पहाड़ों के दर्द की एक पुरानी कहावत है “पहाड़ों की जवानी, मिट्टी औऱ पानी कभी पहाड़ों के काम नहीं आती”. आज भी उत्तराखंड की यही दशा औऱ दिशा बरकरार है, उत्तराखंड पर्वतीय राज्यों मे पलायन की स्थिति बड़ी समस्या बनी हुई है, इसी चिंता को दर्शता नया कुमाऊंनी गीत दिन औंछी जांछी रिलीज हुआ है, गीत मे रोजगार के लिए गांव छोड़कर शहरों की रुख करने वाले लोगों के दर्द को साफ देखा जा सकता है.
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उत्तराखँड मे पलायन की चिंताजनक स्थिति को दर्शाते हुए Chhitku Hinwal Produaction से नया गीत दिन औंछी जांछी जारी हुआ है, दिवंगत Shri Netra Singh Lanwal द्वारा लिखे इस गीत को देख आप पहाड़ से पलायन के दुख को स्पर्श कर सकते हैं, इस कुमाऊंनी गीत के जरिये गांव छोड़कर शहरों का रुख करने वाले लोगों के दर्द को दिखाया गया है, गीत की खास बात यह है कि इस गीत में पहाड़ से हो रहे पलायन से जन मानसों को रूबरू कराने का प्रयास किया गया है।
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Rakesh Kanwal और Sangita Sonal की आवाज मे आया यह गीत दिखाता है कि अपनी जड़ों से कोई अलग नहीं होना चाहता, रोजगार की मजबूरी युवा पीढ़ी को शहर ले जाती है। बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा का सपना भी पलायन की प्रमुख वजह में शामिल है। पलायन के कारण पहाड़ के कई गांव पूरी तरह खाली हो चुके हैं, जिसे इस गीत के माध्यम से मुख्य किरदार मे रहे विजय भारती और माही रावत ने अपने अभिनय से बखूबी दिखाया, जिसे देख हर किसी ने पलायन के इस दर्द को महसूस किया, गीत को लेकर दर्शकों की भी अच्छी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही है.
प्रतिक्रियाओं की झलक
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नेपाल के काठमांडू निवासी Bipin Acharya द्वारा इसके संगीत ने सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया, मुनस्यारी मे फिल्माए गए इस खूबसूरत गीत के निर्देशक विजय भारती रहे, जिनकी दिशा-निर्देशों मे यह गीत तैयार किया गया, गीत का फिल्मांकन एंव संपादन महेश पाल ने किया है वा प्रोड्यूस Devu Pantry द्वारा किया गया है.
यहां देखें पूरा गीत:
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