उत्तराखंड का ऐसा मंदिर जहाँ चार भाई देते हैं न्याय,जानिए क्या है मान्यताएं।

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उत्तराखंड देवभूमि है और यहां के निवासियों का देवी देवताओं से सीधा जुड़ाव होता है,क्या आपने कभी सुना कि देवता न्याय करते हों,उत्तराखंड में ऐसे कई देवता हैं जो अपने भक्तों को न्याय देते हैं,गोलू देवता या गोल्ज्यू देवता की कहानी तो आपने सुन ही रखी होगी हमारे उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र में भी एक ऐसे देवता हैं जो आज भी न्याय का दरबार लगाते हैं और अपने भक्तों को न्याय देते हैं,वो हैं हमारे महासू महाराज,यहाँ राष्ट्रपति भवन से नमक भेंट स्वरुप आता है।

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उत्तराखंड सच में देवभूमि है,जब हम ऐसी कहानियां सुनते और पढ़ते हैं तो इनके प्रति और जिज्ञासा बढ़ती है,ऐसे ही एक देवता हैं जौनसार के महासू महाराज,महासू महाराज का मंदिर जौनसार बावर के हनौल गाँव में  तमसा नदी (टौंसा) नदी के किनारे स्थित है,यह मंदिर नागर शैली में बना है और इसको हुणाभात नाम के ब्राह्मण ने बनवाया था,महासू देवता चार भाइयों का समूह है जिन्हें स्थानीय भाषा में महाशिव का स्वरुप माना जाता है,इनमें सबसे बड़े भाई हैं बौंठा महासू जिनका मंदिर हनोल में हैं,दूसरे भाई हैं बाशिक महासू,तीसरे हैं पवासी महासू,और चौथे भाई हैं चालदा महासू।बौंठा महासू को न्याय का देवता कहा जाता है उनका निर्णय स्थानीय जनता में सर्वमान्य माना जाता है,भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार महासू मंदिर हनोल में 9वीं से 10वीं शताब्दी का बताया गया है,इस मंदिर का संरक्षण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग करता है।

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क्या हैं मान्यताएं:

हर मंदिर और देवता की अपनी मान्यताएं होती हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती हैं,महासू देवता के सन्दर्भ में पौराणिक कथा के अनुसार ये कथा ज्यादा प्रचलित है कि एक समय में इस क्षेत्र में किरमिक नाम के राक्षस ने आतंक फैला दिया था जिसके आतंक से छुटकारा दिलाने के लिए हुणाभाट नाम के ब्राह्मण ने भगवान शिव और शक्ति की तपस्या की थी, उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव और शक्ति ने मैंद्रथ-हनोल में चार भाई महासू की उत्पति की और उन्होंने किरमिक राक्षस से क्षेत्रवासियों को मुक्ति दिलाई,तभी से क्षेत्रवासियों ने महासू देवता को अपना आराध्य माना और पूजा अर्चना शुरू की। समय के साथ-साथ महासू देवता की कीर्ति फैली और ये अब जौनसार के साथ साथ हिमाचल के कई क्षेत्रों के भी कुल देवता हैं,कई लोकगाथाओं में ये भी जिक्र आता है कि महासू देवता मूल रूप से कश्मीर के थे जिन्हें हुणाभाट ब्राह्मण यहाँ लेकर आए थे,हनौल स्थित बौंठा महासू के मंदिर में किरमिक राक्षस वाली कथा का ही जिक्र है तो उसे ही ज्यादा लोग मानते हैं।

महासू देवता चार भाई थे तो उनके अलग -अलग स्थानों पर मंदिर स्थापित हैं हनोल में जो मंदिर है वो सबसे बड़े भाई बौंठा महासू का मंदिर है।

बौंठा महासू मंदिर हनौल।

बाशिक महासू का मंदिर हनोल मंदिर से पहले मैंद्रथ गाँव में स्थित है यह चार महासू में दूसरे भाई हैं।

बाशिक महासू मंदिर मैंद्रथ।

पवासिक महासू का मंदिर टौंस नदी पार कर ठड़ियार गाँव में स्थित है यहाँ पर भगवान शिव,माता पार्वती और गणेश की लकड़ी की विशाल मूर्तियां हैं।

पवासिक महासू मंदिर,थड़ियार गाँव।

महासू के चौथे भाई चालदा महासू हमेशा चलायमान रहते हैं और जौनसार से लेकर गढ़वाल और हिमाचल की यात्रा करते हैं,चालदा महासू हर दो वर्ष में प्रवास में रहते हैं और 2020 से हिमाचल की यात्रा करने के बाद जौनसार के मोहना गाँव में विराजमान हैं।जब चालदा महासू अपने प्रवास पर निकलते हैं तो भक्तगण बड़ी श्रद्धा भक्ति से अपने इष्ट की अगुवाई करते हैं,इनका मंदिर दसऊ गांव में है।

चालदा महासू मंदिर दसऊ।

चार भाई महासू के चार वीर भी हैं जिनके अपने पौराणिक मंदिर क्षेत्र में स्थित हैं, इनमें कफला वीर (बासिक महासू), गुडारु वीर (पबासिक महासू), कैलू वीर (बूठिया महासू) और सेकुड़िया वीर (चालदा महासू) नाम से हैं,हनोल स्थित बौंठा महासू मंदिर का गर्भगृह का छत्र नागर शैली का बना हुआ है। मंदिर में मंडप और मुख्य मंडप का निर्माण बाद में किया गया। इस मंदिर की निर्माण शैली इसे उत्तराखंड के अन्य मंदिरों से भिन्न एवं विशिष्ट बनाती है। यह लकड़ी और धातु से निर्मित अलंकृत छतरियों से युक्त है।महासू मंदिर के प्रवेश द्वार से लेकर गर्भगृह तक चार दरवाजे हैं। प्रवेश द्वार की छत पर नवग्रह सूर्य, चंद्रमा, गुरु, बुध, शुक्र, शनि, मंगल, केतु व राहू की कलाकृति बनी हैं। पहले और दूसरे द्वार पर माला स्वरूप विभिन्न देवी-देवताओं की कलाकृतियां पिरोयी गई हैं। दूसरे द्वार पर मंदिर के बाजगी ढोल-नगाड़े के साथ पूजा-पाठ में सहयोग करते है। तीसरे द्वार पर स्थानीय लोग, श्रद्धालु व सैलानी मत्था टेकते हैं। अंतिम द्वार से गर्भगृह में सिर्फ पुजारी को ही जाने की छूट है और वह भी पूजा के समय।

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हनोल स्थित महासू देवता मंदिर में पांडु पुत्र भीम के असीम बल के साक्ष्य मौजूद हैं। यहां मंदिर परिसर में दो छोटे सीसे के गोले रखे हैं। मान्यता है कि यह भीम के कंचे है, जिनसे वह खेला करते थे, लेकिन इस मामूली और कम वजनी दिखने वाले गोलों को उठाने में अच्छे से अच्छे पहलवानों के पसीने छूट जाते है। इनमें से एक गोले का वजन छह मन (240 किलोग्राम) और दूसरे का नौ मन (360) किलोग्राम है। मान्यता है कि यह कंचे अभिमान के बल से नहीं बल्कि सच्ची श्रद्धा की भावना से उठते हैं।

हनोल मंदिर में भीम के कंचे। इनको उठाने में निकल जाता है पहलवानों का पसीना।

हनोल मंदिर में आज भी श्रद्धालु अपनी समस्याओं का समाधान खोजने जाते हैं और महासू देवता के पस्वा मंदिर प्रांगण में ही उनकी समस्याओं का हल बताते हैं,पूर्व में यहाँ पर बलि प्रथा थी लेकिन वर्तमान में बंद हो गई है और मंदिर प्रांगण में बकरियां घूमती हुई नजर आती हैं।

आप भी महासू देवता के दर्शन करना चाहते हैं तो देहरादून से महासू देवता के मंदिर तक पहुंचने के लिए तीन सड़क मार्ग हैं। पहला 188 किमी लंबा मार्ग देहरादून, विकासनगर, चकराता व त्यूणी होते हुए हनोल तक जाता है। दूसरा देहरादून, मसूरी, नैनबाग, पुरोला व मोरी होते हुए हनोल पहुंचता है, जिसकी लंबाई 175 किमी है। जबकि, तीसरा 178 किमी लंबा मार्ग देहरादून से विकासनगर, छिबरौ डैम, क्वाणू, मिनस, हटाल व त्यूणी होते हुए हनोल तक है।

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