैं। 

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उत्तराखंड राज्य प्राकर्तिक सौंदर्यता से भरपूर है,यहाँ पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं लेकिन फिर भी आज राज्य निर्माण के इतने वर्षों के बाद हालात जस के तस बने हुए हैं।कहानी कोरोना महामारी के वर्तमान परिदृश्य के बारे में है जहां हर कोई अपने घर की ओर भाग रहा है। बंद और छोड़े गए घर अब खुलने के लिए तैयार हैं क्योंकि इसके अंत में आपकी जगह जो आपको कभी नहीं भूलती है। कहानी मुख्य किरदार हरीश के इर्द-गिर्द घूमती है, जो कि कोरोना महामारी के कारण, कई वर्षों के बाद घर आता है,वह भी वर्तमान में गाँव में अपने दोस्तों की तरह ही बेरोजगार है। उसके बाद उसे अपने बेरोजगार दोस्तों के जीवन को बदलने और छोटे स्टार्टअप के बारे में सोचने की आवश्यकता होती है जिसने अपने दोस्तों और परिवार के जीवन को काफी बदल दिया। कहानी यह भी बताती है कि किस तरह से स्वरोजगार पहाड़ियों में रिवर्स माइग्रेशन में मदद करेगा।

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बाटुली लघु कहानी को ललित मोहन कल्पासी ने लिखा है,इसे निर्देशित अमित कल्पासी ने किया है साथ ही फिल्मांकन एवं छायांकन का कार्य भी किया है।इस लघु कहानी ने उत्तराखंड की हकीकत का सामना करवाया है,यहाँ के युवा मेहनती तो हैं लेकिन काम को छोटा बड़ा समझ कर करना नहीं चाहते और अपना मूल्यवान समय व्यर्थ के कामों में अधिक लगाते हैं,जिस कारण देवभूमि में नशे की बढ़ती प्रवर्ति नजर आती है।

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बाटुली सिर्फ हरीश की ही कहानी नहीं है ये कहानी है हर उस युवा की जो करना तो बहुत कुछ चाहता है लेकिन संकीर्ण मानसिकता के चलते अपना भविष्य अधर में लटका देता है और ये कहते नहीं थकता यहाँ रोजगार ही नहीं है,ये कहानी सबक और सीख देने वाली है कि अब समय दूसरों को कोसने का नहीं है अपने हुनर को पहचानने का है और सबके सहयोग से ही देवभूमि को संवारना है।

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कहानी के सभी पात्रों ने अपना किरदार बखूबी निभाया है साथ ही उन लोगों पर भी कटाक्ष किया गया है जो स्वयं तो कुछ करने लायक नहीं हैं लेकिन किसी को आगे बढ़ते भी नहीं देखना चाहते ऐसी मानसिकता वाले लोगों को इस कहानी से जरूर सीख मिलेगी। और पुरानी कहावत पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी पहाड़ के काम नहीं आता अब यही सही समय है इस कहावत को गलत साबित करने का।

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देखिए उत्तराखंड में रिवर्स पलायन और स्वरोजगार का बेहतरीन उदाहरण दर्शाती ये कुमाउनी लघु फिल्म बाटुली :