संगीत जीवन का कितना अहम हिस्सा है इस बात का अंदाजा उसी बात से लगाया जा सकता है,कि जब संसाधन इतने नहीं थे तब भी समाज में गीतों को सीमित संसाधनों के साथ गाया जाता था वो बात अलग है तब ये गीत सीमित स्थान पर ही प्रचलित होते थे,समय के साथ साथ रेडियो ने आम जन के मनोरंजन में अहम भूमिका निभाई है,फिर दौर आया टैप रिकॉर्डर एवं सीडी,वीसीडी का जिससे आम जन तक संगीत और भी अच्छे तरीके से पहुँच सका,अगर उत्तराखंडी संगीत के परिपेक्ष में देखा जाए तो इसका इतिहास भी काफी पुराना रहा है।आकाशवाणी नजीबाबाद केंद्र ने पहाड़ियों को गढ़वाली गीतों से खूब मनोरंजित किया।
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अब समय बदल चुका है कोई भी गीत या वीडियो रिलीज़ होते ही चंद सेकंडों में ही दुनिया के कोनों कोनों तक पहुँच जाता है,लेकिन अतीत को भी नहीं भुलाया जा सकता यहाँ के लोकगीत तब भी समाज की भावनाओं को दर्शाते थे ,ऐसा ही लोकगीत है उड़ रे कागा जिसे कभी हमारे दाने सयानों ने रेडियो पर सुना होगा और अपनों की याद में खोए होंगे एक बार फिर ये गीत आज की पीढ़ी तक पहुंचाने का काम युवा गायक प्रदीप बुटोला ने किया है।हिमाद्रि फिल्म्स के बैनर तले इस गीत को वीडियो फॉर्मेट में रिलीज़ किया गया है।
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शिव प्रसाद पोखरियाल द्वारा रचित ‘उड़ रे कागा’ गीत को प्रदीप बुटोला ने आवाज दी है,इसे संगीत विनोद चौहान ने दिया है,वीडियो में प्रदीप सिंह बांगर ने शानदार अभिनय किया है ,ये गीत परदेश में रह रहे एक युवक का कागा(कौआ) के जरिए अपनी माँ और जन्मभूमि के प्रति सन्देश है,मोबाइल फोन का इतना प्रचलन तब के समय में नहीं होने के कारण कागा को ही एक सन्देशवाहक माना जाता था।
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उस दौर में शिव प्रसाद पोखरियाल ने उड़ रे कागा गीत को आकाशवाणी में गाया था और एक बार फिर अब प्रदीप बुटोला ने इसे उतनी ही शालीनता से गाया है।पलायन पर आधारित ये गीत उन सभी प्रवासियों का दर्द है जो रोजगार की तलाश में अपने घर गाँव से दूर हैं।
लीजिए आप भी अपनी यादों को ताज़ा कीजिए इस गीत के साथ।
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