मनचाहा वर पाने की लगती है यहां अर्जी, जानिए कैसे पहुंचे इस खास जगह

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उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहां पतित पावन गंगा की धार है, यहां साधु संत ध्यान के लिए आते हैं, और उत्तराखंड में हिमालय की गोद में चार मोती हैं। जिन्हें भारत का छोटा चार धाम कहा जाता है। उत्तराखंड में  हिंदुओं के चार पवित्र धाम शामिल हैं। केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री। इन चारों यात्राओं का ही हमारे हिन्दु धर्म मे बहुत महत्व है।यहां भगवान शिव और विष्णु जी के पूजा स्थल हैं। पंच बद्री, पंच केदार, पंच प्रयाग तीर्थ उत्तराखंड में ही है। यहां के कण-कण में देवी देवताओं का वास माना जाता है। उत्तराखंड के हर क्षेत्र में आपको कहीं न कहीं पर कोई न कोई देव या देवी का मंदिर अवश्य देखने को मिलेगा। जो अपने चमत्कारों के लिए खासा जाना जाता है। ठीक ऐसा ही एक मंदिर माँ ज्वाल्पा देवी का है। जो कि उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में स्थित है और यह मंदिर उत्तराखंड के साथ-साथ पूरे भारत में प्रसिद्ध है। कहते हैं की माँ ज्वाल्पा देवी के जो एक बार दर्शन कर ले फिर वो खाली हाथ नहीं लौटता।
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ज्वाल्पा देवी मंदिर देवी के मुख्य शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर पौड़ी कोटद्वार सड़क मार्ग से 200 मीटर नीचे नयार नदी के किनारे स्थित है। इस मंदिर की शोभा देखते ही बनती है। इसकी स्थापना वर्ष 1892 में हुई थी। यह मंदिर माता पार्वती का मुख्य रूप “माँ दुर्गा” को समर्पित है। सदियों से इस मंदिर में माता ज्वाल्पा, एक ज्योत (दीप) के रूप में स्थित है जो दिन रात जलती रहती है। माता दुर्गा का यह मंदिर अपने सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करने के लिए मुख्य रूप से जाना जाता है।

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ज्वाल्पा देवी के बारे में मान्यता है कि एक बार पुलोम नाम के राक्षस की कन्या सुची ने इंद्र को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए नयार नदी के किनारे तप किया था। सुची की तपस्या से खुश होकर इसी स्थान पर मां भगवती ज्वाला यानी अग्नि के रूप में प्रकट हुईं।इसके बाद मां ने राक्षस की कन्या सुची को उसकी मनोकामना पूर्ण का वरदान दिया। ज्वाला रूप में दर्शन देने की वजह से इस स्थान का नाम ज्वालपा देवी पड़ा था। देवी पार्वती के दीप्तिमान ज्वाला के रूप में प्रकट हुई थी तो वो अखंड दीपक तबसे निरंतर मंदिर में प्रज्ज्वलित रहता है।इस परंपरा को जारी रखने के लिए तबसे से कफोलस्यूं, मवालस्यूं, रिंगवाडस्यूं, खातस्यूं, घुड़दौड़स्यूं और गुराडस्यूं पट्टयों के गांवों से तेल की व्यवस्था होती है। इन गांवों के खेतों में सरसों उगाई जाती है और अखंड दीप को प्रज्ज्वलित रखने के लिए तेल की व्यवस्था की जाती है।

ज्वाल्पा देवी का यह मंदिर भक्तों के लिए साल भर खुला ही रहता है। सुबह 6 बजे से लेकर शाम 6 जे तक इसके कपाट खुले रहते हैं। सदियों से जलने वाली जो माता ज्वालपा की ज्योत है उसे दिन भर बने रहने देने की प्रथा यहां आज भी कायम है। जिसके लिए निकटवर्ती इलाकों एवं पट्टियों से सरसों इकट्ठा करके लाया जाता है और कहा जाता है कि गढ़वाल के राजा प्रधूमन शाह ने 18वीं शताब्दी में इस मन्दिर में माता के अखण्ड दीप ज्योति के तेल के लिए 11.82 एकड सिंचित भूमि दान की थी ताकि माता के अखंड ज्योति के लिए इस भूमि में सरसों उगाया जा सके। माता ज्वालपा के इस मन्दिर में वैसे तो हर दिन भीड रहती है। लेकिन चैत्र एवं शारदीय नवरात्रों में यहां सैकड़ों की संख्या में भक्तों की भीड़ लगी रहती है और मान्यता अनुसार और दिनों की अपेक्षा इन दिनों माता अपनी भक्तो की विनती जल्दी सुन लेती है और जल्द ही इच्छा पूरा करती है l

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  • सड़क मार्ग यह मंदिर पोड़ी से करीब 30 किमीटर और कोटद्वार से लगभग 72 किलोमीटर दूरी पर कोटद्वार पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग पर है। जहां कोटद्वार सतपुति पाटीण और श्रीनगर पौड़ी परसुंडासात होते हुए पहुंचा जा सकता है। राजमार्ग से मात्र 200 मीटर नीचे उतरकर मां का दिवा धाम है।
  • रेल मार्ग मंदिर के नजदीक कोई रेलवे स्टेशन नहीं है। यहां से 73 किलोमीटर की दूरी पर कोटद्वार और 133 किलोमीटर दूरी पर ऋषिकेश रेलवे स्टेशन है।
  • वायुमार्ग निकटतम हवाई अड्डा जी (देहरादून) है, जो मंदिर से लगभग 133 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां से आप बस से मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

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