फिल्म समीक्षा: मिशन देवभूमि लव जिहाद के बहाने सांस्कृतिक हमले की कहानी।

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उत्तराखंड फिल्म इंडस्ट्री लगातार उन्नति कर रही है और दर्शकों को पहाड़ से जुड़े अलग-अलग मुद्दों पर बड़े पर्दे पर फ़िल्में देखने को मिल रही हैं,गत वर्ष आंचलिक फिल्मों ने रफ़्तार पकड़ी और इस वर्ष भी सिलसिला जारी है पिछले हफ़्ते एक और गढ़वाली फिल्म ‘ मिशन देवभूमि ‘ सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई और लगातार दर्शकों से हॉउसफुल चल रही है फिल्म में क्या है जो दर्शक इससे इतना जुड़ रहे हैं और खुद आगे आकर इसका समर्थन कर रहे हैं। 

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प्रज्ज्वल फिल्मस के बैनर तले बनी फिल्म ‘मिशन देवभूमि ‘ 30 मई को देहरादून,चंडीगढ़ ,और गाजियाबाद में एकसाथ रिलीज़ हुई और पहले ही दिन से दर्शकों की जबरदस्त प्रतिक्रिया देखने को मिली,रवि ममगाईं के निर्देशन में बनी फिल्म समाज की चेतना जगाने का काम कर रही है,फिल्म कई पहलुओं को छूती है जिसे समाज जाने-अनजाने नजरअंदाज कर देता है,उत्तराखंड देवभूमि के नाम से जानी जाती है और अपने रीति रिवाजों और संस्कृति के लिए अपनी अलग पहचान रखती है।

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  • मिशन देवभूमि कहानी सार : 

मिशन देवभूमि की कहानी आज की भी है और निकट भविष्य के लिए भी एक सीख है,फिल्म में दर्शाया गया है कि लव जिहाद से कैसे पहाड़ की भोली-भाली लड़कियों को निशाना बनाया जा रहा है और ये पूरा एक गिरोह बन गया है,फिल्म एक ऐसे परिवार की कहानी है जो एक आम परिवार है पिता अपने बेरोजगार लड़के की नौकरी लगने की आस में है कि उसके नौकरी लगते ही घर के हालातों में सुधार हो उनकी एक लाड़ली बेटी भी है जो अपने घर के संस्कारों और हालातों को बखूबी जानती है लेकिन उम्र के ऐसे पड़ाव में है कि उसे अच्छे बुरे की समझ नहीं है वो कॉलेज जाती है और सोशल मीडिया के जरिए एक युवक से प्यार कर बैठती है जो कि उम्र के हिसाब से गलत भी नहीं है लेकिन जब उसे हकीकत पता लगती है तो उसे बड़ा धक्का लगता है और तब तक काफी देर हो जाती है क्योंकि जिस युवक से वो भविष्य के सपने बुन रही थी उसने अपना अतीत और वर्तमान सब छुपा रखा था और उसके मनसूबे कुछ और ही थे,उसने ना सिर्फ अपना नाम बदलकर बताया बल्कि अपना धर्म बदलकर भी भावनाओं से खिलवाड़ किया।

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कलाकार और उनकी कलाकारी: 

फिल्म लव जिहाद से पर्दा तो हटाती ही है इसके साथ ही पहाड़ों में व्याप्त बेरोजगारी , भू कानून ,लैंड जिहाद,पहाड़ों में हो रहा अवैध अतिक्रमण,सोशल मीडिया के बुरे परिणाम जैसे कई मुद्दों को उठाती है,रूचि ममगाईं की कहानी दमदार है,रवि ममगाईं का निर्देशन सधा हुआ है कलाकारों की बात करें तो सभी ने अपने किरदार को बखूबी निभाया मुख्य नायक महावीर की भूमिका में रवि ममगाईं ने एक ऐसे युवक का किरदार निभाया जो समाज के लिए जीता है और गलत का खुलकर विरोध करता है और दुनिया के लिए लड़ने वाले भाई की जब बहन खुद मुसीबत में फंस जाती है तो वो और भी खतरनाक हो जाता है।फिल्म के कुछ किरदार हैं जिन्हें स्क्रीन पर अपने दमदार अभिनय का जलवा बिखेरा उनमें से एक हैं सावन गैरोला जो कि अमन और असलम की भूमिका में थे सावन दोनों ही किरदारों में खूब ढले,अमन जहाँ एक शांत लड़का था वहीँ असलम के किरदार में उन्होंने जान डाल दी और स्क्रीन पर पूरा जलवा बिखेरा रखा,मुख्य नायिका की भूमिका में शिवांक्षा चंद ने स्क्रीन पर एक हिम्मती लड़की का किरदार निभाया,वहीं पत्रकार की भूमिका में जिया मल्होत्रा ने एक जागरूक पत्रकार की भूमिका बखूबी निभाई,विधायक बने बृजेश भट्ट ,मौलाना बने त्रिभुवन चौहान,सते सिंह पटवाल ,पदम् गुसाईं अपने किरदार की भूमिका में फिट बैठे वहीँ लम्बे समय बाद किसी फिल्म में नजर आए जस पंवार भी वर्दी में खूब जंचे फिल्म के कई पात्र हैं जिन्होंने कम ही सही लेकिन स्क्रीन पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई जिसमें राम रवि,अजय देव,अनूप कठैत जैसे कई कलाकार हैं जिन्होंने अपनी छाप बखूबी छोड़ी,फिल्म में पिता की भूमिका में बृज मोहन वेदवाल काफी सहज दिखे और उनके किरदार में एक पिता की वास्तविक छवि नजर आई वहीँ आयुषी जुयाल जिन्होंने नायक की माँ का किरदार निभाया वो भी माँ की भूमिका में भावनात्मक असर छोड़ने में सफल रहीं,संदीप छिलबट की कॉमेडी ने दर्शकों को गंभीर समय पर भी गुदगुदाने का भरपूर काम किया।

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तकनीकि पक्ष:

फिल्म के तकनीकि पक्ष ने काफी प्रभावित किया और युद्धवीर नेगी युवी का फिल्मांकन काबिले तारीफ़ है शुरुआत के कुछ सीन्स में जरूर संपादन की कमी खली लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती रही ये कमी कम होती नजर आई और फिल्म अंत तक दर्शकों को बाँधने में सफल हो पाई सिनेमाहॉल से निकले दर्शकों के चेहरे पर एक सुकून नजर आया और कहीं ना कहीं फिल्म के विषय ने उन्हें सोचने पर मजबूर किया कि हम सब किस बात को नजरअंदाज किए जा रहे हैं,बैकग्राउंड म्यूजिक में आशीष पंत ने कमाल का काम किया और फिल्म को हॉल में दर्शकों को समझने में आसान किया,अमित वी कपूर का संगीत शानदार है फिल्म के गीतों में सौरव मैठाणी ,जितेंद्र पंवार की मेलोडी और युवा गायिका प्रतीक्षा बमराड़ा,अमित खरे की आवाज हॉल में खूब गूंजी।

फिल्म के प्रमोशन में सोशल मीडिया ने काफी अहम् भूमिका निभाई जिसके चलते दर्शक खुद हॉल तक पहुँच रहे हैं और सिनेमाहॉल भी फिल्म को आगे चलकर प्रोत्साहन दे रहे हैं,पूरी टीम को हमारी हार्दिक शुभकामनाएं कि समाज को सिर्फ मनोरंजन के कटघरे में खड़ा ना रखकर जागरूक करने का काम भी किया है,फिल्म अभी सिनेमाहॉल में लगी है तो इसे जरूर देखें।

गढ़वाली फिल्म मिशन देवभूमि पब्लिक रिव्यु :

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