पहाड़ के जीवन में पहाड़ की नारियां रीढ़ की हड्डी की तरह हैं इन्होने ही पहाड़ को जिन्दा रखा हुआ है,ना जाने कितने गीतों में पहाड़ की नारियों का दर्द झलकता है,जब इन गीतों को ही सुनकर मन भावुक हो जाता है तो सोचिए जो वो जीवन जी रहा है उसके पास कितनी सहनशक्ति होगी,बारह महीनों के कामकाजों में उन्हें दिन वार तक का ख्याल नहीं रहता है सुबह होते ही निकल पड़ती हैं हैं अपने मवेशियों के चारे के लिए और सुबह से शाम इसी कशमकश में कब हो जाती है उन्हें पता भी नहीं लगता,युवा गायक प्रदीप शाह ने मैत जागर में इस दर्द को भली भांति जाहिर किया है।
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फ्योंली फिल्म्स के बैनर तले प्रदीप शाह ने पहाड़ की नारियों के जीवन पर एक बेहतरीन रचना की है,गीत को जागर पैटर्न में तैयार किया गया है और इसका शीर्षक है मैत(मायका) गीत को प्रदीप डिमरी ने संगीत दिया है,वैसे तो इस व्यथा को शब्दों में व्यक्त करना काफी मुश्किल है फिर भी प्रदीप ने पहाड़ की नारी के दर्द को स्वर एवं शब्दों से जाहिर करने का भरसक प्रयास किया है।
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निरमैत्या धियाणी(मैत) जागर उस नारी का दर्द है जिसका मायके में कोई नहीं है,तीज त्योहारों पर उसका मन बड़ा दुःखी हो जाता है,जिनके मैती हैं वो बार-त्योहारों में अपने मायके चली जाती हैं पर निरमैत्या रोकर ही त्यौहार को मनाती है,प्रमोशनल वीडियो फॉर्मेट में रिलीज़ किया गया ये वीडियो बड़ा भावुक करने वाला है,कुछ सालों पहले जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण ने कलंदरा जागर में भी ऐसा ही जिक्र किया गया था।
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हमारे पहाड़ में कहते हैं कि बारह महीनों के बारह त्यौहार हैं और त्यौहारों का आनंद तो अपनों के साथ ही आता है,पर वो अभागी क्या करे जिसे कोई मायके बुलाने वाला ही ना हो वो तो यही कहेगी कि जब इतने दुःख ही देने थे तो इससे बढ़िया तो जन्म ही नहीं होता,युवा गायक प्रदीप शाह ने उस नारी के दर्द को बेहतरीन अंदाज में व्यक्त किया है,इसे जागर शैली पर तैयार किया गया है।
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