उत्तराखंड अपनी परम्पराओं एवं संस्कृति के लिए जाना जाता है,इस धरती पर देव वास करते हैं,देवों से आत्मीय नाता होता है तभी उत्तराखंड देवभूमि कहलाता है,हिमालय पुत्री माता नंदा देवभूमि की बेटी है और 12 वर्षों में माँ नंदा की विश्व में सबसे लम्बी पैदल यात्रा मानी जाने वाली राजजात होती है और हर वर्ष लघु जात होती है,मायके से कैलाश का माँ नंदा का सफर बेहद भावुक होता है,इस देव यात्रा में माता नंदा के धर्म भाई लाटू भक्तों का मार्गदर्शन करते हैं।
उत्तराखंड के लोकगायक दर्वान नैथवाल ने लाटू देवता जो कि माँ नंदा के धर्म भाई हैं उनकी स्तुति गीत के माध्यम से की है,इसकी रचना दर्वान नैथवाल ने ही की है और इसे संगीत से संजय कुमोला ने सजाया है,वर्ष 2014 की राजजात यात्रा के दृश्य वीडियो में जोड़े गए हैं जिन्हे दर्वान नैथवाल ने ही फिल्माया है।
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माँ नंदा की विदाई भावुक कर देती है और फिर अगले वर्ष का निमंत्रण भी दिया जाता है,चमोली जिले के देवाल ब्लॉक के वाण गाँव में लाटू देवता का मंदिर है,इस मंदिर के कपाट साल भर में मात्र एक बार ही खोले जाते हैं और यहाँ पर लाटू देवता आज भी विराजमान हैं,लाटू देवता यहाँ पर नागराज रूप में विराजमान हैं और यहाँ पर पुजारी आँखों पर पट्टी बांधकर लाटू देवता की पूजा अर्चना करते हैं,आँखों पर पट्टी इसलिए रखी जाती है जिससे पुजारी लाटू देवता के नागराज स्वरुप को देखकर भयभीत न हो जाए।
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माँ नंदा,जगतजननी माता पार्वती का ही एक स्वरुप हैं,माता नंदा और लाटू देवता का रिश्ता भी काफी पौराणिक महत्त्व है,एक बार माता नंदा कैलाश पर्वत पर भोले शंकर से कहते हैं हे भोलेनाथ मेरा कोई भाई नहीं है, मेरा भी कोई भाई होता तो में भी अपने मायके जाती,तब भोलेनाथ ने कहा कन्नौज के राजा का छोटा बेटा है लाटू उसे अपना धर्म भाई बना लो नंदा! तो शिवजी की अनुमति लेकर माता नंदा अपने मायके रिसासु आ गई और वहीँ से कन्नौज पहुंचकर लाटू को अपना भाई बनाने के लिए प्रस्थान कर दिया।
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भगवती नंदा अपना भाई पाकर काफी प्रसन्न थी और अब सुनिश्चित हो गई कि मेरा भी एक भाई है जो मुझे मिलने कैलाश आएगा और मेरे लिए भेंट लाएगा,माता नंदा जब वापस अपने ससुराल लौटी तो रिसासु के वासियों एवं अन्य इलाके के वासी नंदा की विदाई करने आते हैं,जब माता नंदा की डोली वाण गाँव पहुँचती है तो माता नंदा स्नान करने जाती है ,तो वहीँ इस बीच लाटू देव को प्यास लग जाती है ,और वहीँ किसी बुजुर्ग से पानी मांगता हैं लेकिन भूलवश लाटू देवता जांड मांड यानि कच्ची शराब पी लेता है जिससे लाटू देवता ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया जिससे माता नंदा काफी क्रोधित हो गई और वहीँ पर लाटू को कैद करने के आदेश दे दिया ,लेकिन बाद में सच्चाई सामने आने पर माता नंदा ने लाटू देवता का मंदिर वाण गाँव में ही बनेगा और बैशाख पूर्णिमा पर पूजा होगी और कहा जब भी 12 वर्षों में मेरी राजजात होगी तब लाटू मेरी डोली के साथ साथ यहीं से हेमकुंड तक चलेगा।
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धन्य है उत्तराखंड जहाँ देव स्वयं विराजमान रहते हैं,ऐसी महान भूमि है हमारी देवभूमि।सुनिए लाटू देवता की महिमा दर्वान नैथवाल की आवाज में और दर्शन कीजिए लाटू देव और माता नंदा देवी के।
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