हम गीत गाते रहे विभाग खून चूसता रहा उत्तराखंडी कलाकारों का संस्कृति विभाग में धरना।

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उत्तराखंड में सरकार किस इंजन से चल रही है इसका एक नमूना कल देहरादून स्थित संस्कृति निदेशालय में देखने को मिला जहाँ लोककलाकारों ने अपनी विभिन्न मांगों के लिए आंशिक धरना प्रदर्शन दिया,उत्तराखंड बने 25 वर्ष हो चुके हैं लेकिन आज भी जनता सड़कों पर ही है युवा बेरोजगार हैं तो सड़कों पर नौकरी की मांग के लिए आंदोलन कर रहे हैं जल जंगल की जमीन के लिए महिला पुरुष दोनों ही सड़कों पर हैं और अब जिनके भरोसे संस्कृति बचाने की जिम्मेदारी है उनके सामने भी रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है,संस्कृति विभाग की अनियमतिताओं और कलाकारों के शोषण से त्रस्त होकर कल उत्तराखंड के दलनायक संस्कृति विभाग में काली पट्टी पहनकर धरने पर बैठ गए उनके समर्थन में लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ,उत्तराखंड मूल निवास भू कानून समन्वय समिति संयोजक मोहित डिमरी शामिल हुए।

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किसी भी राज्य की पहचान उसकी संस्कृति,उसकी बोली भाषा ,खान पान लोकसंगीत से ही होती है और वर्षों से उत्तराखंड को हर मंचों पर अपने खून पसीने से उत्तराखंड के लोककलाकार उसे जीवित रखे हुए हैं,कोई भी सांस्कृतिक ,राजनैतिक कार्यक्रम हो वहां कलाकार मांगल गीतों से ,लोकगीतों ,लोकनृत्यों से उत्तराखंड की संस्कृति को दिखाते हैं वरना इस मॉडर्न ज़माने में कैसे पता लग पाता कि एक समय में गढ़वाल,कुमाऊ या जौनसार में ये पहनावा था ये गीत थे या ये आभूषण पहने जाते थे।

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कलाकार पूरी मेहनत से मंचों को सजाते हैं और एक टीम में 20 से 25 सदस्य होते हैं जाहिर सी बात है उनको आने जाने के लिए रहने के लिए या ड्रेस इत्यादि के लिए धन की आवश्यकता होती है और इन सबका जिम्मा रहता है दलनायक के पास जो अपनी जेब से पैसे लगाकर कार्यक्रम में टीम लेकर जाता है इसी आस में कि जब संस्कृति विभाग ने हमें उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा है तो आजीविका भी वहीँ से चल जाएगी ये सालों से चलता आ रहा है लेकिन उत्तराखंड का संस्कृति विभाग कलाकारों का शोषण कर रहा है दलनायकों की शिकायत है कि विभाग कार्यक्रम के लिए तो भेज देता है लेकिन जब पैसे देने का समय आता है तो कई सारी प्रक्रिया बता देता है और 3 4 सालों तक कोई पैसा नहीं मिल पाता।

लोक कलाकारों के आंशिक धरने को समर्थन देने पहुंचे लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी और मूल निवास भू कानून समिति के संयोजक मोहित डिमरी।

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ये तो बस एक नमूना था आपको समझाने के लिए जिससे आप समझ सको कि कर्ज में डूबे कलाकारों की सुध कौन लेगा,कलाकारों के दल नायक संस्कृति निदेशालय में धरने पर बैठे इनमें गढ़वाल,कुमाऊं और जौनसार के वो दलनायक शामिल थे जिन्होंने सालों से उत्तराखंड की संस्कृति के लिए काम किया है अपनी बात रखते हुए कलाकारों के आंसू छलक उठे।लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने उत्तराखंड आंदोलन के गीत ‘उठा जागा उत्तराखंडियों ‘ गाकर कलाकारों के हौसले को मजबूती दी,वहीँ सौरव मैठाणी ने भी व्यंग्यात्मक अंदाज में ” कु च वू भग्यान जू खलेकि हमतैं सुखु पराल घ्यूँ दूध चाणु च” गीत गाकर गंभीर माहौल को हल्का किया।

लोक कलाकारों की प्रमुख मांगें
1 :वर्षों से अटके सांस्कृतिक दलों का भुगतान एक माह के अंदर हो और विवरण दल नायक को दिया जाए।

2 :सांस्कृतिक दलों और लोककलाकारों को GST मुक्त दिया जाए।

3 :सांस्कृतिक दलों को पूर्व की भांति यात्रा भत्ता दिया जाए।

4 :सभी सांस्कृतिक दलों और लोककलाकारों को नियमित रूप से कार्यक्रम दिए जाएँ न कि डिमांड के हिसाब से।

5  :सांस्कृतिक दलों को उनके ब्लॉक स्तर एवं जिला स्तर पर कार्यक्रमों के लिए प्राथमिकता मिले और बिलों के भुगतान भी उसी स्तर से हों
6  : केंद्र स्तर का ही मानदेय राज्य में भी लागू हो।

7  : प्रदेश के ख्यातिप्रद लोकगायकों को चिन्हित कर सूचीबद्ध किया जाए और बॉलीवुड के गायकों की जगह वरीयता दी जाए।
8  : सांस्कृतिक दलों को वेशभूषा, आभूषण और रखरखाव के लिए वार्षिक अनुदान दिया जाए।
9  : कलाकारों के ऑडिशन की जगह चिन्हित कर पंजीकरण हो जिससे ठेकेदारी प्रथा बंद हो।
10 : निदेशक बीना भट्ट को तत्काल पद से हटाया जाए।

इसके साथ ही कलाकारों ने कुछ प्रस्ताव भी दिए हैं जिनमें कलाकारों को एक पहचान पत्र दिया जाए जिससे उनको राज्य के कलाकार की पहचान मिल सके और दूसरे राज्य या देश में जाने में असुविधा ना हो, जीवन बीमा ,स्वास्थ्य बीमा ,दुर्घटना बीमा पर विचार किया जाए जिससे कलाकारों को आकस्मिक समय में सुविधा हो,पेंशन की सुविधा दी जाए।

कलाकारों के इस धरने के समर्थन में पहुंचे लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने कहा:

कलाकारों की सालों तक पेमेंट नहीं मिलती है इसमें विभाग को ध्यान देना चाहिए, रोस्टर के हिसाब से कार्यक्रम आवंटित हों।डिमांड के हिसाब से कार्यक्रम ना दिए जाएँ अगर ऐसा है तो उनकी सूची बनाए और बाकियों को कहें कि आप जाओ।विभाग की कार्यशैली में सुधार की आवश्यकता है।

 

सौरव मैठाणी ने कहा :

800 रुपए में संस्कृति को नहीं बचाया जा सकता वो भी 4 साल बाद मिलता है ,मानदेय में वृद्धि हो और समय पर कलाकारों को भुगतान हो,ये बड़ा दुर्भाग्य है कि जिस विभाग के लिए हम कार्य करते हैं वहां मांगी हुई दरी में धरना देना पड़ रहा है।

 

वहीँ धरने को समर्थन देने पहुंचे उत्तराखंड मूल निवास और भू कानून समन्वय समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने कहा :

उत्तराखंडी कलाकारों को सम्मान सरकार क्यों नहीं देती है समझ से परे है इनके खिलाफ खुले तौर पर मोर्चा खोलने की जरुरत है ऐसा शोषण कहीं नहीं देखा और निदेशक बीना भट्ट की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए।कलाकारों के सामने रोजी रोटी का संकट है अन्य कलाकारों को भी इस मुहिम में आगे आना चाहिए।

लोककलाकारों ने संस्कृति विभाग के सचिव युगल किशोर पंत को ज्ञापन सौंपा है जिसके जवाब में उन्होंने एक महीने का समय मांगा और कहा कि उम्मीद है कलाकारों की समस्या का समाधान होगा और उन्हें इस तरह से धरना प्रदर्शन नहीं करना पड़ेगा उनकी समस्याएं जायज हैं।

युगल किशोर पंत -सचिव संस्कृति विभाग।

संस्कृति विभाग में कलाकारों का धरना :