टपकेश्वर मंदिर मे छुपे हैं कई रहस्य, जानकर उड़ जाएंगे होश

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भगवान शिव शंकर के देशभर में ही नहीं बल्कि पूरे विश्वभर में ऐसे कई प्राचीन मंदिर हैं जिनका इतिहास रामायण, महाभारत आदि से जुड़ा हुआ है, ऐसा ही भोलेनाथ का एक प्राचीन मंदिर देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित है, जिसकी शैर आज हम आपको इस पोस्ट के जरिए करवाने वाले हैं.

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हम बात कर रहे हैं देहरादून के प्रसिद्ध टपकेश्वर मंदिर की, टपकेश्वर मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक प्रमुख मंदिर है जो देहरादून शहर के केंद्र से 6.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जहां शिव लिंग एक प्राकृतिक गुफा के भीतर स्थित है जिसे द्रोण गुफा के नाम से जाना जाता है। टपकेश्वर महादेव मंदिर में दो शिव लिंग हैं, जिनमें से दोनों को स्वयं प्रकट माना जाता है.

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टपकेश्वर मंदिर एक बहुत ही आकर्षक गुफा मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। अपने आकर्षण और सरल दिखने वाला यह मंदिर एक नदी के किनारे स्थित है जो इसे एक अद्वितीय पवित्रता प्रदान करती है। यहां मंदिर के मुख्य परिसर में  शिव लिंग स्थापित है जिसके बारे में यह माना जाता है कि जो भी लोग यहां कुछ मांगने आते हैं और भगवान का आशीर्वाद चाहते हैं, भगवान उनकी मनोकामना को पूरा करते हैं, यह भोलेनाथ को समर्पित गुफा मंदिर है, इसका मुख्य गर्भगृह एक गुफा के अंदर है। इस गुफा में शिवलिंग पर पानी की बूंदे गिरती रहती हैं। इसी कारण शिवजी के इस मंदिर का नाम टपकेश्वर पड़ा। टपक एक हिंदी शब्द है, जिसका अर्थ है बूंद-बूंद गिरना.

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टपकेश्वर मंदिर में शिवरात्रि बड़े उत्सव के साथ मनाई जाती है, मंदिर के बारे कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल में हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव के आशीर्वाद से, पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोण ने तीरंदाजी जैसे सैन्य कलाओं में ज्ञान और विशेषज्ञता हासिल करने के लिए इस गुफा में ध्यान लगाया था, यहीं पर गुरु द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी कृपी को एक पुत्र अश्वत्थामा की प्राप्ति हुई थी। वह उसे ठीक से दूध नहीं पिलाती थी। क्योंकि द्रोणाचार्य गाय के दूध का खर्च नहीं उठा सकते थे, बुद्धिमान बच्चे अश्वत्थामा ने भगवान शिव से प्रार्थना की और भगवान शिव ने गुफा की छत पर गऊ थन बना दिए और दूध की धारा शिवलिंग पर बहने लगी, इस गुफा से दूध टपकने लगा, जिसकी वजह से प्रभु शिव का नाम दूधेश्वर पड़ा, कलयुग के समय में इस धारा ने पानी का रूप ले लिया। इस कारण इस मंदिर को टपकेश्वर कहा जाता है.

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