आखिर इस वजह के चलते प्रसिद्ध है अल्मोड़ा के जागेश्वर धाम

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देवभूमि उत्तराखंड में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जिनका वर्णन पुराणों में भी मिलता है। ऋषि-मुनियों की तपोभूमि पर कई ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिर हैं जिनमें हिंदू श्रद्धालुओं की अगाध आस्‍था है। अल्‍मोड़ा जिले में ऐसा ही एक धार्मिक स्थल है जागेश्वर धाम। जहां यूं तो सालभर श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है लेकिन सावन और महाशिवरात्रि पर यहां जन सैलाब उमड़ता है। जागेश्वर धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। 

जागेश्वर धाम,उत्तराखंड के जंगल के ऊंचे इलाकों में जागेश्वर या नागेश के रूप में शिव का निवास है। यहां का पूरा शहर शिव मंदिरों को समर्पित है। यहां के ऊंचे -ऊंचे देवदार के पेड़ देखने में वास्तव में खूबसूरत लगते हैं साथ ही गहरे हरे रंग की पोषक पहने नज़र आते हैं। उत्तराखंड का हिमालयी राज्य माप से परे सुंदर है और फिर भी अपनी अधिक लोकप्रिय बहन, हिमाचल प्रदेश की तुलना में पर्यटकों को लुभाता है। जबकि ऋषिकेश, नैनीताल और मसूरी जैसे गंतव्य हमेशा सुर्खियों में रहे हैं, राज्य में अभी भी खजाने के अप्रकट होने की प्रतीक्षा है।

उत्तराखंड में स्थित जागेश्वर धाम एक एक ऐसा धाम भी है जिसका नाम तो प्रसिद्ध है लेकिन इसका रहस्य कोई भी नहीं जानता है। भगवान शिव का यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यह मंदिर लगभग 2500 वर्ष पुराना है। उत्तराखंड में स्थित इस मंदिर का पौराणिक कथाओं में भी उल्लेख किया गया है जिसका वर्णन शिव पुराण, लिंग पुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है।

 

 

माना जाता है पुराणों के अनुसार भगवान शिव एवं सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी । कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं। ऐसे में मन्‍नतों का दुरुपयोग होने लगा। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य यहां आए और उन्होंने इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। अब यहां सिर्फ यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं। यह भी मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र लव-कुश ने यहां यज्ञ आयोजित किया था, जिसके लिए उन्होंने देवताओं को आमंत्रित किया। मान्‍यता है कि उन्होंने ही इन मंदिरों की स्थापना की थी। जागेश्वर में लगभग 250 छोटे-बड़े मंदिर हैं। जागेश्वर मंदिर परिसर में 125 मंदिरों का समूह है। मंदिरों का निर्माण पत्थरों की बड़ी-बड़ी शिलाओं से किया गया है।

जागेश्वर धाम में हर रोज काफी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं. यहां की एक मान्यता यह भी है कि जिन महिलाओं की संतान नहीं होती है, वह जागेश्वर के महामृत्युंजय मंदिर में आकर संतान की मनोकामना मांगती हैं और भोलेनाथ उनकी झोली खुशियों से भर देते हैं l
मंदिर में महिलाएं महामृत्युंजय मंदिर के सामने दीया हाथ में लेकर संतान की कामना करती हैं,वही विशेष अवसरों पर जैसे- शिव चतुर्दशी, सावन मास और महाशिवरात्रि पर यह पूजा की जाती है l

जागेश्वर मंदिर के परिसर में वैसे तो देवदार के काफी पेड़ हैं लेकिन एक पेड़ ऐसा भी है, जिसमें भगवान शिव का परिवार देखने को मिलता है. देवदार के इस पेड़ को अर्धनारीश्वर कहा जाता है. इस पेड़ में भगवान शिव, माता पार्वती और उनके पुत्र गणेश की आकृति देखने को मिलती है l

विभिन्न खूबियों से भरा हुआ जागेश्वर धाम मंदिर वास्तव में कई विशेषताओं को अपने आप में समेटे हुए है और पर्यटकों के बीच ये विशेष आकर्षण का केंद्र है।